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अगस्त क्रांति में झारखंड के आदिवासियों का योगदान

प्रो आइके चौधरी, इतिहासकार आदिवासियों ने अलग झारखंड को भूल कर गांधी का नारा-करो या मरो को सही अर्थों में समझा और सहयोग दिया आज संपूर्ण भारत में अगस्त क्रांति के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देनेवाले बलिदानियों को याद किया जा रहा है. हम कह सकते हैं कि 1942 की अगस्त क्रांति के […]

प्रो आइके चौधरी, इतिहासकार
आदिवासियों ने अलग झारखंड को भूल कर गांधी का नारा-करो या मरो को सही अर्थों में समझा और सहयोग दिया
आज संपूर्ण भारत में अगस्त क्रांति के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देनेवाले बलिदानियों को याद किया जा रहा है. हम कह सकते हैं कि 1942 की अगस्त क्रांति के फलस्वरूप 1947 में आजादी मिली. झारखंड में भी अगस्त क्रांति को सफल बनाने में समाज के सभी वर्ग के लोगों ने योगदान दिया.
इसमें आदिवासियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी. यह सही है कि 1940 में रामगढ़ कांग्रेस के बाद झारखंड में आंदोलनकारियों को नयी ऊर्जा मिली. आदिवासी समाज भी अलग झारखंड राज्य को भुला कर महात्मा गांधी का एलान- करो या मरो को सही अर्थों में समझा और संपूर्ण सहयोग दिया.
नौ अगस्त के बाद से रांची में अगस्त क्रांति को सफल बनाने के लिए क्रांतिकारियों ने कई प्रकार से आंदोलन चलाया तथा करो या मरो को सफल बनाने के लिए ब्रिटिश तंत्रों पर प्रहार किया. रांची में नौ अगस्त को हड़ताल रखी गयी. इस दौरान प्रमुख गिरफ्तार लोगों में यदुगोपल मुखर्जी, राम रक्षा उपाध्याय, नारायण जी और नंद किशोर भगत थे. नारायण चंद लाहरी को भी 10 अगस्त को गिरफतार कर लिया गया. गिरफ्तार लोगो में कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष शिव नारायण मोदी भी थे.
17 अगस्त को महादेव देसाई के मरने की खबर आते ही रांची शहर में उग्र जुलूस निकला. रांची और आसपास के क्षेत्रों में तोड़फोड़ की गयी. 14 अगस्त को रांची जिला में लोहरदगा, सिल्ली, नामकुम में आंदोलनकारियों ने खूब उपद्रव मचाये. टाटीसिलवे और नामकुम के बीच टेलीफोन के तार काट दिये गये.
30 अगस्त को रांची के बालकृष्ण हाई स्कूल के कागजात को जला दिया गया. रांची जिला स्कूल स्थित कॉलेज के भूगोल विभाग को उग्र छात्रों ने क्षति पहुंचायी. छोटानागपुर में टाना भगत गांधी के परम भक्त थे. करो या मरो का आदिवासी टाना भगतों ने समर्थन किया. टाना भगत अगस्त क्रांति के अग्रदूत थे. 17 अगस्त के जुलूस में उन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया. 18 अगस्त को चैनपुर तथा बिशुनपुर थाना को टाना भक्तों ने जला दिया. 21 अगस्त को कुछ टाना भगतों ने सोनाचिपी आश्रम का ताला तोड़ दिया. इसमें पुलिस ने ताला लगा रखा था. 30 अगस्त को टाना भगत मंडेरहाट में एकत्र हुए.
महादेव सोनार, चमार भगत और गोवा भगत ने आदिवासियों को अगस्त आंदोलन में सक्रियता से भाग लेने के लिए भाषण दिया. इन्होंने सरकारी कर्मियों से इस्तीफा देने का अनुरोध किया. पुलिस ने इन तीनों को गिरफ्तार कर लिया. पुन: 24 अगस्त को चार टाना भगतों ने बेरमो डाक घर में घुस कर डाक कर्मचारियों से डाक का थैला छीन लिया. टाना भगतों ने अगस्त क्रांति के दौरान इश्तेहार का भी वितरित किया. हजारीबाग में 11 अगस्त को सरस्वती देवी के नेतृत्व में जुलूस निकाला गया.
डाकघर, रेलवे स्टेशन तथा शराब भट्ठी को निशाना बनाया गया. डोमचांच में जनता ने जुलूस निकाला. गोली चली तथा दो क्रांतिकारी मारे गये. छोटानागपुर में जमशेदपुर, पलामू, हजारीबाग में भी समाज के सभी वर्गों के लोगों ने मुख्यत: छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया. पलामू में हैदर नगर की रेलवे लाइन को भी छिन्न-भिन्न किया गया. नौ अगस्त को ही यदुवंश सहाय और गौरी शंकर ओझा गिरफ्तार कर लिये गये.
जमशेदपुर में 19 अगस्त को एमडी मदन के आग्रह पर श्रमिकों ने आंदोलन शुरू कर दिया. संपूर्ण टाटा उद्योग का प्रांगण अगस्त क्रांति का केंद्र बन गया.
संताल परगना में अगस्त क्रांति के दौरान 15 अगस्त को देवघर में खबर फैली कि जेल में कैदियों को भूखे रख कर यातना दी जा रही है. 26 अगस्त को देवघर के गोलीकांड में अशरफी लाल शहीद हो गये. देवघर में कृष्ण लाल साहू और अनूप लाल झा ने उग्र क्रांति का मार्ग अपनाया, तो राजमहल रेलवे स्टेशन पर झंडा फहराने का कार्य महेंद्र प्रसाद तथा श्रीधर सिंह ने किया.

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