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रांची : तूफानों में नर्गिस, आलिया तितली व लैला भी शामिल

मनोज सिंह, रांची : तूफानों के नामकरण का इतिहास काफी रोचक है. यूरोपियन देशों में तो यह परंपरा तो 50-60 के दशक से ही चल रहा है. भारतीय महाद्वीप में तूफानों के नाम देने संबंधी प्रस्ताव पर विचार 2000 में हुआ था. इस बार नाम देने की बारी बांग्लादेश की थी, उसी के सुझाव पर […]

मनोज सिंह, रांची : तूफानों के नामकरण का इतिहास काफी रोचक है. यूरोपियन देशों में तो यह परंपरा तो 50-60 के दशक से ही चल रहा है. भारतीय महाद्वीप में तूफानों के नाम देने संबंधी प्रस्ताव पर विचार 2000 में हुआ था. इस बार नाम देने की बारी बांग्लादेश की थी, उसी के सुझाव पर इस खतरनाक तूफान का नाम फनी (फणि) रखा गया है. बांग्लादेश में सांप का फनी कहा जाता है.

तूफानों का नाम देने की शुरुआत 50 के दशक में हुई है. तूफान का नाम देने के लिए वर्णमाला के हिसाब से लिस्ट बनी है. इसके लिए क्यू, यू, एक्स, वाइ और जेड अक्षर से शुरू होनेवाले नामों का प्रयोग नहीं होता है. अटलांटिक और पूर्वी उत्तर प्रशांत क्षेत्र में आने वाले तूफानों का नाम देने के लिए छह लिस्ट बनी हुई है. उसी में से एक नाम को चुना जाता है. अटलांटिक क्षेत्र में आने वाले तूफानों के लिए 21 नाम मौजूद हैं.
तूफानों के नामकरण के लिए ऑड-ईवन फॉर्मूले का भी प्रयोग होता है. इवेन साल (2002, 2008) में चक्रवाती तूफान आया है, तो उसे आदमी का नाम दिया जाता है. वहीं, ऑड साल (2003, 2005) में चक्रवाती तूफान आया है, तो उसे औरत का नाम दिया जाता है. एक नाम को छह साल के अंदर दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
एशियन महादेश में अब तक आये तूफान
2004 : ओनिल, अग्नि 2005 : हिबरू, प्यार, बाज, फानूस 2006 : माला 2007 : आकाश, गोनू, येमिन, सिदर 2008 : नर्गिस, रश्मि, निशा, काईमूक 2009 : बिजली, आलिया, फायन, वार्ड 2010 : लैला, बंथू, फेथ, गिरी, जल 2011 : केली, थाने 2012 : मुरजन, नीलम 2013 : विवारू, फैलिन, हेलन, लहर, मेदी
2014 : नानक, हुदहुद, निलोफर
2015 : ओसूबा, कोमून, चपाला, मेध 2016 : रोनू, कयांत, नादा, वारधा
2017 : मराथू, मोरा, ओकाचू 2018 : सागर, मिकुनू, दायी, ल्यूबिन, तितली, गाजा, फेताई 2019 : फनी.

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