2018 के आंकड़े : झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल ”रिम्स” पर मरीजों के बढ़ते दबाव का दिख रहा असर, जानें
राजीव पांडेय रांची : रिम्स में वर्ष 2018 में हुई कुल 9,680 मौत में मेडिसिन विभाग में सबसे ज्यादा 5,139 मरीजों की मौत हुई हैं. मेडिसिन विभाग में 26,674 मरीजाें को भर्ती किया गया था. इसके बाद 1663 मरीजों की मौत न्यूरो विभाग में हुई है, जहां 8,271 मरीज भर्ती हुए थे. न्यूरो विभाग में […]
राजीव पांडेय
रांची : रिम्स में वर्ष 2018 में हुई कुल 9,680 मौत में मेडिसिन विभाग में सबसे ज्यादा 5,139 मरीजों की मौत हुई हैं. मेडिसिन विभाग में 26,674 मरीजाें को भर्ती किया गया था. इसके बाद 1663 मरीजों की मौत न्यूरो विभाग में हुई है, जहां 8,271 मरीज भर्ती हुए थे.
न्यूरो विभाग में हुई मौत के आंकड़े में 50 से 55 फीसदी मरीज दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद रिम्स में भर्ती हुए थे. वहीं शिशु रोग विभाग में एक साल मेें 1377 बच्चों की मौत हुई है, जो शिशु वार्ड व नियोनेटल वार्ड में इलाज करा रहे थे.
इस विभाग में 9081 बच्चों को भर्ती कर इलाज किया गया था. सर्जरी विभाग में भी एक साल में 1045 मरीजाें की मौत हुई है, जिनका इलाज विभिन्न वार्डों में किया जा रहा था. अगर महिलाओं की मौत की बात की जाये, तो स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में 134 महिलाओं की मौत इलाज के दौरान हुई है.
इधर, सुपर स्पेशयलिटी विंग के कार्डियोलॉजी विभाग में वर्ष 2018 में 144 मरीजों की मौत हुई है. यहां कई मरीज हार्टअटैक के बाद गंभीर अवस्था में इलाज के लिए पहुंचे थे. इसमें कई मरीजों की समय पर एंजियोग्राफी कर ब्लॉकेज का पता कर लिया गया और उनकी एंजियोप्लास्टी कर दी गयी. लेकिन, कई मरीजों की मौत एंजियाेप्लास्टी के बाद भी हो गयी. वहीं, शिशु सर्जरी विभाग में एक साल में 88 बच्चाें की मौत हो गयी है, जिसमें कई बच्चे कैंसर से पीड़ित थे, जिनको बचाना संभव नहीं था.
शिशु विभाग में 1377 बच्चों की मौत, सितंबर में सबसे ज्यादा : रिम्स के शिशु विभाग की बात की जाये, तो यहां 1377 बच्चों की मौत पिछले साल हुई. इनमें सबसे ज्यादा सितंबर में 152 बच्चों की हुई है. वहीं, अगस्त में 138, जुलाई में 136, अक्तूबर में 120, मार्च में 114, अप्रैल में 111, मई में 107 व जून में 106, नवंबर में 105, जनवरी में 93, फरवरी में 96 बच्चों की मौत हुई है.
विभाग के विशेषज्ञ बताते हैं कि राज्य के विभिन्न जिलाें के अलावा पड़ोसी राज्य से गंभीर अवस्था में परिजन इलाज के लिए बच्चों को लेकर लाते हैं. इसमें समय से पूर्व जन्म लिए बच्चे, कुपोषण व संक्रामक रोगों से पीड़ित बच्चे भी शामिल होते हैं. इनका इलाज पहले से निजी व अन्य अस्पतालों में हुआ रहता है, जो बाद में रिम्स रेफर कर देते हैं.
डब्लूएचओ की गाइड लाइन है कि अगर अस्पताल की मृत्युदर को 20 से 40 फीसदी कम करनी है, ताे आइसीयू व एचडीयू बेहतर होना चाहिए. हमारे यहां इसका पालन नहीं किया जा रहा है. हमारे यहां क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉक्टर और मैनपावर का पद सृजित है. शीघ्र नियुक्ति होगी. अाइसीयू को बेहतर बनाया जायेगा.
डॉ दिनेश कुमार सिंह, निदेशक, रिम्स
विभाग भर्ती हुए मरीज माैत
मेडिसिन 26,674 5,139
शिशु विभाग 9,081 1,377
सर्जरी 12,822 1,045
शिशु सर्जरी 721 85
हड्डी 4,224 64
न्यूरो सर्जरी 8,271 1,663
स्त्री विभाग 11,010 134
कार्डियोलॉजी 3,068 144
अंकोलॉजी 1443 4