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झारखंड में अब तक लागू नहीं हो सका गुड समारिटन लॉ

केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने दो वर्ष पहले ही जारी किया था दिशा-निर्देश, लेकिन करीब 85 फीसदी लोगों को कानून की जानकारी नहीं है घायल को सहायता करने वाले जानें अपना अधिकार रांची : सड़क दुर्घटना में घायल लोगों को अस्पताल पहुंचाने तथा उन्हें मदद करनेवालों (समारिटन) को उनके अधिकार देने संबंधी कानून झारखंड ने अब […]

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केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने दो वर्ष पहले ही जारी किया था दिशा-निर्देश, लेकिन
करीब 85 फीसदी लोगों को कानून की जानकारी नहीं है
घायल को सहायता करने वाले जानें अपना अधिकार
रांची : सड़क दुर्घटना में घायल लोगों को अस्पताल पहुंचाने तथा उन्हें मदद करनेवालों (समारिटन) को उनके अधिकार देने संबंधी कानून झारखंड ने अब तक नहीं बनाया है. जबकि, केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने दो वर्ष पहले ही इससे संबंधित दिशा-निर्देश जारी किया था.
दरअसल, सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने को लोग किसी मुसीबत में फंसने जैसे मानते हैं. इसकी वजह भी स्पष्ट रही है. पुलिस व न्यायालय के चक्कर में पड़ जाना. सड़क दुर्घटना के पीड़ित को अस्पताल पहुंचाने वाले लोगों के लिए देश में गुड समारिटन (मदद करने वाला) लॉ संबंधी दिशा निर्देश जारी हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2014 में केंद्रीय परिवहन मंत्रालय को यह निर्देश दिया था कि वह इस संबंध में किसी कानून के पारित होने तक सड़क दुर्घटना में घायल किसी शख्स को गोल्डेन आवर में अस्पताल पहुंचाने वाले को कानूनी व अन्य झमेले से बचाने के लिए गाइड लाइन जारी करे. इसके बाद 2016 में मंत्रालय ने एक तय फॉरमेट में सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को यह निर्देश दिया था कि वे गुड समारिटन को कानूनी व अन्य झमेले से बचाने के लिए कानून पारित करें.
कर्नाटक ने यह कानून बना लिया है. दिल्ली, राजस्थान व महाराष्ट्र में इसकी प्रक्रिया तेज है. पर झारखंड ऐसे कानून के प्रति बहुत सजग नहीं है. अस्पताल प्रबंधन को भी मुख्य द्वार पर ही समारिटन के अधिकारों की जानकारी वाला बोर्ड लगाना है. इधर, रांची सहित अन्य शहरों के ज्यादातर अस्पतालों में यह बोर्ड नहीं है.
क्या हैं समारिटन के अधिकार: केंद्रीय परिवहन मंत्रालय के दिशा निर्देश के अनुसार यदि आप सड़क दुर्घटना में घायल किसी व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाते हैं, तो आपको अस्पताल प्रबंधन व पुलिस परेशान नहीं करेगी.
गुड समारिटन को यह अधिकार है कि वह अपना निजी परिचय न दे. अस्पताल प्रबंधन या पुलिस, किसी फॉर्म या पेपर पर व्यक्तिगत परिचय संबंधी कोई जानकारी उसकी इच्छा के बगैर नहीं ले सकती. पुलिस उससे पूछताछ नहीं करेगी तथा अस्पताल प्रबंधन घायल व्यक्ति को एडमिट करने या फर्स्ट एेड सहित अन्य इलाज का खर्च समारिटन से नहीं लेगा. यदि समारिटन पुलिस का गवाह बनना चाहता है, तो पुलिस उसके द्वारा तय थाने व समय पर उससे जानकारी लेगी. वह पुलिस को घर पर भी घटना संबंधी जानकारी देने के लिए बुला सकता है. ऐसी स्थिति में पुलिस सादे लिबास में उसके घर जायेगी. समारिटन को प्रत्यक्षदर्शी बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
सेव लाइफ फाउंडेशन की सर्वे रिपोर्ट : सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संस्था सेव लाइफ फाउंडेशन ने देश के 11 शहरों (दिल्ली, जयपुर, कानपुर, वाराणसी, लुधियाना, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, मुंबई, इंदौर व कोलकाता) में 3667 लोगों के बीच गुड समारिटन लॉ संबंधी सर्वे किया था. इसमें पता चला कि सिर्फ 16 फीसदी लोगों को ही इस लॉ की जानकारी है. सर्वे में शामिल 29 फीसदी लोगों ने कहा कि वह घायल को अस्पताल पहुंचायेंगे, 28 फीसदी ने कहा कि वह एंबुलेंस बुलायेंगे तथा 12 फीसदी लोगों ने कहा कि वह घटना की जानकारी पुलिस को देंगे.

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