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रांची : नाबालिग को जेल भेजने से पहले आइओ देगा सत्यापन रिपोर्ट

रांची : झारखंड में किसी आपराधिक घटना में शामिल नाबालिग को न्यायिक हिरासत में भेजने से पूर्व केस के आइओ (अनुसंधानक) को उम्र की सत्यापन रिपोर्ट भी देनी होगी. इससे संबंधित आदेश हाइकोर्ट के निर्देश पर डीजीपी डीके पांडेय ने सभी जिलों के एसएसपी और एसपी को दिया है. डीजीपी ने सभी एसपी को उम्र […]

रांची : झारखंड में किसी आपराधिक घटना में शामिल नाबालिग को न्यायिक हिरासत में भेजने से पूर्व केस के आइओ (अनुसंधानक) को उम्र की सत्यापन रिपोर्ट भी देनी होगी. इससे संबंधित आदेश हाइकोर्ट के निर्देश पर डीजीपी डीके पांडेय ने सभी जिलों के एसएसपी और एसपी को दिया है.
डीजीपी ने सभी एसपी को उम्र का सत्यापन रिपोर्ट अर्थात एज मेमो भरने के लिए दो पन्ने का फॉरमेट भी उपलब्ध कराया है. सत्यापन रिपोर्ट में आरोपी का नाम, माता-पिता का नाम, उसकी जन्म तिथि और इससे संबंधित प्रमाण पत्र भी देना होगा.
अगर आरोपी को जन्मतिथि की जानकारी नहीं हो,तो ऐसी स्थिति में संबंधित पुलिस पदाधिकारी को अनुमानित उम्र का कॉलम भरना होगा. साथ ही आरोपी के स्कूल का नाम, उसने किस क्लास तक पढ़ाई की है. साथ ही स्कूल छोड़ने का वर्ष भी सत्यापन रिपोर्ट में दर्ज करनी होगी. गिरफ्तार नाबालिग के साथ जुवेनाइल एक्ट के तहत व्यवहार किया गया है या नहीं, इस संबंध में भी लिखना होगा.
नाबालिग के माता-पिता या परिवार के सदस्य का हस्ताक्षर लेना होगा अनिवार्य
नाबालिग को गिरफ्तार करनेवाले पुलिस पदाधिकारी या एज मेमो तैयार करनेवाले अफसर को भी फाॅर्म पर हस्ताक्षर करना होगा. साथ ही एज मेमो में नाबालिग के माता-पिता या परिवार के सदस्यों का हस्ताक्षर लेना भी आवश्यक होगा.
एज मेमो की प्रति नाबालिग को न्यायालय में प्रस्तुत करने के दौरान अनुसंधानक को देना होगा. उल्लेखनीय है कि पाकुड़ में हत्या के एक मामले में पुलिस ने नाबालिग आरोपी को बालिग बता दिया था. मामले में आरोपी को पाकुड़ एडिशनल सेशन जज की न्यायालय से आजीवन कारावास की सजा भी मिल गयी थी.
हाइकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए आरोपी की सजा पर रोक लगा दी. साथ ही कहा था कि एज मेमो में बरती गयी लापरवाही के कारण कोर्ट के सामने भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है. हाइकोर्ट ने वरीय पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि पुलिस अफसरों को एज मेमो के बारे मेंं बारीकी से बतायी जाये.

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