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रांची़ : अपने कार्यों के प्रति लापरवाह है प्रदूषण नियंत्रण पर्षद: सरयू राय

खाद्य आपूर्ति मंत्री ने वायु प्रदूषण के संबंध में सीएस को पत्र लिखा रांची़ : खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने वायु प्रदूषण के संबंध में राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है. पत्र में लिखा है कि दिनांक 28 सितंबर 2018 को मेरी पहल पर वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अपर […]

खाद्य आपूर्ति मंत्री ने वायु प्रदूषण के संबंध में सीएस को पत्र लिखा

रांची़ : खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने वायु प्रदूषण के संबंध में राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है. पत्र में लिखा है कि दिनांक 28 सितंबर 2018 को मेरी पहल पर वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अपर मुख्य सचिव, झारखंड के प्रधान मुख्य वन संरक्षक तथा झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के अध्यक्ष तथा सचिव की बैठक डोरंडा स्थित वन विभाग के रेस्ट हाउस में हुई थी. बैठक में मैंने इन पदाधिकारियों का ध्यान झारखंड में विशेष कर झारखंड के खनन क्षेत्रों में बेतहाशा बढ़ते वायु प्रदूषण की ओर दिलाया था तथा उनसे इसकी रोकथाम व अनुश्रवण (मॉनिटरिंग) के लिये प्रभावी कदम उठाने की बात कही थी.

गौरतलब है कि झारखंड के खनन क्षेत्रों में कहीं भी वायु प्रदूषण की रियल टाइम डाटा मॉनिटरिंग की व्यवस्था नहीं है. इसके जरूरी उपकरण नहीं लगने के कारण वायु प्रदूषण के आंकड़े सूचीबद्ध नहीं किये जा सके हैं.

इधर, गैर सरकारी संस्था युगांतर भारती की पर्यावरणीय प्रयोगशाला की सहायता से डीएच एरिया, डकरा के खनन क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर वायु प्रदूषण मापा गया. पता चला कि वहां की हवा में पीएम-10 व पीएम-2.5 की सांद्रता भारतीय मानक से पांच से सात गुणा तक अधिक है.

मैंने सीसीएल द्वारा इसके विभिन्न स्थानों पर लिये गये वायु प्रदूषण के आंकड़ों को भी देेखा है. दु:खद आश्चर्य है कि खुद सीसीएल के आंकड़ों में भी वायु प्रदूषण की मात्रा युगांतर भारती के अांकड़े से मेल खाती है. सीसीएल ऐसे आंकड़ों की सूची नियमानुसार झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद को समय-समय पर अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराता है.

पर आश्चर्य है कि पर्षद के अध्यक्ष, सचिव एवं अन्य विशेषज्ञों ने अब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है. यह पर्षद के अधिकारियों की इस गंभीर समस्या के प्रति घोर लापरवाही है. इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि पर्षद के अध्यक्ष व सचिव के पद पर वन विभाग के जो अधिकारी पदस्थापित हैं, वे पूर्णकालिक नहीं हैं. पर्षद के कार्यों के अतिरिक्त उन्हें विभाग के दायित्व का भी निर्वहन करना पड़ता है. पर्षद व विभाग के विभिन्न दायित्व भी परस्पर विरोधाभासी प्रकृति के हैं. दोनों ही दायित्वों का निर्वाह एक साथ करना प्रासंगिक कानून के अनुरूप नहीं है.

आपको मालूम होगा कि कतिपय मुकदमों में जल प्रदूषण, निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम-1974 तथा वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम-1981 के प्रासंगिक प्रावधानों की न्यायिक समीक्षा करते हुए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) तथा सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के अध्यक्ष पद पर नियुक्त व्यक्ति को पर्यावरण का विशिष्ट ज्ञान होना चाहिए. उसे पर्यावरण में स्नातकोत्तर डिग्रीधारी होना आवश्यक है. मुझे नहीं पता कि अभी पर्षद के अध्यक्ष व अन्य विशिष्ट पदों पद पर पदस्थापित वन विभाग के पदाधिकारियों ने इस तरह का विशिष्ट ज्ञान हासिल किया है या नहीं.

उपरोक्त के आलोक में यह आवश्यक है कि अर्हता व विशिष्टता रखने वालों को ही पर्षद के अध्यक्ष एवं सचिव पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए, इस संबंध में विधि एवं कानून के प्रावधानों तथा एनजीटी सहित सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में पारित आदेशों के आलोक में आपके स्तर से आवश्यक कार्रवाई अपेक्षित है.

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