रांची : देश व झारखंड के जाने-माने शायर सामुएल दानिएल शौक जालंधरी का निधन सोमवार की रात आठ बजे हो गया. अपने जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले महीनों बीमार रहने के बाद पुरूलिया रोड स्थित अपने आवास पर उनका निधन हुआ. उनकी बेगम दौलत शौक पहले ही इस दुनिया से कूच कर गयी हैं. उनका पुत्र प्रो शशि शौक रांची के प्रतिष्ठित संस्थान एक्सआइएसएस में कार्यरत हैं.
शौक जालंधरी के हिंदी में दो काव्य संग्रह दर्द का दरिया और रोशनी का सफर प्रकाशित हो चुका है. उनका तीसरा काव्यसंग्रह समंदर का सोच उर्दू में प्रकाशित हुआ है. उनका जन्म 12 फरवरी, 1929 को पंजाब के जालंधर शहर के संसारपुर गांव में हुआ था, लेकिन पुत्र के साथ वर्षों से रांची में ही रह रहे थे और यहां के मुशायरों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे. उनकी मातृभाषा पंजाबी थी, मगर उर्दू भाषा से उन्हें इश्क की हद तक लगाव था. इसी वजह से छत्तीसगढ़ की सरकार ने उन्हें अक्तूबर 2003 में उर्दू अकादमी का उपाध्यक्ष बनाया था.
उनका एक शेर ‘ऐ शौक मुझको तख्त-ए-सुलेमां से क्या गरज/फिरते हैं हम तो प्यार की दौलत लिये हुए’ बहुत मशहूर है. शायर नसीर अफसर ने कहा कि मैं उनका नाम आकाशवाणी और दूरदर्शन के मुशायरों में जोड़वा कर खुश होता था कि ऐसे ख्याति प्राप्त शायर के साथ मुझे पढ़ने का यादगार मौका मिल सकेगा. आज उनके न रहने से मेरी आंखें नम हैं.