रांची : किताबों में रूची बढ़े और पढ़ने की आदत खत्म ना हो. साहित्य की उलब्धता आसानी से हर जगह हो ऐसे ही कई संदेश लेकर एक छोटी सी गाड़ी में कविता की कई किताबें लेकर निकल पड़े हैं भुवनेश्वर के रहने वाले अक्षय और शताब्दी. दोनों के लिए यह सफर नया नहीं है. पहले भी दोनों भारत भ्रमण पर किताबें लेकर निकल चुके हैं. दोनों ने एक बड़े से ट्रक में हर तरह की किताबें लेकर 10 हजार से ज्यादा किलोमीटर का सफर तय किया. सड़क पर ही रुककर गाड़ी की डिक्की खोली और किताब की दुकान लग गयी.
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किताबों से रिश्ता जोड़ती है Walking Book Fair
रांची : किताबों में रूची बढ़े और पढ़ने की आदत खत्म ना हो. साहित्य की उलब्धता आसानी से हर जगह हो ऐसे ही कई संदेश लेकर एक छोटी सी गाड़ी में कविता की कई किताबें लेकर निकल पड़े हैं भुवनेश्वर के रहने वाले अक्षय और शताब्दी. दोनों के लिए यह सफर नया नहीं है. पहले […]
सड़क के किनारे दोनों सिर्फ किताबें नहीं बेचते, चर्चा करते हैं, सिर्फ राजनीति पर नहीं हर विषय पर, गली की समस्या से लेकर हर उस मुद्दे पर जिस पर युवा अपनी राय रखता है. अक्षय कहते हैं ,हम किताबें लेकर कई राज्यों का सफर व्यापार के लिए नहीं कर रहे. हमारी कोशिश है कि किताबें सबको आसानी से मिलनी चाहिए. आपका स्वागत है आइये पढ़िये, अच्छा लगे तक खरीदने की सोचिये. आजकल बच्चे कोर्स की किताबें पढ़कर पास हो जाते हैं और अच्छी नौकरी की तलाश में लग जाते हैं. वह नहीं जानते कि कोर्स कि किताबों के अलावा बाकि किताबें ना पढ़कर क्या छोड़ रहे हैं. किताबें समाज का दर्पण हैं एक राज्य से दूसरे राज्य की संस्कृति से परिचय कराती है. देश दुनिया से आपका रिश्ता जोड़ती है.
साल 2014 में पहली बार यह जोड़ी बैग में कुछ किताबें लेकर निकली थी. गांव और बस स्टैंड में किताब की दुकान लगायी. इसके बाद एक ट्रक लेकर भारत यात्रा पर निकले 20 राज्य 30 शहर से होता हुआ सफर वापस भुवनेश्वर पहुंचा था. शताब्दी कहती हैं हम हर साल कुछ महीने इस तरह के सफर पर निकलते हैं. हमारी अपनी लाइब्रेरी है बुक स्टॉल है और हम किताबें भी पब्लिश करते हैं.
इस जमाने में जब युवा सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त देते हैं. उन्हें हर चीज तुरंत चाहिए ऐसे में किताबों की तरफ कैसे लौट पायेंगे. इस सवाल पर अक्षय कहते हैं हम हमेशा मैगी, तो नहीं खा सकते. रोटी और सब्जी की जरूरत तो पड़ेगी वैसी हीं किताबें हैं. सिर्फ युवा ही किताबों से दूर नहीं गये हैं लोगों को लगता है पढ़ने की रूची कम हुई है लेकिन इस यात्रा से हमने महसूस किया है कि हर वर्ग के लोग किताब की तरफ वापस लौट रहे हैं. किताब के पन्नों की खुशबू उन्हें खींचती है.
अक्षय और शताब्दी का सफर अब अंतिम पड़ाव पर है. कोलकाता के बाद वह भुवनेश्वर वापस लौट जायेंगे. दोनों से जब अगली बार की यात्रा पर सवाल किया गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, सोचता हूं हम अगली बार बड़ी सी बस लेकर निकलें ताकि लोग अंदर किताबों के साथ टहल भी सकें. अभी से यह कहना मुश्किल है हम तो चाहते हैं कि हर बार इस तरह की यात्रा पर निकलें, लोगों का किताबों से रिश्ता जोड़ते रहें. कुछ उनकी सुनें कुछ अपनी कहे.
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