चालीसा का पुण्यकाल- 23 : ईश्वर को धन्यवाद देने का समय
एक धनी व्यक्ति ने अपनी खिड़की से देखा कि एक भिखारी कचरे के डिब्बे से कुछ निकाल कर खा रहा है़ उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि वह उस भिखारी की तरह गरीब नहीं है़ कचरे के डिब्बे से खाना निकाल कर खाते हुए भिखारी ने देखा कि एक एंबुलेंस एक घायल आदमी को उठा […]
एक धनी व्यक्ति ने अपनी खिड़की से देखा कि एक भिखारी कचरे के डिब्बे से कुछ निकाल कर खा रहा है़ उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि वह उस भिखारी की तरह गरीब नहीं है़ कचरे के डिब्बे से खाना निकाल कर खाते हुए भिखारी ने देखा कि एक एंबुलेंस एक घायल आदमी को उठा कर ले जा रही है, जिसका पैर टूट गया था़ भिखारी ने ईश्वर को मन ही मन धन्यवाद दिया कि वह गरीब तो है, लेकिन उसके दोनों पैर सलामत है़ं जिस व्यक्ति का पैर टूटा था, वह अस्पताल में भर्ती हुआ़
उसने देखा कि कुछ लोग एक मृत व्यक्ति को स्ट्रेचर पर ले जा रहे थे़ उस व्यक्ति ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसका तो सिर्फ पैर टूटा है, लेकिन वह अब भी जीवित है़ ईश्वर को धन्यवाद देेने के लिए हमारे पास बहुत से सारे कारण है़ं
दिन की शुरुआत में ही जिंदगी की चिंता का अर्थ है कि आप अभी तक जिंदा है़ं पार्टी के बाद कचरा साफ करने का मतलब है कि आपके कई दोस्त है़ं
छत जो रिस रहा है, उसका का मतलब है कि आपका कोई घर है़ आपसे प्रेम करने वाले प्रियजन हैं, पहनने के लिए कपड़े हैं, खाने के लिए थाली में भोजन है, पैसे कमाने के लिए रोजगार है, हमारे बेटे- बेटियां हैं, पढ़ने की सुविधा है़ क्या ये सारी चीजें ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए क्या काफी नहीं हैं? हमारे पास कम हो सकता है, लेकिन जो कुछ है, वह कई लोगों की तुलना में ज्यादा भी है़ चालीसा काल में हम जीवन में सभी वरदानों एवं सुख-दुख के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते रहे़ं
फादर अशोक कुजूर, डॉन बॉस्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज बरियातू के निदेशक