रांची : सहेजी हुई चिट्ठियां समाज का आईना: जस्टिस चौधरी

रांची : उपन्यास ‘सहेजी हुई चिट्ठियां’ कामकाजी महिलाअों की जिंदगी के काफी करीब है. उनकी जिंदगी को यह छूती है. उपन्यास समाज का आईना है. उक्त बातें हाइकोर्ट की जस्टिस अनुभा रावत चाैधरी ने कही. वे बताैर मुख्य अतिथि शनिवार को डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोष संस्थान मोरहाबादी के सभागार में सहेजी हुई चिट्ठियां उपन्यास […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 10, 2019 8:37 AM
रांची : उपन्यास ‘सहेजी हुई चिट्ठियां’ कामकाजी महिलाअों की जिंदगी के काफी करीब है. उनकी जिंदगी को यह छूती है. उपन्यास समाज का आईना है.
उक्त बातें हाइकोर्ट की जस्टिस अनुभा रावत चाैधरी ने कही. वे बताैर मुख्य अतिथि शनिवार को डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोष संस्थान मोरहाबादी के सभागार में सहेजी हुई चिट्ठियां उपन्यास के लोकार्पण समारोह को संबोधित कर रही थीं.
जस्टिस चाैधरी ने कहा कि शारीरिक संबंध का आकर्षण कम होने लगता है, तो पति-पत्नी में दूरियां बढ़ने लगती हैं. भटकाव का संबंध शारीरिक संबंध से हो, यह जरूरी नहीं है. कामकाजी महिलाएं एक समय ऐसा निर्णय लेती हैं कि उन्हें बच्चा नहीं चाहिए. महिला-पुरुष काम करते हैं.
खूब काम करते हैं आैर खूब पैसे कमाते हैं, यह आज का ट्रेंड है. आज के हालात को देख कर ऐसा लगता है कि भविष्य में तलाक की घटनाएं बढ़ेंगी. उपन्यास को पढ़ने से समाज की वर्तमान परिस्थिति का पता चलता है. उपन्यास के लेखक जस्टिस (रि) विक्रमादित्य प्रसाद ने नारी मन के हर कोने को पुस्तक में उकेरा है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे साहित्यकार डॉ अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि किसी जज ने इतनी अधिक रचनात्मकता दिखायी हो. लेखक जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद ने काफी करीब से समाज को पढ़ा, देखा आैर अपने उपन्यास में उकेरा है.
भोजपुरी के साहित्यकार हरेराम त्रिपाठी चेतन ने कहा कि सहेजा उसे जाता है, जिससे लगाव होता है. प्रिय होता है. उपन्यास का नाम पढ़ने के लिए आकर्षित करता है. साहित्यकार हैरत फरूखाबादी ने लेखक के कृतित्व पर कहा कि उनमें न तो मुझे मुसलमान नजर आया, न हिंदू नजर आया, न ईसाई नजर आया, मुझे इनमें इंसान नजर आया. टीआरआइ के निदेशक रणेंद्र ने कहा कि उपन्यास के माध्यम से लेखक ने स्त्री मन को पकड़ने की कोशिश की है.
आइपीएस रहे प्रशांत कर्ण ने कहा कि लेखक के कृतित्व में याैवन झलकता है. इससे पूर्व उपन्यास का लोकार्पण विधिवत तरीके से किया गया. अनिता रश्मि, डॉ राजश्री जयंती ने कृति की चर्चा की. मधु स्मिता ने अतिथियों का स्वागत किया. संचालन मुक्ति शाहदेव ने किया. धन्यवाद ज्ञापन प्रभात प्रकाशन के राजेश शर्मा ने किया.

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