रांची : संगठनात्मक कमजोरी या औचित्यहीन सिद्धांत
बिपिन सिंह, रांची : लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद वामपंथियों के गढ़ में भी भाजपा एक मजबूत विकल्प के रूप में नजर आयी है. कोडरमा, हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद में कभी भाकपा का असर था, लेकिन अब स्थिति यह है कि वहां वाम गठबंधन को भाजपा के मुकाबले कुछ हजार वोटों से ही संतोष करना […]
बिपिन सिंह, रांची : लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद वामपंथियों के गढ़ में भी भाजपा एक मजबूत विकल्प के रूप में नजर आयी है. कोडरमा, हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद में कभी भाकपा का असर था, लेकिन अब स्थिति यह है कि वहां वाम गठबंधन को भाजपा के मुकाबले कुछ हजार वोटों से ही संतोष करना पड़ा.
लाल झंडे के दम पर राजनीति करनेवाले वाम उम्मीदवारों को अधिकतम 3.4 प्रतिशत तो न्यूनतम .02 प्रतिशत वोट से संतोष करना पड़ा. आखिर लोगों के अधिकारों के लिए जूझने वाले वामपंथी दल चुनाव दर चुनाव पीछे क्यों होते जा रहे हैं.
क्या यह कोई संगठनात्मक कमजोरी है या फिर माैजूदा दौर में कम्युनिष्टों का मूल सिद्धांत औचित्यहीन होकर रह गया है. झारखंड में वामपंथी पार्टियों में सबसे अधिक नुकसान भाकपा को हुआ है. समय के साथ उसकी अपनी जिद्द, संघर्ष व आंदोलनों से ऊपर उठ कर विकास का मॉडल पेश नहीं करना और अकेले चलने की नीतियों ने उसका भारी नुकसान किया. आज भी लोग मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़े लगते हैं, लेकिन स्पष्ट विचारधारा वाले नेता और पार्टी की कमी साफ झलकती है.
राष्ट्रीय स्तर पर पूरे वामपंथी आंदोलन को नुकसान पहुंचाने में, जहां इन पार्टियों में बिखराव होता चला गया, वहीं क्षेत्रीय दलों ने इनके गैरबराबरी, सामाजिक न्याय, प्राकृतिक संसाधनों का वितरण, महंगाई, भ्रष्टाचार, गरीबी, दलित राजनीति जैसे एजेंडे को हथिया लिया है. वामपंथी ताकतों के लिए 2019 का साल वोट शेयर और सीटों के लिहाज से सबसे निचले पायदान पर है.
वामदल के किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले
संसदीय क्षेत्र पार्टी प्रत्याशी कुल वोट प्राप्त वोट वोट प्रतिशत
हजारीबाग भाकपा भुवनेश्वर मेहता 10,80929 32,109 2.97
साहेबगंज माकपा गोपीन सोरेन 10,47,657 35,586 3.4
पलामू भाकपा मदन राम 10,80929 2,420 0.2
पलामू भाकपा माले सुषमा मेहता 12,09747 5,004 0.41
कोडरमा भाकपा माले राजकुमार यादव 12,09541 68,207 5.64
कोडरमा फारवर्ड ब्लॉक शिवनाथ साव 12,09541 4,060 .34