रांची :फुटबॉल में नाम कमाने का था जुनून, मजबूरी में बेच रहीं सब्जी

दिवाकर सिंह भुरकुंडा की रहनेवाली हैं सुमन और मंजू, रांची में रह कर एसएस मेमोरियल में करती हैं पढ़ाई रांची : सपने थे, उम्मीदें थीं कि एक दिन राज्य और देश के लिए फुटबॉल खेलकर नाम कमायेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. मजबूरी ऐसी आयी कि घर चलाने के लिए सब्जी बेचनी पड़ रही है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 8, 2019 9:10 AM
दिवाकर सिंह
भुरकुंडा की रहनेवाली हैं सुमन और मंजू, रांची में रह कर एसएस मेमोरियल में करती हैं पढ़ाई
रांची : सपने थे, उम्मीदें थीं कि एक दिन राज्य और देश के लिए फुटबॉल खेलकर नाम कमायेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. मजबूरी ऐसी आयी कि घर चलाने के लिए सब्जी बेचनी पड़ रही है. ये कहानी है दो फुटबॉलर बहनों सुमन और मंजू की. छह साल इन दोनों ने जुनून के साथ फुटबॉल खेला, लेकिन सात महीने पहले पिता के देहांत के बाद घर चलाने के लिए मजबूरी में सब्जी बेचने लगीं और फुटबॉल खेलना लगभग बंद हो गया.
छह साल पहले शुरू किया था फुटबॉल खेलना
सुमन कहती है : मैंने छह साल पहले 2012 में फुटबॉल खेलना शुरू किया था. हुटूप में ट्रेनिंग लेती थी और यहां की टीम के साथ कई टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिला. फॉरवर्ड खेलने वाली सुमन को स्पेन जाने का भी मौका मिला, लेकिन तबीयत खराब हो जाने के कारण वह नहीं जा सकी. बाद में सुमन को राज्य स्तर तक फुटबॉल खेलने का मौका मिला. सात महीने पहले इनके पिता का निधन हो गया और तब से इस खिलाड़ी का फुटबॉल छूट गया. हालांकि, ये कभी-कभी समय निकालकर फुटबॉल खेलने जाती हैं. सुमन कहती हैं कि मेरी बहन मंजू भी मेरे साथ फुटबॉल खेलती थी.
पिता भी सब्जी बेचते थे, इसलिए इसी काम को अपनाया
पिता के देहांत के बाद इन दोनों खिलाड़ियों के सामने घर चलाने की समस्या हो गयी. इनकी मां भुरकुंडा में रहती हैं और यहां दोनों बहनें अपने एक भाई के साथ रहती हैं. सुमन कहती है : पिता भी सब्जी बेचते थे, इसलिए हम दोनों बहनों ने तय किया कि हम भी सब्जी बेचकर अपने घर का गुजारा चलायेंगे. सब्जी बेचने के साथ-साथ हम एसएस मेमोरियल कॉलेज में पढ़ाई भी करती हैं.
मौका मिला, तो फिर खेलूंगी फुटबॉल…
इन दोनों बहनों का फुटबॉल छूट गया है, लेकिन हौसले में कमी नहीं आयी है. फुटबॉल फिर से पहले की तरह खेलने की बात पर सुमन कहती है कि मौका मिले, तो फिर से फुटबॉल खेलने के लिए मैदान में उतरूंगी. पिता जब तक थे, उन्होंने दोनों बहनों को फुटबॉल खेलने से कभी नहीं रोका और हमेशा हौसला बढ़ाया. पढ़ाई के साथ-साथ हमारा खेल भी जारी था.

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