-रजनीश आनंद-
रांची : झारखंड में बाल अधिकारों की स्थिति यह है कि सबसे अधिक कुपोषित बच्चे झारखंड में हैं, बाल विवाह सबसे ज्यादा यहीं पर होता है, ड्रॉपआउट के मामलों में भी झारखंड बिहार के बाद दूसरे नंबर पर है, बावजूद इसके झारखंड राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर का कहती हैं कि प्रदेश में समस्याएं तो हैं, लेकिन उनके निराकरण के लिए बहुत काम हो रहा है, अफसोस यह है कि उसे जिस तरह से दिखना चाहिए वह नहीं दिखता है. इसका कारण है आपसी सामंजस्य की कमी.
बावजूद इसके यह एक सच्चाई है कि प्रदेश में बाल अधिकार सुरक्षित नहीं हैं. इसका प्रमुख कारण यह है कि लोगों में जागरूकता की कमी है. काम तो कई स्तर पर हो रहे हैं, लेकिन रिजल्ट उस तरह से नहीं मिल पा रहा है. अगर आयोग, बाल अधिकार के लिए काम करने वाले संगठन और मीडिया भी इसके लिए एक साथ आवाज उठायें, तो शायद परिणाम बेहतर होगा और हम एक सुरक्षित बचपन के सपने को साकार कर पायेंगे.
आरती कुजूर ने कहा कि बाल अधिकार सुरक्षित हो, इसके लिए यह जरूरी है कि लोगों की मानसिकता में बदलाव लाया जाये. साथ ही जो काम हम कर रहे हैं उसका फॉलोअप हो. मसलन अगर कहीं से हमें शिकायत मिलती है कि बाल विवाह हो रहा है, तो हम उसे रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाते हैं, लेकिन उसके बाद यह ध्यान नहीं दिया जाता है कि बाद में क्या स्थिति हुई. अकसर यह देखा गया है कि फॉलोअप की कमी की वजह से जिस वक्त हम कार्रवाई करते हैं उस वक्त को शादी रूक जाती है, लेकिन बाद में शादी करा दी जाती है.
इससे निपटने के लिए हमने ‘चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी’ राज्य से लेकर ग्राम स्तर तक बनाने की योजना बनायी. यह कमेटी स्टेट, डिस्ट्रिक्ट, ब्लॉक और विलेज के स्तर पर काम कर रही है. इस तरह की 33 हजार कमेटी बनाने की योजना है. इस कमेटी में आंगनबाड़ी सेविकाएं, पंचायत के चुने हुए लोग, पारंपरिक प्रधान और बाल संसद के लोग चुने जाते हैं. साथ ही बाल अधिकार के लिए काम करने वाले सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं से भी हमारी यह गुजारिश होती है कि अगर आपको कहीं भी बाल अधिकारों का उल्लंघन होता दिखे, तो उस बारे में सूचना दें और तत्काल कार्रवाई करवायें.
आरती कुजूर ने बताया कि गोड्डा जिले से सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले सामने आते हैं, साथ ही सराइकेला से भी हमारे पास बाल विवाह के कई मामले दर्ज हुए हैं. कई बार ऐसा भी हुआ है कि लोग शिकायत तो करते हैं लेकिन अपनी पहचान छुपाना चाहते हैं. हमने ऐसे मामलों में भी पहल की. पोक्सो एक्ट के भी कई मामले सामने आते हैं. इन मामलों में हम पीड़ित लड़की को तो रेसक्यू कराकर कस्तूरबा विद्यालय में डाल देते हैं, लेकिन लड़कों को लेकर समस्या है. उनके लिए कोई उचित जगह नहीं है. आजकल लड़कों के साथ यौन शोषण के कई मामले सामने आ रहे हैं, जो गंभीर तो हैं ही चौंकाने वाले भी हैं.
दरअसल हमारे समाज की सोच ऐसी है कि लड़कों के साथ यौन अपराध की घटनाएं नहीं होती हैं, जबकि सच्चाई इससे इतर है. कई बार हमने स्वत: संज्ञान लेकर भी बाल अधिकारों को सुरक्षित किया है. शिकायत दर्ज नहीं की स्थिति में जब हमें अखबारों या सोशल मीडिया के जरिये घटना का पता चलता है, तो हम स्वत: संज्ञान लेते हैं.
देशभर में बाल विवाह के सबसे अधिक मामले झारखंड में
NFHS के अनुसार देश भर में बाल विवाह के सबसे ज्यादा मामले झारखंड में देखे गये हैं. झारखंड में बाल विवाह का दर 38 प्रतिशत है. सबसे अधिक बाल विवाह गोड्डा जिले में होता है, जहां बाल विवाह की दर 63.5 प्रतिशत है. गढ़वा दूसरे नंबर पर है जहां 58.8 प्रतिशत और देवघर में 52.7 प्रतिशत बाल विवाह के मामले दर्ज होते हैं. रांची में भी बाल विवाह के मामले सामने आते हैं, जहां यह आंकड़ा 28.1 प्रतिशत का है.
बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा
NCRB के आंकड़ों के वर्ष 2014 से 2016 तक बच्चों के खिलाफ अपराध में झारखंड में लगातार बढ़ोत्तरी हुई. 2014 में 426 2015 में 406 और 2016 में 717 मामले दर्ज हुए. वहीं ट्रैफिकिंग के 426 मामले दर्ज हुए. रेप के 348 और पॉक्सो एक्ट के 205 मामले दर्ज हुए. Save the children के आंकड़ों के अनुसार 2015 में POCSO एक्ट के मामले में काफी वृद्धि हुई और यह 2014 के 8,904 से बढ़कर 14,913 हो गया.
झारखंड में 47.8 प्रतिशत बच्चे कुपोषित
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4(एनएफएचएस-4) 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पांच वर्ष तक के 47.8 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से करीब चार लाख बच्चे अति कुपोषित हैं.
झारखंड में ड्रॉपआउट की दर 36.64 प्रतिशत
यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यू-डाइस) के अनुसार झारखंड में ड्रॉप आउट की दर वर्ष 2014-15 में 23.5प्रतिशत थी जो 2016-17में 36.64 हो गयी.