रांची : झारखंड की राजधानी रांची में बुधवार को विश्वकर्मा लेन स्थित सफदर हाशमी हॉल में जनवादी लेखक संघ (जलेस) के बैनर तले उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की जयंती का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता उर्दू के उस्ताद शायर गुफरान अशरफी ने की. प्रेमचंद को याद करते हुए लोगों ने कहा कि आज प्रेमचंद को पाठ्यक्रम से हटाया जा रहा है, ताकि नयी पीढ़ी उन्हें जान न पाए.
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कभी ईएमएस नम्बोदरीपाद ने कहा था कि देश की दूसरी भाषाएं बेहतरीन साहित्यकार पैदा करने के बाद भी प्रेमचंद पैदा नहीं कर सकीं, क्योंकि प्रेमचंद 1857 की उपज थे. अब हुक्मरानों को इनसे खतरा महसूस होने लगा है, इसलिए उन्हें पाठ्यपुस्तकों से हटाने की साजिश की जा रही है. उनके साहित्यकार होने पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े किये जा रहे है.
बैठक में मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में कफ़न, गोदान, पूस की रात और ईदगाह जैसी कहानी पर चर्चा करते हुए कहा गया कि असहिष्णुता ने समाज को संवेदनहीन बना दिया है. समाज मे नफरतें पल रही हैं. लोग एक-दूसरे की संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं.
बैठक में गोदान के मुख्य पात्र होरी का जिक्र करते हुए कहा गया कि किसान आज सबसे ज्यादा मुश्किल दौर से गुज़र रहा है. उसकी उपज की लागत भी निकल नहीं पा रही है. कर्ज के बोझ से किसान आत्महत्या करने पर विवश है. हजारों की तादाद में किसान सरकार की कृषि नीति के कारण पांच साल की अवधि में आत्महत्या कर चुके हैं.
बैठक आम सहमति बनी कि प्रेमचंद को पढ़ा जाए और नयी पीढ़ी को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए. सभा में रेणु प्रकाश, विना लिंडा, मिठू मंडल, रमजान कुरैशी, अविनाश, आफताब खान, समीउल्लाह खान, एमजेड खान आदि ने प्रेमचंद पर अपनी बातें रखी.