रांची : बिजली की कमी नहीं, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते होता है पावर कट

झारखंड बिजली वितरण निगम के एमडी राहुल पुरवार से बातचीत रांची : रांची समेत राज्य के बड़े हिस्सों में लोग पावर कट से लोग परेशान हैं. इस मुद्दे पर झारखंड बिजली वितरण निगम के एमडी राहुल पुरवार से प्रभात खबर ने बात की. उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल में बिजली की आधारभूत संरचना पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 2, 2019 9:09 AM
झारखंड बिजली वितरण निगम के एमडी राहुल पुरवार से बातचीत
रांची : रांची समेत राज्य के बड़े हिस्सों में लोग पावर कट से लोग परेशान हैं. इस मुद्दे पर झारखंड बिजली वितरण निगम के एमडी राहुल पुरवार से प्रभात खबर ने बात की. उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल में बिजली की आधारभूत संरचना पर काफी काम हुए हैं.
राज्य भर में बिजली नेटवर्क को दुरुस्त करने का काम चल रहा है. ग्रिड बन रहे हैं. ट्रांसमिशन लाइन बन रही है. नये तार लगाये जा रहे हैं. ट्रांसफाॅर्मर बदले जा रहे हैं. मांग के अनुरूप जगह-जगह नये सब स्टेशन बन रहे हैं. वर्तमान में जो भी समस्या आ रही है, वह व्यवस्था दुरुस्त करने के क्रम में आ रही है. संरचना पुरानी है, जिसके कारण लोड नहीं ले पा रही है.
राज्य के कई जिलों में पावर कट से लोग परेशान हैं, क्या वजह है?
जवाब : मैं मानता हूं कि बिजली कट हो रही है, पर इस कट के पीछे की वजहों को समझना होगा. पहले पुराने नेटवर्क थे. गांवों में कम लोड के ट्रांसफाॅर्मर लगे हुए थे. तब उपभोक्ताओं की संख्या इतनी नहीं थी.
आज दोगुनी होगी गयी है. बिजली की मांग बढ़ी है. बिजली पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, पर वर्तमान में जो नेटवर्क है, उसकी इतनी क्षमता नहीं है कि बिजली ली जा सके. इसके लिए सरकार ने गांव से लेकर शहर में बिजली नेटवर्क को दुरुस्त करने का अभियान छेड़ दिया है.
रांची में बिजली कट क्यों होती है?
जवाब : रांची में पहले केवल दो ही ग्रिड थे. अब धीरे-धीरे बिजली उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ी है. इसी अनुपात में बिजली की मांग भी बढ़ी है.
हटिया ग्रिड से रांची, लोहरदगा और लातेहार जिले जुड़े हैं, जबकि रांची की मांग 250 मेगावाट से बढ़ कर 325 मेगावाट हो गयी. ग्रिड ओवरलोड होने लगता है, तो अचानक बिजली काट दी जाती है. कुछ इलाकों में काटी जाती है, तो कुछ में दी जाती है. यह पीक आवर में ज्यादा होता है. एक से डेढ़ माह में ओवर लोड की समस्या खत्म हो जायेगी. बुढ़मू ग्रिड बन चुका है. इसके चालू होते ही हटिया ग्रिड का लोड कम हो जायेगा. इसके अलावा अनगड़ा, सिल्ली, ओरमांझी, सरवल, बेड़ो व मांडर में भी ग्रिड बन रहे हैं. इसे बनते ही रांची और आसपास के जिलों में बिजली समस्या समाप्त हो जायेगी.
दूसरी शिकायत है कि ट्रिपिंग की. झारखंड में खासकर 33 केवी व 11 केवी लाइन किसी न किसी पेड़ के समीप से गुजरती है. थोड़ी भी हवा चलने पर पेड़ की डाली के सटने से बिजली ट्रिप हो जाती है. इसके लिए वृहत स्तर पर पेड़ों की ट्रिमिंग कराने का काम चल रहा है. एक समस्या है थंडरिंग से इंस्यूलेटर पंक्चर होने की. अब सेरामिक की जगह पोली प्रोपलिन के इंस्यूलेटर लगाये जा रहे हैं. इसके बाद यह समस्या नहीं रहेगी. रांची में हाल के दिनों में कई स्थानों पर नये ट्रांसफाॅर्मर लगाये गये हैं. इन ट्रांसफाॅर्मरों से अभी लोड शेयरिंग नहीं हो सका है. लोड शेयरिंग होते ही समस्या ठीक हो जायेगी.
कई जगह विद्युत सुदृढ़ीकरण का काम किया गया या किया जा रहा है, फिर समस्या क्यों?
जवाब : केवल शहर ही नहीं, गांवों तक विद्युत सुदढ़ीकरण का काम चल रहा है. नये तार लगाये जा रहे हैं. पुराने तार हटाये जा रहे हैं. ट्रांसफारमर बदले जा रहे हैं. शहरों में अंडरग्राउंड केबलिंग की जा रही है.
वितरण नेटवर्क को दुरुस्त किया जा रहा है. बिजली की मांग भी बढ़ी है. इसके लिए ही ग्रिड बन रहे हैं. झारखंड में 114 ग्रिड की जरूरत है, जबकि केवल 38 ही कार्यरत हैं. इसका सीधा असर बिजली पर पड़ता है. सभी नये ग्रिड पर काम शुरू हो चुका है.
रांची में कब तक बिजली की समस्या दुरुस्त होगी?
जवाब : रांची में आरएपीडीआरपी, आइपीडीएस के तहत काम लगभग अंतिम चरण में हैं. 11 नये सब स्टेशन बन चुके हैं. 37 किमी अंडरग्राउंड केबलिंग का काम हुआ है.
1618 ट्रांसफाॅर्मर बदले गये हैं. 31 जुलाई तक वितरण नेटवर्क दुरुस्त करने का काम पूरा हो जायेगा. पर जब तक ग्रिड से लोड ट्रांसफर नहीं होता, तब तक समस्या रह सकती है. लोड ट्रांसफर करने का काम भी चल रहा है.
बिजली की मांग और स्थिति
कुल मांग-2200 मेगावाट
कहां से आती है बिजली
डीवीसी-750 मेगावाट
टीवीएनएल 320-350 मेगावाट
इनलैंड पावर-55 मेगावाट
सेंट्रल पुल-500-600 मेगावाट
आधुनिक पावर-186 मेगावाट
अन्य स्त्रोत-100 मेगावाट
कुल 2141 मेगावाट
(नोट-ग्रामीण विद्युतीकरण होने से लगभग 500 मेगावाट बिजली की मांग बढ़ी है, पर नेटवर्क न होने की वजह इतनी ही बिजली से सभी जगहों पर बारी-बारी से दी जाती है. कभी-कभी मांग कम होती है, कभी अधिक होने पर सेंट्रल पूल से अधिक बिजली लेकर आपूर्ति की जाती है)

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