रांची : अनुराग की फैमिली बनी नंबर वन
चुटिया कृष्णापुरी अपार्टमेंट में प्रभात खबर प्रेमसंस मोहल्ला इवेंट रांची : प्रभात खबर की अोर से रविवार को प्रभात खबर प्रेमसंस मोहल्ला इवेंट का आयोजन कमला भवन चुटिया कृष्णापुरी अपार्टमेंट में किया गया. फ्रेंडशिप डे होने के कारण युवाअों ने खूब मस्ती की अौर एक-दूसरे को बैंड बांधकर अपनी खुशी जतायी. मौके पर फैमिली नंबर […]
चुटिया कृष्णापुरी अपार्टमेंट में प्रभात खबर प्रेमसंस मोहल्ला इवेंट
रांची : प्रभात खबर की अोर से रविवार को प्रभात खबर प्रेमसंस मोहल्ला इवेंट का आयोजन कमला भवन चुटिया कृष्णापुरी अपार्टमेंट में किया गया. फ्रेंडशिप डे होने के कारण युवाअों ने खूब मस्ती की अौर एक-दूसरे को बैंड बांधकर अपनी खुशी जतायी. मौके पर फैमिली नंबर वन का खिताब अनुराग कुमार पाठक के परिवार को दिया गया. विजेताअों को प्रेमसंस मोटर्स के उत्तम कुमार और प्रेमसंस होंडा के दीपक कुमार मंडल ने पुरस्कृत किया .
प्रतियोगिताओं के परिणाम इस प्रकार रहे
ड्राइंग प्रतियोगिता जूनियर वर्ग : मोक्ष राज प्रथम , प्रत्युष चौधरी द्वितीय, अग्रिम तृतीय , रंजन चतुर्थ ,समर्पण पंचम .
सीनियर वर्ग : अर्थव प्रथम ,अंश राज द्वितीय, सृष्टि तृतीय , रिया चतुर्थ , सृष्टि पंचम .
बैलून फोड़ो : पीयूष प्रथम , देवराज द्वितीय, अंकिता झा तृतीय , सृष्टि चतुर्थ .
पासिंग द बॉल बच्चा : करण प्रथम ,साक्षी द्वितीय, रंजन तृतीय ,आयुष चतुर्थ .
पासिंग द बॉल महिलाओं : विद्या प्रथम , इंदु द्वितीय, सविता तृतीय , पूनम चतुर्थ .
डांस एंड फ्रिज : निकिता प्रथम , रोशनी द्वितीय, करण तृतीय, प्रत्युष चतुर्थ .
मेमोरी गेम : इंदु पाठक प्रथम , विद्या राज द्वितीय, पूनम देवी तृतीय, मीट्ठू चतुर्थ , सविता पंचम .
नृत्य: बिकू प्रथम , रिया द्वितीय, अंकिता तृतीय, सृष्टि चतुर्थ .
क्वाइन बैलेंसिंग : कुलदीप प्रथम,दिलीप द्वितीय और अनुराग तृतीय
लकी ड्रा : अनुराग ,अभिनव ,आयुष .
अगर विवि को स्वायत्तता मिले, तो सुधरेंगे हालात
विश्वविद्यालयों पर समाज या राष्ट्र निर्माण का दायित्व होता है. इन्हें स्वतंत्रता का मंदिर कहा जाता है.आज की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में विवि ही वह सत्ता है, जिन्हें राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में नेतृत्व ग्रहण करना होगा.
विशेषाधिकार तथा रूढि़वाद के इतर विवि मानसिक अौर बौद्धिक स्वातंत्र्य के प्रकाश स्तंभ हैं. इसलिए विवि को अधिषद व अभिषद आदि संस्थाअों से विभूषित करके एक स्वायत्त लोकतांत्रिक संस्थान बनाया गया तथा समाज व राज्य ने इसकी स्वीकृति भी दी. आज की लोकतांत्रिक बुलंदियों के सूत्रधार विवि ही हैं.
दुर्भाग्य से ये बातें झारखंड के विवि पर लागू नहीं होती हैं. यहां विवि या तो अपनी भूमिका में असफल रहे या समाज अौर शासन इनके योगदान को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं. इससे भी बड़ा एक प्रश्न मेरे मन में बार-बार उठता है कि क्या झारखंड के विवि भविष्य को लेकर अपनी अहमियत खो चुके हैं. शायद इसलिए लोकतांत्रिक सरकारें भी इन्हें अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रही हैं.
राज्य के मुखिया के पास शिक्षकों के लिए समयाभाव होना, शासन-प्रशासन द्वारा कुलाधिपति को गलत सूचनाएं देना, उच्च शिक्षा पर विशेषज्ञों की अपेक्षा सामान्यत: नौकरशाही का वर्चस्व होना, शिक्षकों को छोटी -छोटी बातों पर अपमानित करना, शिक्षकों की सेवा एवं सुविधा शर्तों में कटौती होना, शिक्षकों की नियुक्ति व पदोन्नति का नहीं होना, गैर शैक्षणिक सहायक कर्मचारियों का अभाव, संविदा आधारित शिक्षा तथा सेवा को बढ़ावा देना, शिक्षा की आधुनिक मांगों का समावेशन नहीं होना, विवि प्रशासन का मात्र अग्रसारण एजेंसी बनना आदि इस धारणा को पुष्ट करते हैं.
झारखंड सरकार सिर्फ अांकड़ों की बाजीगरी में लगी है. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर झारखंड, बिहार के साथ सकल नामांकन अनुपात में सबसे निचले पायदान पर है. इसे बढ़ाने के लिए सरकार एक अोर जहां मानकहीन निजी विवि को धड़ल्ले से अनुमति दे रही है, वहीं दूसरी अोर स्थापित विवि को मितव्ययता के नाम पर खोखला किया जा रहा है. सरकारी हस्तक्षेप के कारण उच्च शिक्षा में कमीशनखोरी चरम है. राजनीतिक नौकरशाही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का नारा बुलंद करती है. लेकिन गुणवत्ता दूर-दूर तक नजर नहीं आती.
प्रशासनिक नौकरशाही सक्रियता के साथ अौपचारिकताअों में व्यस्त है. विवि शिक्षा के तीन प्रमुख स्तंभ विद्यार्थी, शिक्षक अौर विवि प्रशासन होते हैं. झारखंड में विद्यार्थी नि:संदेह प्रतिभावान एवं मेधावी हैं. लेकिन इनकी क्षमता के विकास के लिए एक उचित वातावरण आवश्यक है. इसका निर्माण शिक्षक एवं विवि प्रशासन मिल कर करते हैं. नि:संदेह विद्यार्थियों के लिए बेहतर वातावरण के निर्माण में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है. झारखंड में शिक्षक अमानवीय वातावरण में कार्य करने के लिए बाध्य हैं.
सेवानिवृत्त शिक्षक अपनी मांगों को लेकर धरना, प्रदर्शन अौर हड़ताल का जीवन जीने को अभिशप्त हैं. ऐसे वातावरण में शिक्षक स्वयं हताश अौर निराश हैं. ये विद्यार्थियों के लिए अच्छे वातावरण का निर्माण कैसे कर सकते हैं. वास्तव में विवि उपाधि वितरण का केंद्र बन गये हैं. जिनके उद्देश्यों में दूर-दूर तक संस्कृति, राष्ट्र व ज्ञान के मुद्दे शामिल नहीं हैं. कारखानों के नियम विवि पर लागू करके इनकी स्वायत्तता को कुलाधिपति सचिवालय, उच्च शिक्षा विभाग अौर लोक सेवा आयोग के मध्य बुरी तरह उलझा दिया गया है. इस प्रकार विवि स्वायत्तता ही झारखंड में शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकती है.
-डॉ धीरेंद्र त्रिपाठी