झारखंड जनजाति बहुल राज्य है. यहां 32 प्रकार की जनजातियां निवास करती हैं, जिसमें 9 प्रकार की आदिम जनजातियां हैं. जनजातियों की पहचान उनकी भाषा और संस्कृति से है. हालांकि शहरीकरण और औद्योगीकरण के दौर में भाषा और संस्कृति में तेजी से बदलाव देखा जा रहा है.
कई जनजाति आज बिलुप्ति के कगार पर हैं. कई जनजातियों की भाषा और उनकी संस्कृति पर भी बिलुप्ति का खतरा मंडराने लगा है. संताल में प्रचलित ‘बिटलाहा’ एक ऐसी समाजिक परंपरा है जो अब केवल रीति रिवाज के तौर पर ही समाज में रह गयी हैं.
* क्या है ‘बिटलाहा’
संताल एक अन्तर्विवाह जनजाति है, जिसके बीच समगोत्रिय यौन संबंध निषिद्ध है. जब कभी कोई निषिद्ध यौन संबंध की मर्यादा का उल्लंघन करता है, तो अपराधियों को ‘बिटलाहा’ यानि जाति से अलग कर दिया जाता है.
अनैतिक यौन संबंध को संथाल ईश्वरीय प्रकोप मानते हैं. ‘बिटलाहा’ द्वारा अपराधी को दंड देकर वे अपने देवताओं को प्रसन्न करते हैं. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ईश्वरीय कोप से अकाल, अतिवृष्टि, महामारी फैलने का डर होता है.
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सामाजिक बहिष्कार की यह सजा अपराधियों को पंचायत के निर्देशानुसार निर्धारित की जाती है. जब कोई संताल महिला या पुरुष अपने ही गोत्र या निकट के संबंध के साथ यौन संबंध में पकड़ा जाता है तो अपराधी को सजा सुनिश्चित करने के लिए गांव का मांझी (मुखिया) विचार-विमर्श और जांच पड़ताल कर ‘बिटलाहा’ देने का फैसला करता है.
लेकिन यौन अपराध सिद्ध न होने की स्थिति में अफवाह फैलाने वालों को कड़ी सजा दिए जाने का भी प्रावधान है. बिटलाहा संबंधी निर्णय लिए जाने के पहले यथासंभव यह प्रयास किया जाता है कि यह मामला आपसी सहमति से गांव स्तर पर ही निपटा दिया जाए.
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बिटलाहा किये जाने वाले लोगों को पुन: समाज में शामिल किये जाने का भी प्रावधान (जातिजोम) है. लेकिन इसके लिए भी शर्त है कि अपराधी अपना अपराध स्वीकार कर ले और एक बड़े भोज का आयोजन करे.
* समय के साथ खत्म हो रहा है ‘बिटलाहा’
समय के बदलाव के साथ संताल जनजाति के बीच प्रचलित सामाजिक प्रथाओं में परिवर्तन हुए हैं. शिक्षा के प्रसार, औद्योगिकरण के कारण और संतालों की बदलती मनोवृतियों के कारण बिटलाहा जैसी कानून व्यवस्था अब केवल रीति रिवाज तक ही सिमट कर रह गयी है.
स्वतंत्रता के बाद कुछ वर्षों तक बिटलाहा की प्रक्रिया यदा-कदा चलती रही, लेकिन अब प्रशासन के विस्तार तथा पुलिस हस्तक्षेप के कारण पहले की तरह बिटलाहा नहीं किये जाते हैं.
* क्या कहना है संताली भाषा के विद्वान का
संताली भाषा के विद्वान और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष के सी टुडू ने कहा, मौजूदा समय में बिटलाहा लगभग खत्म हो चुका है. इसे अब केवल सामाजिक रीति रिवाज के तौर पर बरकरार रखा गया है.