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शिबू सोरेन के 75 साल : ऐसे हैं हमारे दिशाेम गुरु

अनुज कुमार सिन्हा शिबू साेरेन यानी गुरुजी काे 75 साल पूरा हाेने पर बधाई. अधिकांश लाेग और आज की युवा पीढ़ी असली शिबू साेरेन काे नहीं जानती. उनकी उन खासियत काे नहीं जानती, उनके उस संघर्ष काे नहीं जानती, जाे युवाओं काे प्रेरित कर सकता है. जन्म दिन पर एक माैका आया है. ताे जानिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 11, 2019 7:05 AM
अनुज कुमार सिन्हा
शिबू साेरेन यानी गुरुजी काे 75 साल पूरा हाेने पर बधाई. अधिकांश लाेग और आज की युवा पीढ़ी असली शिबू साेरेन काे नहीं जानती. उनकी उन खासियत काे नहीं जानती, उनके उस संघर्ष काे नहीं जानती, जाे युवाओं काे प्रेरित कर सकता है.
जन्म दिन पर एक माैका आया है. ताे जानिए शिबू साेरेन काे. उस शिबू साेरेन काे जिन्हाेंने अलग झारखंड राज्य के लिए लगभग 40 साल तक संघर्ष किया, घर-परिवार की चिंता नहीं की और कई साल तक पारसनाथ की पहाड़ियाें-जंगलाें में रह कर महाजनाें के खिलाफ लड़ाई लड़ी और झारखंड राज्य दिलाया, जिन्हाेंने जिंदगी में कभी शराब नहीं पी, मांस-मछली नहीं खाया, जाे आज भी झारखंड के सबसे बड़े जनाधारवाले नेता हैं, जिन्हें सुनने के लिए मीलाें पैदल चल कर लाेग आते हैं, जिनकी हर दल के लाेग इज्जत करते हैं, जाे आज भी पुराने साथियाें का ख्याल रखते हैं. तीन-तीन बार झारखंड में मुख्यमंत्री रहे लेकिन आज भी लाेग उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री के नाते नहीं, बल्कि झारखंड के आंदाेलनकारी के नाते जानते हैं.

ठीक है इतने समय तक झारखंड राज्य के लिए संघर्ष करने, राजनीति में रहने के कारण कई प्रिय और अप्रिय घटनाएं भी उनके जीवन में घटी हैं. कुछ गंभीर आराेप भी लगे. लेकिन ये सारे आराेप-प्रत्याराेप उनके संघर्ष के सामने फीके पड़ जाते हैं.
पिता की हत्या
शिबू साेरेन मूलत: रामगढ़ जिले के गाेला के नेमरा गांव के रहनेवाले हैं. 11 जनवरी, 1944 काे उनका जन्म हुआ था. तब वे स्कूल में पढ़ते थे, तभी उनके पिता साेबरन माझी की महाजनाें ने हत्या कर दी थी. उसके बाद ही उन्हाेंने संघर्ष का रास्ता अपना लिया था. दरअसल पूरे क्षेत्र में महाजनाें का आतंक था. संताल गरीब थे. वे संतालाें काे उधार देकर, शराब पिला कर संतालाें की जमीन पर कब्जा कर लेते थे. इससे संतालाें में नाराजगी थी. शिबू साेरेन ने वहीं से अपना आंदाेलन शुरू किया.

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अपनी एक टीम बनायी और तय किया कि संतालाें की जमीन पर महाजनाें ने जाे भी धान राेपा है, फसल पकने पर वे जबरन काटेंगे. इसी प्रकार उन्हाेंने धान काटाे आंदाेलन चलाया. संतालाें काे लगा कि यही व्यक्ति उन लाेगाें काे महाजनाें के चंगुल से बाहर निकाल सकता है. इसलिए धान काटाे आंदाेलन में संताल जुड़ते गये. इसी दाैरान संघर्ष हाेता था.
शिबू साेरेन के सहयाेगी आदिवासी पारंपरिक हथियाराें (तीन-धनुष) के बल पर यह काम करते थे. धीरे-धीरे यह आंदाेलन गाेला से निकल कर पेटरवार, गाेमिया आदि इलाकाें तक पहुंच गया था. शिबू साेरेन ने साेनाेत संताल समाज नामक सामाजिक संगठन तैयार किया था जाे संताल समाज के उत्थान के लिए काम करता था. इसी दाैरान बाेकाराे स्टील प्लांट बन रहा था. शिबू साेरेन का वहां आना-जाना बढ़ा. वहां उनकी मुलाकात धान सिंह मुंडारी से हुई. विस्थापिताें की लड़ाई के लिए विनाेद बिहारी महताे थे ही. इसी क्रम में शिबू साेरेन का विनाेद बाबू से परिचय हुआ. विनाेद बाबू शिवाजी समाज नामक सामाजिक संगठन बना कर कुड़मियाें के बीच उनके उत्थान के लिए काम करते थे. बाद में शिबू साेरेन, विनाेद बाबू के घर पर धनबाद में रहने लगे.
टुंडी का संघर्ष
धनबाद में रहने के दाैरान शिबू साेरेन के पास एक माेटरसाइकिल थी और उसी से वे पूरे इलाके में घुमते थे. लाेगाें काे एकजुट करते थे. धान सिंह उनके साथ हुआ करते थे. धीरे-धीरे उनका कार्यक्षेत्र बढ़ता गया. शिबू साेेरेन टुंडी क्षेत्र ज्यादा जाने लगे क्याेंकि वहां संतालाें की आबादी ज्यादा थी, संताल महाजनाें से तबाह थे. यह वह क्षेत्र था जहां पुलिस आसानी से पहुंच नहीं सकती थी. धान काटाे आंदाेलन के दाैरान कई बार संघर्ष हुआ और शिबू साेरेन के खिलाफ मामले दर्ज किये गये.
पुलिस उन्हें तलाशने लगी. शिबू साेरेेन ने पारसनाथ की तराई में बसे पलमा गांव काे अपना केंद्र बनाया. घने जंगल और पहाड़ी इलाके कारण पुलिस वहां जाने से हिचकती थी. इस बीच शिबू साेरेन ने टुंडी के पास पाेखरिया में आश्रम बनाया. वहां से ही आंदाेलन का संचालन करने लगे. उनकी एक आवाज पर हजाराें आदिवासी तीर-धनुष लेकर जुट जाते थे. धीरे-धीरे उन्हाेंने पूरे इलाके में उन संतालाें काे जमीन पर कब्जा दिलाया जिनकी जमीन पर महाजनाें ने कब्जा कर लिया था.
समानांतर सरकार और विकास का मॉडल
शिबू साेरेन का काम धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था. जहां कहीं से जमीन पर महाजनाें द्वारा कब्जे की खबर मिलती, डुगडुगी बजती और हजाराें आंदाेलनकारियाें के साथ शिबू साेरेन वहां पहुंच जाते. धनकटनी हाेती और एक फार्मूले के तहत उसका बंटवारा हाेता. जिसकी जमीन हाेती, उसे ताे हिस्सा मिलता ही था, कुछ अनाज गांव में आपात स्थिति के लिए रखा जाता था.
जिसे जरूरत हाेती, वह उसमें से ले सकता था. जाे जमीन मुक्त हाेती थी,वहां सामूहिक खेती हाेती थी. टुंडी के आसपास के कई गांवाें में शिबू साेरेन की समानांतर सरकार चलती थी. वे अपना काेर्ट लगाते थे, जहां लाेग न्याय मांगने आते थे. उनके गृहमंत्री,रक्षा मंत्री, शिक्षा मंत्री, कृषि मंत्री आदि हुआ करते थे. यह दायित्व कृपाल सिंह, झगड़ू पंडित, राजेंद्र प्रसाद, बसंत पाठक देखा करते थे.
शिबू साेरेन और झगड़ू पंडित संतालाें काे बताते थे कि कैसे खेती करें ताकि उपज ज्यादा हाे. बांध बनाकर सब्जी उपजाते थे. बसंत और श्यामलाल मुर्मू दाेनाें उनके खास लेफ्टिनेंट थे. दाेनाें की बाद में हत्या कर दी गयी थी. शिबू साेरेन ने ग्रामीणाें की आय बढ़ाने के लिए मुर्गी पालन, सूकर पालन से लेकर सब्जी की खेती करना सिखाया था. संतालाें की आय बढ़ाने के लिए रास्ता तलाशा गया था. शराब पीने पर प्रतिबंध था.
काेई शराब पी नहीं सकता था. रात्रि पाठशाला शिबू साेरेन ने खाेली थी ताकि दिन भर खेत में काम करनेवाला रात में पढ़ सके. इस बीच विनाेद बाबू ने शिबू साेरेन काे सुझाव दिया था कि कब तक वे भागते फिरेंगे. एक नया संगठन बनाते हैं जाे अलग झारखंड राज्य और शाेषण के खिलाफ लड़ेगा.मजदूराें काे न्याय दिलाने के लिए भी लड़ेगा. यानी शिबू साेरेन, विनाेद बाबू और एके राय तीनाें एक साथ आये और झारखंड मुक्ति माेरचा का गठन किया. विनाेद बाबू अध्यक्ष बने जबकि शिबू साेरेन महासचिव.
शिबू साेरेन काे जिंदा या मुर्दा पकड़ने का आदेश
टुंडी में जाे आंदाेलन चल रहा था, वह धीरे-धीरे संताल तक फैल गया था. इसी बीच पुलिस उन्हें तलाश रही थी. घटक नामक एक दाराेगा था. संतालाें के एक गांव में वह आंदाेलनकारियाें काे पकड़ने गया था लेकिन जिंदा नहीं लाैटा. न ही उसकी लाश मिली.
इससे पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गयी. मामला तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी तक गया. तत्कालीन बिहार सरकार काे यह आदेश आया कि किसी भी हाल में शिबू साेेरेन काे जिंदा या मुर्दा पकड़ा जाये. इस बीच केबी सक्सेना काे धनबाद का उपायुक्त बनाकर भेजा गया ताकि शिबू साेरेन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हाे सके.
सक्सेना ईमानदार और कड़े अफसर माने जाते थे. उसी दाैरान सरकार ने बी किचिंग्या नामक एक ऐसे दाराेगा काे टुंडी भेजा, जाे शिबू साेरेेन काे पहले से जानते थे. शिबू साेरेन पर तब तक दर्जनाें केस दर्ज हाे चुके थे. धीरे-धीरे किचिंग्या ने शिबू साेरेन काे मुख्य धारा में लाने के लिए माहाैल बनाना शुरू किया.
इस बीच पाेखरिया में अाश्रम से शिबू साेरेन ने समय देना आरंभ कर दिया. वे धनबाद से सटे संतालपरगना के इलाकाें में भी जाने लगे. वहां संतालाें काे एकजुट किया. वहां भी महाजनाें के खिलाफ माेरचा खाेला और इसी दाैरान कई गाेलीकांड हुए. चिरूडीह कांड उसी का हिस्सा है.
उपायुक्त सक्सेना शिबू से मिलने जंगल गये
बिहार सरकार ने शिबू साेरेन के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए केबी सक्सेना काे भेजा था. इस बीच सक्सेना ने शिबू साेरेन काे संदेश भेजा कि वे उनसे मिलना चाहते हैं.
अकेले में. शिबू साेरेन ने सहमति दे दी और सक्सेना निहत्थे उनके पास पहुंचे. जब उन्हाेंने वहां शिबू साेरेन से बात की, उनके तर्क काे सुना, उनके काम काे देखा ताे उन पर गहरा असर हुआ. सक्सेना ने रिपाेर्ट भेजी कि अगर शिबू साेरेन काे मुख्य धारा में ले आया जाये, ताे आगे बड़ा काम हाे सकता है. सरकार भी मान गयी और अंतत: उनके खिलाफ दायर मामले एक के बाद एक वापस हाेने लगे.
इस बीच सक्सेना का तबादला हाे गया और लक्षमण शुक्ला नये डीसी बनकर धनबाद आये. उन्हाेंने भी सक्सेना के काम काे आगे बढ़ाया. शिबू साेेरेन काे उचित सम्मान दिया, समझाया और उन्हें आत्मसमर्पण के लिए तैयार कर लिया. फिर शिबू साेरेन को धनबाद जेल में रखा गया. उनके साथ झगड़ू पंडित भी जेल गये थे. बाद में दाेनाें काे रिहा कर दिया गया. शिबू साेरेन काे सरकार ने संतालाें के बीच काम करने के लिए सुविधाएं उपलब्ध करायी. यह बात 1975-76 की है.
राजनीतिक जीवन
ऐसे ताे शिबू साेरेन सबसे पहले मुखिया का चुनाव लड़ चुकेथे. उन्हें जबरन हरा दिया गया था. उसके बाद जरीडीह से उन्हाेंने 1972 में चुनाव लड़ा था. 1977 में जब टुंडी से उन्हाेंने चुनाव लड़ा ताे हार गये.
उसके बाद से ही उन्हाेंने दुमका काे अपना नया केंद्र बनाया. 1980 में उन्हाेंने दुमका से लाेकसभा चुनाव जीता और झारखंड मुक्ति माेरचा के पहले सांसद बने. इसके बाद ताे उन्हाेंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. कभी सांसद बने, कभी विधायक, केंद्र में मंत्री या झारखंड में मुख्यमंत्री. झारखंड मुक्ति माेरचा काे उन्हाेंने ताकतवर संगठन बनाया. इस बीच पार्टी में वैचारिक मतभेद भी हुए. विनाेद बाबू का शिबू साेरेन बहुत आदर करते थे.
बीच में ऐसा भी समय आया जब दाेनाें के रास्ते दाे हाे गये और एके राय से दूरी बढ़ गयी. ऐसी स्थिति में उन्हाेंने निर्मल महताे काे झामुमाे का अध्यक्ष बना कर खुद महासचिव बन गये. 1987 में निर्मल महताे की हत्या शिबू साेरेन के जीवन की सबसे दुखद घटनाओं में एक रही.
हां, शिबू साेरेन ने समय काे पहचाना और कभी एनडीए के साथ रहे ताे कभी यूपीए के साथ. शिबू साेरेन काे पहला बड़ा माैका तब मिला जब झारखंड स्वायत परिषद का गठन किया गया और उसके वे चेयरमैन बने. यह अलग झारखंड की दिशा में पहला कदम था. वर्ष 2000 शिबू साेरेन के लिए सबसे बड़ी खुशी लेकर आया जब अलग झारखंड राज्य बना. यह अलग बात है कि पहले मुख्यमंत्री नहीं बनने का उन्हें मलाल रहा.बाद में उन्हें तीन बार मुख्यमंत्री बनने का जरूर माैका मिला.
संघर्ष की कहानी के साथ कुछ घटनाओं का उल्लेख किये बिना शिबू साेरेन काे पूरा समझा नहीं जा सकता है. ऐसी धारणा रही है कि शिबू साेरेन सिर्फ आदिवासियाें या याें कहें कि सिर्फ संताल की चिंता करते है. घटनाएं कुछ और कहती हैं. एक घटना है डाेमेसाइल की. जिस दिन 20 जुलाई 2002 काे झारखंड बंद के दाैरान हिंसा हुई थी, उस दिन रात में अगर शिबू साेरेन समझदारी से काम नहीं लिया हाेता ताे झारखंड जल जाता. हिंसा और फैलती.
झारखंडी और गैर-झारखंड की लड़ाई बढ़ जाती. 20 जुलाई की रात काे शिबू साेरेन दिल्ली में थे. वहीं से उन्हाेंने वह बयान दिया था, जिसने झारखंड काे शांत कर दिया था. डाेमेसाइल की लड़ाई खत्म करने और अपने कार्यकर्ताओं काे सड़क पर नहीं उतरने का आदेश दिया था,जाे अखबार में प्रकाशित भी हुआ था. शिबू साेरेन के इस बयान काे पढ़िए.
यह सरकार (तब बाबूलाल मरांडी की सरकार थी) झारखंड को जला कर राख कर देगी. ऐसा माहौल बना दिया है कि लोग एक-दूसरे के खिलाफ सड़कों पर उतर गये हैं. डोमेसाइल समर्थक और विरोधी आपस में लड़ना बंद करें, बहुत हो गया. झारखंड में भाइचारे के साथ रहिए. लोगों को मरांडी सरकार की मंशा समझनी चाहिए. वह दुमका चुनाव में हुई हार के बाद बौखला गयी है और उसी का बदला निकाल रही है. लोग भी उसके चक्कर में आ गये हैं और डोमेसाइल-डोमेसाइल चिल्ला रहे हैं. मारकाट करने के लिए सड़कों पर उतर गये हैं.मरांडी सरकार ने नाकामयाबी छिपाने के लिए डोमेसाइल का हौवा खड़ा कर दिया है और लोग उसके पीछे भाग रहे हैं. नौकरी है नहीं और डोमेसाइल के नाम पर लोग लड़ रहे हैं. मरांडी सरकार सबकी नस पहचानती है. अब लोग दूसरी समस्या पर गौर नहीं कर डोमेसाइल के पीछे पागल हो रहे हैं. इस मरांडी सरकार को सत्ता से तुरंत उतारिए. देर हुई कि बचा-खुचा झारखंड भी खत्म हो जायेगा. लोग मर-कट कर खत्म हो जायेंगे.
शिबू साेरेन जानते थे कि ऐसा बयान देने से उनके समर्थकाें में निराशा हाे सकती है,फिर भी उन्हाेंने झारखंड काे शांत करने के लिए, हिंसा काे फैलने से राेकने के लिए और झारखंड के हित में यह साहसपूर्ण बयान दिया था. इससे स्पष्ट है कि शिबू साेरेन वाेट के समय चाहे जाे बाेल दें लेकिन बड़े संवेदनशील हैं और सभी काे साथ लेकर चलना चाहते हैं.
एक और उदाहरण दिये बिना कहानी खत्म करना उचित नहीं हाेगा. असली शिबू साेरेन काे जानना है संजीव का उदाहरण सामने लाना हाेगा. धान काटाे अांदाेलन के दाैरान मनियाडीह में शिबू साेरेन और संतालाें ने संजीव (महाजन परिवार के) काे निशाना बनाया था, हमला किया था और पूरे परिवार काे तबाह किया था. दूसरे दिन संजीव के भाई मुरलीधर ने उनसे कहा कि अब सब कुछ ताे आपने खत्म कर दिया, हमारा परिवार कैसे चलेगा, भाई का भविष्य क्या हाेगा. हम आपके साथ आंदाेलन में रहेंगे.
इसके बाद शिबू साेेरेन काे पछतावा हुआ. उन्हाेंने कहा कि मैंने आपके परिवार काे तबाह किया ताे हम ही आबाद करेंगे. संजीव की पढ़ाई की सारी जिम्मेवारी वे लेते हैं. वे संजीव काे दिल्ली ले गये. वहां बेटे जैसे प्यार दिया, दिल्ली में उन्हाेंने वकालत की पढ़ाई करायी, अपने साथ रखा. जब लॉ की डिग्री मिल गयी ताे वकील बन गये ताे अपने परिचिताें से कह कर उन्हें दिल्ली में स्थापित किया. आज वे संजीव सुप्रीम काेर्ट में बड़े वकील हैं.
जब झारखंड से राज्य सभा में किसी काे भेजने की बात आयी ताे शिबू साेरेन ने उसी संजीव काे टिकट दिया और संजीव राज्यसभा में सांसद बने. आज वही संजीव शिबू साेरेन काे पितातुल्य मानते हैं और मानते हैं कि उनका जीवन गुरुजी ने ही बनाया है. ऐसे हैं दिशाेम गुरु शिबू साेरेन.

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