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सिक्के नहीं ले रहे बैंक, पीएमओ को गुमराह कर रहा एसबीआइ

लोगों की परेशानी बखूबी जान रहे हैं आरबीआइ के अधिकारी, लेकिन नहीं निकल रहा समस्या का हल केवल इंडियन क्वाइनिज एक्ट के सर्कुलर का हवाला देते हुए बैंकों को सिक्के स्वीकार करने को कह रहे बिपिन सिंह, रांची : शहर में बैंक अधिकारियों व कर्मचारियों ने रुपये की कीमत ही खत्म कर दी है. बैंकों […]

  • लोगों की परेशानी बखूबी जान रहे हैं आरबीआइ के अधिकारी, लेकिन नहीं निकल रहा समस्या का हल
  • केवल इंडियन क्वाइनिज एक्ट के सर्कुलर का हवाला देते हुए बैंकों को सिक्के स्वीकार करने को कह रहे
बिपिन सिंह, रांची : शहर में बैंक अधिकारियों व कर्मचारियों ने रुपये की कीमत ही खत्म कर दी है. बैंकों में कर्मचारी व अधिकारी भारतीय मुद्रा को ही लेने से इंकार कर रहे हैं, इसका नतीजा कि झारखंड में विभिन्न कारोबारियों के पास टनों सिक्के जमा हो गये हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि मामले की गंभीरता के बाद भी जिम्मेदार एजेंसियां पीड़ितों की शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं कर रहे हैं.
सिक्कों को लेकर स्थिति इतनी पैनिक है कि इस मामले के निबटारे के लिए बैंकों के प्रधान कार्यालयों से लेकर आरबीआइ तक से शिकायत की जा रही है, वह भी एक बार नहीं कई-कई बार. न्यूट्रल पब्लिकेशन की शिकायत पर पीएमओ ने दखल देते हुए एसबीआइ से जब इसका कारण जानना चाहा, तो देश का सबसे बड़ा बैंक पीएमओ तक को तथ्यों को सही तरीके न रख उसे गुमराह किया.
पीएमओ के निर्देश पर स्टेट बैंक ने बताया कि वह ग्राहकों से सिक्के ले रहा है, जबकि हकीकत यह है कि इसकी आड़ में महज औपचारिकता निभायी जा रही है. चलन में जो सिक्के हैं, वह करोड़ों में हैं, जबकि कई बार प्रयास और जुगत भिड़ाने के बाद भी यह नाम मात्र ही स्वीकार किये जा रहे हैं. हालांकि, सिक्कों को लेकर आरबीआइ का स्पष्ट आदेश है कि बैंक या अन्य कोई चलन में मौजूद किसी भी प्रकार के सिक्कों को लेने से मना नहीं कर सकते.
बैंक नहीं ले रहे, इसलिए लोग भी लेना नहीं चाहते सिक्के
एक ही जगह पर अत्यधिक मात्रा में सिक्कों के जमा हो जाने से इसका असर झारखंड के इकोनॉमी पर पड़ रहा है. रोजाना बैंकों और ग्राहकों के बीच नोकझोंक की नौबत रहती है. बाजार में सिक्कों का प्रचलन बंद होता जा रहा है. पेट्रोल पंप हो, या अखबार वाला, दूध का काउंटर हो, सब्जी वाला हो या फिर रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाने वाला हर कोई भारत सरकार द्वारा जारी इन लीगल टेंडर यानी सिक्कों को लेने से इनकार कर रहे हैं.
अर्थशास्त्र के हिसाब से भी खराब
रेजगारी से जुड़े व्यापारियों के पास लाखों रुपये की खुल्ले पैसे जमा हो गये हैं. नोटबंदी के बाद बैंकों में वर्षों से पड़े इन सिक्कों के ढेर बाजार में आ गये. धीरे-धीरे जब नये नोटों का चलन बढ़ा और कागजी मुद्रा पर्याप्त मात्रा में बाजार में आ गया, तो सिक्कों की अनदेखी शुरू हो गयी. इस तरह की व्यवस्था से बाजार में थोड़े समय बाद सस्ती वस्तुओं की डिमांड कम हो जायेगी.
इससे उनका उत्पादन करने वाली फैक्टरियां बंद होंगी. गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाली 27 फीसदी जनसंख्या का जीना मुश्किल हो जायेगा. भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर दिखाई देगा.
क्या कहते हैं अर्थशास्त्री
अर्थशास्त्र के जानकार हरिश्वर दयाल कहते हैं कि क्वाइन सपोर्टिव लीगल टेंडर हैं. इसे बैंकों को हर हाल में स्वीकार करना चाहिए. हालांकि, इकोनॉमी में यह बड़ी भूमिका नहीं निभाते, ज्यादा संख्या में जमा हो जाने पर इससे असुविधा ज्यादा होती है.
एक, दो और पांच रुपये के नोट लगभग चलन से बाहर हो गये हैं, इस वजह से परेशानी बढ़ी है. हालांकि यह ग्लोबल इश्यू है, भारत के बाहर लोग वहां आपको सेंट, यूरो के चेंज देंगे, पर वे वापस नहीं लेते. स्वदेश लौटते वक्त उसे इंडियन या अन्य करेंसी में कन्वर्ट करने के दौरान भी परेशानी होती है.
समस्या का समाधान नहीं
बैंकों का साफ कहना है, कि करेंसी चेस्ट पूरी तरह से भरा हुआ है, इस कारण सिक्के लेने में असमर्थ हैं. एसबीआइ की ओर से न्यूट्रल पब्लिसिंग हाउस लिमिटेड के सीएएफओ आलोक पोद्दार द्वारा एसबीआइ के जीएम को लिखे पत्र के जवाब में समस्या का कोई हल नहीं निकल रहा. जबकि, गुजरते वक्त के साथ सिक्कों की तादाद बढ़ती जा रही है.
केंद्र सरकार को करनी होगी पहल
आरबीआइ का कहना है कि सिक्के बैंकों में तो आ रहे हैं, पर यह वहां से वापस लोगों के पास नहीं जा रहे हैं. यह पूरी तरह से डिमांड और सप्लाई का मामला है. डिमोनेटाइजेशन के बाद क्वाइन का एकतरफा फ्लो होने के चलते यह समस्या उत्पन्न हुई है. केंद्र सरकार को भी इस मामले में कदम उठाना होगा. आरबीआइ महज सिक्कों के वितरण का कार्य देखती है.
अलग-अलग करेंसी चेस्ट में सिक्कों की वजह से जगह की कमी है. पहले से ही चेस्ट पूरी तरह से भरे हुए हैं. इसकी जानकारी आरबीआइ को भी दे दी गयी है. समस्या का समाधान यह है कि आरबीआइ बैंकों को या तो नयी करेंसी चेस्ट खोलने की इजाजत दे, या क्वाइन को वापस ले. सुरक्षा कारणों के चलते करेंसी चेस्ट को लेकर आरबीआइ ने नियम बेहद कड़े कर दिये हैं. प्रक्रिया इतनी जटिल है कि अगर हम मंजूरी देने का प्रयास करते हैं, तो उसमें दो से तीन साल का वक्त लग सकता है.
सुनील कुमार गुप्ता, सहायक महाप्रबंधक, सामान्य बैंकिंग
केस स्टडी
मीडिया व्यवसाय से जुड़ी कंपनी न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड (एनपीएचएल) के चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर (सीएफओ) आलोक पोद्दार के एसबीआइ के अधिकारियों, झारखंड सरकार और पीएमओ के साथ हुए पत्राचार से बैंकों द्वारा सिक्कों के मामले में की जा रही मनमानी का खुलासा हुआ है. श्री पोद्दार ने पीएमओ को बताया कि कैसे आरबीआइ की गाइडलाइन और भारत सरकार के कानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन हो रहा है.
एक पत्र में एसबीआइ कहता है कि सिक्कों को लेकर समस्या है. इस संबंध में उसने आरबीआइ से बात की है और ग्राहक भी केंद्रीय बैंक को इस समस्या से अवगत करायें. वहीं, दूसरी तरफ ठीक इसी मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखी चिठ्ठी में बैंक कहता है कि ऐसी कोई समस्या नहीं.
सीएमओ से लेकर पीएमओ तक शिकायत
सिक्कों के मामले में न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड ने आम जनता की परेशानियों का जिक्र करते हुए सीएमओ से लेकर पीएमओ तक शिकायत की. झारखंड के सीएम रघुवर दास ने मामले काे राज्य के विकास के लिए नुकसानदायक बताते हुए सरकार के योजना सह वित्त विभाग के अवर सचिव के माध्यम से आरबीआइ से हस्तक्षेप की मांग की.
कब क्या हुआ : एक नजर तथ्यों पर
आरबीआइ को झारखंड सरकार ने मामले को लेकर 24 दिसंबर 2018 को पत्र लिख जांच व समाधान की मांग की.
एसबीआइ के जेनरल बैंकिंग सेक्शन रांची के डिप्टी जेनरल मैनेजर ने एनपीएचएल के सीएफओ आलोक पोद्दार को पत्र लिख कर बताया कि उनकी करेंसी चेस्ट में सिक्के रखने की जगह नहीं है.
एसबीआइ डीजीएम ने एनपीएचएल से कहा कि वह अपने स्तर से रिजर्व बैंक को इस स्थिति से अवगत करायें और सिक्कों के उठाव की प्रक्रिया में तेजी लाने का आग्रह करें.
जनवरी 2019 में पत्राचार के बाद पटना स्थित एसबीआइ के महाप्रबंधक (नेटवर्क-2) के सचिवालय ने जून 2019 में हाउस को बताया कि बैंक ने उनकी समस्या का समाधान करने की पहल की है. साथ ही बैंक ने पीएमओ को सूचित किया कि एसबीआइ की एसएमइ शाखा ने सिक्के लेने से कभी इंकार नहीं किया.
बैंक ने पीएमओ को गुमराह करते हुए बताया कि कंपनी ने उनकी शाखा के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की है. कंपनी की शिकायत रांची स्थित बैंक की अन्य शाखाओं और किसी अन्य बैंक से संबंधित है, जिसमें एनपीएचएल का अकाउंट है.
एनपीएचएल की ओर से आलोक पोद्दार ने एक बार फिर प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा है कि उनकी समस्या का अब तक कोई समाधान नहीं हुआ है.
फैक्ट चेक
सिक्के नहीं स्वीकार करने पर प्रभात खबर ने स्वयं इसकी पड़ताल की. विभिन्न बैंकों की शाखाओं में पांच, दो और एक रुपये के 1500 रुपये जमा करने गये. उनके पास एक रुपये के 500 सिक्के थे. काउंटर पर बैठे कैशियर, चीफ कैशियर व ब्रांच मैनेजर ने सिक्का जमा लेने से साफ इनकार कर दिया.
बैंक ऑफ इंडिया
बैंक ऑफ इंडिया कोकर शाखा में कहा गया कि आपका एकाउंट इस ब्रांच में नहीं, तो यहां पैसे नहीं लेंगे. कैशियर ने कहा हमारे पास रखने के लिए जगह नहीं है. कुछ देर बाद समझाने लगे कि बाजार में ही चला दो, उन्हें बताया कि हमारे पास इससे ज्यादा सिक्के हैं, लेकिन वे नहीं माने, कहा कि आप शुक्रवार को आइये.
एसबीआइ
एसबीआइ मेन ब्रांच में काउंटर पर बैठे कर्मचारी का सिक्के देखते ही मूड खराब हो गया. यहां चीफ कैशियर से लेकर सहायक महाप्रबंधक तक से आग्रह किया गया. इस पर कहा गया हम दिन में केवल 1000 तक के ही सिक्के लेंगे. इससे ज्यादा सिक्के हम जमा नहीं ले सकते हैं.
आइसीआइसीआइ
संवाददाता सिक्कों की थैली लेकर लालपुर आइसीआइसीआइ बैंक पहुंचा. यहां कैशियर को डेढ़ हजार के सिक्कों से भरी थैली दिखायी तो वह चौंक गयीं. कहा कि इतने सिक्के थोड़ी लेते हैं़ उन्होंने कहा कि हमें यहां करेंट एकाउंट खोलना पड़ेगा, तब जाकर एक हजार के क्वाइन ले सकते हैं.
पेट्रोल पंप पर रोजाना कई ग्राहक सौ, दो सौ या पांच सौ की जगह भिन्न एमाउंट में तेल डलवाते हैं. इससे रोजाना 5 से 8 हजार रुपये के सिक्के आते हैं.
दिलीप कुमार सिंह
हमसे कोई चेंज नहीं ले रहा, तो हम क्यों लें. सब्जी बेचते-बेचते मेरे पास 1500 से अधिक एक और दो के सिक्के जमा हो गया है, उसका क्या करें?
किरण देवी

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