चालीसा का पुण्यकाल- 7 : क्या हम विश्वास के लायक हैं?
हर्बल मेडिसिन बनानेवाली कंपनी के साइंटिस्ट कुछ दुर्लभ प्रजाति की जड़ी-बूटियों की खोज के लिए एक जंगल का खाक छान रहे थे. कई दिन भटकने के बाद उन्होंने दूरबीन से कुछ जड़ी-बूटियों की पहचान कर ली. पर समस्या यह थी कि जड़ी-बूटियां पहाड़ी की छोर पर थीं और उन तक पहुंचने का सिर्फ एक उपाय […]
हर्बल मेडिसिन बनानेवाली कंपनी के साइंटिस्ट कुछ दुर्लभ प्रजाति की जड़ी-बूटियों की खोज के लिए एक जंगल का खाक छान रहे थे. कई दिन भटकने के बाद उन्होंने दूरबीन से कुछ जड़ी-बूटियों की पहचान कर ली. पर समस्या यह थी कि जड़ी-बूटियां पहाड़ी की छोर पर थीं और उन तक पहुंचने का सिर्फ एक उपाय था कि ऊपर से रस्सी लटकायी जाये, जिसको पकड़ कर कोई उन पौधों को उखाड़ लाये.
उन साइंटिस्ट में से किसी को भी रस्सी से लटकने का अनुभव नहीं था. उनकी दुविधा को गांव का एक लड़का उत्सुकता से देख रहा था. एक साइंटिस्ट ने लड़के को ऑफर दिया अगर वह रस्सी पर लटक हुए उन पौधों को ला दे, तो उसे 5000 रुपये मिलेंगे. लड़के ने पहाड़ी की छोर को देखा. चट्टान बिलकुल सीधी खड़ी थी. वहां से गिरने का अर्थ निश्चित मौत था. उसने कुछ सोच कर कहा-कुछ देर रुकें.
मैं तुरंत वापस आता हूं. जब लड़का वापस आया, तो उसके साथ एक बुजुर्ग व्यक्ति थे. लड़के ने कहा- मैं रस्सी से लटक कर छोर तक पहुंच जाऊंगा, बशर्ते यह व्यक्ति, जो मेरे पिता हैं, इस रस्सी को पकड़ें. उसे अपने पिता पर भरोसा था कि वे उससे प्यार करते हैं और किसी भी कीमत पर वह रस्सी नहीं छोड़ेंगे.
किसी के भरोसे के लायक बनना, किसी का भरोसा जीतना, किसी के भरोसे पर खरा उतरना बड़ी बात है. यह तभी संभव होता है, जब हम छोटी- छोटी बातों में ईमानदार और सच्चे बनते हैं. चालीसा काल में हम स्वयं से प्रश्न करें कि क्या हम अपने परिवार में, अपने रिश्ते में, अपने दोस्तों के बीच या अपने कार्यक्षेत्र में विश्वास के
लायक हैं?
फादर अशोक कुजूर, डॉन बॉस्काे यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज बरियातू के निदेशक