रांची : ‘भारत में गांधी को इस्तेमाल तो सबने किया, लेकिन उनके सिद्धांतों को किसी ने अपनाया नहीं. आज दुनिया की बड़ी शक्तियां गांधी को अपना रही हैं. अमेरिका और चीन जैसे देश गांधी के सिद्धांतों को, उनके आदर्शों को अंगीकार कर रहे हैं. दुनिया भर के देशों में गांधी पाठ्यपुस्तक का हिस्सा बन रहे हैं. लेकिन, अपने ही देश में गांधी के सिद्धांतों से लोग दूर हो रहे हैं. पश्चिम के देशों ने जब गांधी के विचारों के महत्व को समझा और उस पर चर्चा की, तब हमें गांधी की अहमियत समझ आयी. दुनिया को समझ आ गयी है कि भविष्य का एक विकल्प हैं महात्मा गांधी. मेरा मानना है कि गांधी विकल्प नहीं हैं. वह हमारी मजबूरी हैं. गांधी जरूरी हैं. गांधी ने जीवन के सात मर्म बताये थे, उन्हें याद रखने की जरूरत है. विचारों के स्तर पर गांधी को पुनर्स्थापित और पुनर्जीवित करना जरूरी है.’
ये बातें राज्यसभा के उपसभापति और प्रभात खबर के पूर्व प्रधान संपादक हरिवंश ने कहीं. वे रविवार को रांची के ऑड्रे हाउस में आयोजित टाटा स्टील झारखंड लिटररी मीट (Tata Steel Jharkhand Literary Meet 2018) के दूसरे संस्करण में अपने विचार रख रहे थे. उनका विषय था : ‘भविष्य का एक विकल्प हैं महात्मा गांधी’. जन्म के डेढ़ सौ सालों के बाद भी महात्मा गांधी के महत्व पर अपने वक्तव्य की शुरुआत हरिवंश ने 21वीं सदी के महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग के कुछ कथनों के साथ की.
इसमें स्टीफन हॉकिंग पूछते हैं कि धरती कहां जा रही है? मानव सभ्यता कहां जा रही है? क्या हम इस धरती पर रह पायेंगे? श्री हरिवंश ने कहा कि इस युग के सबसे महान वैज्ञानिक ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हमारी धरती खतरे में है. उन्होंने आगे लिखा है कि दूसरे परमाणु युग में जीवन बहुत कठिन होने वाला है. इसलिए वैज्ञानिकों की जिम्मेवारी बनती है कि वे लोगों को इसके बारे में समझाना शुरू कर दें. श्री हरिवंश ने कहा कि स्टीफन हॉकिंग यह नहीं कहते कि शासकों को बताओ, पत्रकारों को बताओ, वह कहते हैं आने वाले खतरे के बारे में आम लोगों को बताओ, क्योंकि उन्हीं में से कोई ऐसा युवा सामने आयेगा, जो इस चुनौती से निबटने की पहल करेगा.
राज्यसभा के उपसभापति ने प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ‘नेचर’ और ‘इंडिपेंडेंट’ की खबरों का हवाला दिया. कहा कि इन पत्रिकाओं में जो लेख छपे हैं, वो कहते हैं कि अब पूरी दुनिया का भविष्य एक-दूसरे से जुड़ गया है. सबके प्रयास से ही धरती बचेगी. भू-मंडलीकरण के दौर में धरती के एक छोर से दूसरे छोर तक के लोगों का भविष्य एक हो गया है. कोई खुद को किसी से अलग नहीं कर सकता. जलवायु परिवर्तन के असर से आज कोई भी देश अछूता नहीं है. जंगल, पहाड़ नष्ट हो रहे हैं. यह घातक है. खतरनाक भविष्य का संकेत है.
श्री हरिवंश ने कहा कि वैज्ञानिक कह रहे हैं कि जल्द से जल्द नये ग्रहों की खोज करनी होगी. ऐसे ग्रह की खोज करनी होगी, जहां इंसान रह सकें, क्योंकि 50 साल के बाद यह धरती रहने के लायक नहीं रह जायेगी. सूचना तकनीक के साथ जैव प्रौद्योगिकी के मिश्रण से दुनिया के लिए बड़े खतरे उत्पन्न होने वाले हैं. उन्होंने कहा कि इन्फोटेक और बायोटेक के इस युग में किसी के पास वक्त नहीं है. पूंजी लगाने वाले दूसरे ही क्षण मुनाफा चाहते हैं. उनमें पहले के शासकों, चिंतकों की तरह आविष्कार के असर को देखने का धैर्य नहीं रह गया है. इसलिए खतरा बड़ा है, चुनौतियां गंभीर हैं.
लालच बनाम जरूरत
श्री हरिवंश ने कहा कि एनरॉन और अमेरिकन कॉम दुनिया की दो बहुत बड़ी कंपनियां हुईं. एनरॉन के बारे में कहा जाता था कि भारत के आधे से ज्यादा राज्यों की अर्थव्यवस्था से बड़ी पूंजी कंपनी की थी. दोनों कंपनियां रातोंरात दिवालिया हो गयी. दोनों कंपनियों के दिवालियेपन पर रिसर्च हुआ. रिसर्च में यह बात उभरकर सामने आयी कि इन कंपनियों में दुनिया के सबसे तेज दिमाग वाले लोग काम कर रहे थे. इनमें ज्ञान था, क्षमता थी, लेकिन जीवन मूल्यों से इनका दूर-दूर तक वास्ता नहीं था. श्री हरिवंश ने कहा कि महात्मा गांधी का जोर मूल्यों पर था. सत्य पर था. सत्य के लिए इस एक शख्स ने जितना सहा और जितना काम किया, उतना किसी और ने नहीं किया.
चीन में गांधी को पढ़ाने की तैयारी
श्री हरिवंश ने कहा कि दुनिया के सबसे समृद्ध देश सबसे ज्यादा शोध करते हैं. रिसर्च पर अमेरिका का एकाधिकार था. समृद्धि पाने के बाद चीन उसके एकाधिकार को समाप्त करने जा रहा है. चीन में गांधी को इतिहास के पाठ्यक्रम में शामिल करने की तैयारियां चल रही हैं. गांधी के विचारों को अनुवाद करने की अनुमति चीन ने मांगी है. गांधी की चुनी हुई रचनाओं को चीन में पढ़ाया जायेगा.
अर्थव्यवस्था और गांधी
श्री हरिवंश ने कहा कि अर्थव्यवस्था पर गांधी के मॉडल को कभी देश ने अपनाया ही नहीं. गांधी लालच बनाम जरूरत की बात करते थे. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद गांधी पूरे परिदृश्य से ही गायब हो गये. उन्होंने कहा कि प्रयोग के तौर पर ही सही, एक बार देश को गांधीवादी अर्थव्यवस्था अपनानी चाहिए. उन्होंने कहा कि दुनिया बदलने के लिए कठोर कदम उठाने होते हैं. जिनमें कड़े फैसले लेने की क्षमता होती है, वही इतिहास बनाते हैं.
मरुस्थल से निकली लिट फेस्ट की बाढ़
राज्यसभा के उपसभापति ने कहा कि मरुस्थल से निकली बाढ़ आज देश के कोने-कोने में पहुंच चुकी है. देश भर में 113 साहित्य उत्सव होते हैं. साहित्य पर चर्चा होती है, लेकिन चम्पारण सत्याग्रह पर कोई साहित्य उत्सव नहीं हुआ. किसी साहित्य उत्सव में इस विषय पर चर्चा नहीं हुई.