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रांची : नगर निगम और एस्सेल इंफ्रा ने राजधानी को नर्क बना दिया

जिस शहर का नगर निकाय अपने नागरिकों की सुविधाओं के प्रति जितना सजग, समर्पित और जिम्मेदार होगा, उस शहर की सफाई व्यवस्था उतनी ही बेहतरीन होगी. शायद इसलिए मध्य प्रदेश के दो शहर इंदौर और भोपाल देश में सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर हैं. खैर, झारखंड की राजधानी […]

जिस शहर का नगर निकाय अपने नागरिकों की सुविधाओं के प्रति जितना सजग, समर्पित और जिम्मेदार होगा, उस शहर की सफाई व्यवस्था उतनी ही बेहतरीन होगी.
शायद इसलिए मध्य प्रदेश के दो शहर इंदौर और भोपाल देश में सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर हैं. खैर, झारखंड की राजधानी रांची इस मामले में काफी पीछे है, क्योंकि यहां पब्लिक बॉडी कहा जानेवाला रांची नगर निगम अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है.
हालांकि, पिछले दो साल से हो रहे स्वच्छ सर्वेक्षण प्रतियोगिता के दौरान रांची नगर निगम स्वच्छता की विभिन्न श्रेणियों में एक-दो पुरस्कार हासिल कर अपनी पीठ थपथपा रहा है. जबकि, सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है. प्रस्तुत है राजधानी रांची में स्वच्छता की सच्चाई को उजागर करती संवाददाता उत्तम महतो और फोटो जर्नलिस्ट राज कौशिक की यह रिपोर्ट.
राजधानी रांची की सफाई व्यवस्था इन दिनों भगवान भरोसे रेंग रही है. पिछले 15 दिनों से शहर के ज्यादातर इलाकों में कचरे का उठाव बंद है. इधर, दो दिनों पहले हुई बारिश के कारण जगह-जगह जमा कचरे के ढेर से अब बदबू उठने लगी है. रही-सही कसर आवारा पशु पूरी कर देते हैं.
कचरे के ढेर पर जमा ये आवारा पशु कचरे को जहां-तहां बिखेर देते हैं, जिससे लोगों को सड़क से गुजरना भी मुश्किल होता जा रहा है. हालत तो यह है कि कचरे का ढेर राज्य सरकार के बड़े अधिकारियों और मंत्रियों के आवास के आसपास भी फैला हुआ है. लेकिन उसका उठाव नहीं हो रहा है.
कहने में कोई गुरेज नहीं कि इस अव्यवस्था के लिए रांची नगर निगम ही जिम्मेदार है. राजधानी में कुल 53 वार्ड हैं, जिनमें से 20 की सफाई का जिम्मा खुद रांची नगर निगम के पास है. शेष 33 वार्डों की सफाई निजी कंपनी एस्सेल इंफ्रा के हाथों में है. फिलहाल, रांची नगर निगम एस्सेल इंफ्रा के साथ हुए एकरारनामे को रद्द कर उसे टर्मिनेट करने की तैयारी कर रहा है.
नगर निगम का आरोप है कि कंपनी ने एकरारनामे का उल्लंघन किया है. गौर करनेवाली बात यह है कि राजधानी की सफाई के लिए एस्सेल इंफ्रा का चयन रांची नगर निगम ने ही किया था. खैर, इस खींचतान की वजह से कंपनी के हिस्से वाले 33 वार्डों में कचरे का उठाव लगभग बंद हो चुका है. डोर-टू-डोर कचरा उठाने वाले वाहन मिनी कचरा ट्रांसफर स्टेशन में ही खड़े हैं. इधर, नगर निगम के हिस्से वाले 20 वार्डों में भी सफाई के नाम पर खानापूर्ति ही हो रही है. कुल मिलाकर नगर निगम और एस्सेल इंफ्रा ने राजधानी को नर्क बना कर छोड़ दिया है.
3.5 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होते हैं हर महीने सफाई के नाम पर
नगर निगम का दावा है कि राजधानी की सफाई व्यवस्था पर हर माह 3.5 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो रहे हैं. इसमें से एस्सेल इंफ्रा के हिस्सेवाले 33 वार्डों की सफाई के लिए हर माह 85-90 लाख रुपये दिये जाते हैं.
शेष राशि रांची नगर निगम के जिम्मे वाले 20 वार्डों की सफाई में खर्च होते हैं. हालांकि, कई लोग यह सवाल भी उठाते हैं कि जब नगर निगम के पास एस्सेल इंफ्रा की तुलना में कम वार्डों की सफाई का जिम्मा है, तो वह उससे दोगुनीराशि कहां खर्च कर रहा है.
तीन माह से चल रही है फेंकाफेंकी
राजधानी की सफाई व्यवस्था को मॉडल बनाने का दावा करनेवाली कंपनी एस्सेल इंफ्रा को नौ मार्च 2019 को हुई निगम बोर्ड की बैठक में ही टर्मिनेट करने का फैसला ले लिया गया था. लेकिन इसके तुरंत बाद आचार संहिता लग गयी.
इस कारण नगर निगम ने कंपनी को हटाने का प्रस्ताव दो माह बाद विभाग के पास भेजा. यहां भी नगर विकास विभाग ने निगम से कहा कि चूंकि कंपनी के साथ एकरारनामा निगम ने किया है, इसलिए निगम कंपनी को हटाने में सक्षम है. निगम ही अब तैयारी करे कि कैसे कंपनी को हटाने के बाद नये सिरे से निगम शहर की सफाई व्यवस्था संभालेगा.
कंपनी का कार्य संतोषजनक नहीं है. इतने अल्टीमेटम देने के बाद भी काम में सुधारन होना यह दर्शाता है कि कंपनी काम करने के लिए इच्छुक नहीं है. कंपनी को हटाने की प्रक्रिया चल रही है. निगम भी यह सर्वे करवा रहा है कि किस मोहल्ले में कितने सफाई कर्मचारियों की जरूरत है. बहुत जल्द हम पूरे शहर को अपने अंडर में लेंगे. हम कंपनी के सारे कर्मचारियों का नगर निगम में विलय करायेंगे. कंपनी के सारे वाहन को भी हैंडओवर लेकर नये सिरे से शहर को सुंदर बनाया जायेगा.
आशा लकड़ा, मेयर, रांची नगर निगम
दो साल में 18 से अधिक बार हड़ताल कर चुके हैं सफाई कर्मचारी
एस्सेल इंफ्रा ने दो अक्तूबर 2016 से राजधानी की सफाई व्यवस्था का जिम्मा अपने हाथ में लिया था. शुरुआत में कंपनी ने केवल पांच वार्डों में सफाई का कार्य प्रारंभ किया था. उदघाटन समारोह में कंपनी के अधिकारियों ने दावा किया था कि अगले एक साल के अंदर शहर के सभी 53 वार्डों में कंपनी सफाई व्यवस्था का दायित्व संभाल लेगी.
कंपनी शहर को इंदौर व पुणे जैसा सुंदर बनायेगी और यहां के लोग गर्व से यह कह सकेंगे कि हम झारखंड के राजधानी में रहते हैं. लेकिन कंपनी के ये सारे दावे हवा में ही रह गये. वेतन, ईएसआइ सहित अन्य मांगों को लेकर कंपनी के कर्मचारियों ने पिछले ढाई सालों में 18 बार से अधिक समय हड़ताल किया. इस हड़ताल के कारण भी शहर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी.
हर दिन 650 टन कचरा निकलता है 1.88 लाख घरों से
नगर निगम के आंकड़े बताते हैं कि राजधानी में दो लाख से अधिक मकान हैं. इमनें प्रतिदिन 650 टन से अधिक कचरा निकलता है.
लेकिन इसमें से केवल 550 टन कचरे का ही उठाव निगम और एस्सेल इंफ्रा अपने संसाधनों से कर पाते हैं. यानी शहर की गलियों में प्रतिदिन 100 टन से अधिक कचरा यूं ही पड़ा रह जाता है. लंबे समय उठाव नहीं होने के कारण यही कचरा फिर नालों में जाकर गिरता है, जिससे नाले जाम हो जाते हैं या फिर नालों के माध्यम से यह कचरा नदियों में जाकर गिरता है.
20 वार्डों की सफाई के लिए नगर निगम के पास उपलब्ध संसाधन
लेबर व कुली 1296
ट्रैक्टर 156
टाटा एस 20
कॉम्पैक्टर 03
जेसीबी 05
सुपरवाइजर 53
जोनल सुपरवाइजर 04
33 वार्डों की सफाई के लिए एस्सेल इंफ्रा के पास उपलब्ध संसाधन
लेबर, कुली व ड्राइवर 900
टाटा एस 165
काॅम्पैक्टर 29
हुक लोडर 13
इन क्षेत्रों की हालत सबसे नारकीय
अपर बाजार मैकी रोड, डेली मार्केट, राजभवन के समीप, कचहरी, वर्द्धवान कंपाउंड, मोरहाबादी, हातमा बस्ती, भीठा बस्ती, अपर बाजार, कोकर, तिरिल बस्ती, रातू रोड, मधुकम, विद्यानगर, यमुना नगर, बूटी बस्ती, बड़गाईं, एदलहातू, हरिहर सिंह रोड, इंद्रपुरी, शिवपुरी आदि.
क्या कहते हैं शहर के लोग
एक सप्ताह से यहां कचरे का ढेर लगा है. सफाई के नाम पर नगर निगम हर महीने हमसे 40 रुपये वसूलता है, लेकिन सफाई नहीं हो रही है. कचरे के बदबू से जीना मुहाल है.
राम मोहन, तिरिल बस्ती, वार्ड-10
पिछले 10 दिनों से कचरे का उठाव नहीं हुआ है. बारिश के पानी में यह कचरा इधर-उधर फैल रहा है. कचरे से उठ रही बदबू ने हम लोगों का जीना दूभर कर दिया है.
चंद्रशेखर साहा, पीस रोड, वार्ड-08
हाल के दिनों में नगर निगम के सफाईकर्मियों के दर्शन दुर्लभ हो गये हैं. शिकायत करने पर केवल आश्वासन दिया जाता है. इसके बावजूद कचरा उठानेवाला वाहन नहीं आता है.
दिव्यांशु कुमार, लोहराकोचा
पहले हर दो दिन में कचरा उठाने वाला वाहन आ जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. अपार्टमेंट का डस्टबिन भर गया है. बदबू के कारण फ्लैट वाले खिड़की-दरवाजे बंद रखते हैं.
जगदीश चंद्र महतो, गार्ड, हरि भवानी अपार्टमेंट
लोग भी जागरूक नहीं है. डस्टबिन होते हुए भी लोग खुले में कचरा फेंक देते हैं. इस कारण हल्की सी बारिश होने पर ही कचरा नाली में चला जा रहा है. इससे नाली जाम हो जाती है.
आदित्य जायसवाल, वर्द्धमान कंपाउंड

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