प्रभात खबर की 35वीं वर्षगांठ: मीडिया कॉन्क्लेव आज, ”पत्रकारिता से उम्मीदें” पर चर्चा करेंगे चार वरिष्‍ठ पत्रकार

रांची :प्रभात खबर की 35वीं वर्षगांठ पर आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन रविवार को ‘प्रभात खबर मीडिया कॉन्क्लेव-2019’ का आयोजन किया जायेगा. कार्यक्रम में अतिथि वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला, आर राजगोपालन, संजीव श्रीवास्तव और आलोक मेहता उपस्थित रहेंगे. प्रभात खबर मीडिया कॉन्क्लेव आज के कार्यक्रम विषय : पत्रकारिता से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 11, 2019 3:20 AM

रांची :प्रभात खबर की 35वीं वर्षगांठ पर आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन रविवार को ‘प्रभात खबर मीडिया कॉन्क्लेव-2019’ का आयोजन किया जायेगा. कार्यक्रम में अतिथि वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला, आर राजगोपालन, संजीव श्रीवास्तव और आलोक मेहता उपस्थित रहेंगे.

प्रभात खबर मीडिया कॉन्क्लेव आज के कार्यक्रम

विषय : पत्रकारिता से उम्मीदें

समय: सुबह 10: 15 बजे

स्थान: रेडिशन ब्लू

इससे पहले प्रभात खबर की 35वीं वर्षगांठ की शुरुआत करते हुए उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने शनिवार कोकहा कि झारखंड के प्रतिष्ठित समाचार पत्र के कार्यक्रम में शामिल होकर मैं हर्ष का अनुभव कर रहा हूं. आपकी उपलब्धि आपकी निष्ठा दर्शाती है. भारतीय पत्रकारिता के लिए यह शुभ संदेश है. आपने तीन दशकों में जनता का विश्वास हासिल किया है.

यह निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता का परिणाम है. हरिवंश जी भी आपसे जुड़े रहे हैं. अब इस अखबार का आंदोलन रेडियो और ऑनलाइन मीडिया से भी जुड़ गया है. मीडिया की स्वतंत्रता को मौलिक स्वतंत्रता माना गया है. संचार क्रांति के दौर में मीडिया को चेतना बरकरार रखने की पत्रकारिता करनी चाहिए.

लोकतंत्र की रक्षा के लिए है जरूरी है मीडिया की स्वतंत्रता
उपराष्ट्रपति ने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था मीडिया की स्वतंत्रता जरूरी है. देश की आजादी में मीडिया की अहम भूमिका थी. आपातकाल के कड़वे अनुभव के बाद से संसद में भी मीडिया पर चर्चा होती रही है. नेताओं ने इसे आंदोलन से जोड़ा. अखबार के पन्नों में ही यह दिखता है. नये माध्यम आयेंगे, लेकिन लिखित शब्दों का अलग महत्व है. एक बार प्रिंट में छपा तो बदल नहीं सकता. तकनीक ने अखबार की लोकप्रियता को बढ़ाया है. आप स्मार्टफोन पर भी इसे आसानी से पढ़ सकते हैं.
आज जरूरत इस बात कि है कि अखबार अपना पक्ष न रखे, वह लोगों का पक्ष रखे. न्यूज और व्यूज को मिलाना नहीं चाहिए. इलेक्ट्रॉनिक व डिजिटल मीडिया के दौर में भी समाचार पत्र का अस्तित्व बरकरार है. समाचार पत्रों की विश्वसनीयता व गंभीरता आज भी कायम है. यह दिमाग में रहती है. अखबारों के ऑनलाइन संस्करणों ने लोकप्रियता में वृद्धि की है. तकनीक अखबार के लिए उपयोगी साबित हुई है.
मीडिया को फेक और पेड न्यूज से दूर रहना चाहिए
उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने की वजह से मीडिया की जिम्मेवारी बढ़ जाती है. मीडिया को फेक न्यूज और पेड न्यूज से दूर रहना चाहिए. मीडिया जन सरोकार के प्रति गंभीर बने. अखबार का हेडलाइन हमेशा डेडलाइन बन जाये, ऐसा बिल्कुल नहीं है.
महात्मा गांधी ने कहा था कि पत्रकारिता का उद्देश्य जनसेवा ही होना चाहिए. पत्रकारिता मिशन है. मीडिया को देश की सकारात्मक राजनीति का वाहक बनना होगा. दल की राजनीति नहीं बल्कि लोगों की बातों को प्रस्तुत करना मीडिया का काम होना चाहिए.
संसद और मीडिया एक-दूसरे की सहयोगी है. मैंने 42 सालों तक राजनीति की है, लेकिन कभी मैंने पेड न्यूज का सहारा नहीं लिया. आज चुनाव में पेड न्यूज और फेक पत्रकारिता की होड़ लगती दिखती है. यह बिल्कुल गलत है. मीडिया पूर्वाग्रहों को त्याग कर जनसेवा को प्राथमिकता दे. दलीय राजनीति से ऊपर उठ कर काम करे.
चुनाव के पहले लोगों को जागरूक करे मीडिया
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हाल के दिनों में मीडिया का प्रयोग खेद जनक रहा है. इस पर विचार होना चाहिए. पत्रकारिता की शुचिता बनाये रखना जरूरी है. चुनाव के समय मीडिया दूसरा रूख अख्तियार कर रहा है. चुनाव जाति या धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए. चुनाव में वोट देते समय जनता को विचारधारा, क्षमता, निष्ठा और चरित्र का ध्यान रखना चाहिए.
लेकिन, राजनीतिक दल इसके ठीक उलट जाति, मजहब, पैसा और अपराधी की बदौलत चुनाव जीतना चाहते हैं. यह ठीक नहीं है. मीडिया को चुनाव के पहले लोगों को जागरूक करना चाहिए. फैक्टशीट लोगों के सामने रखना चाहिए. सांसदों का सदन के अंदर का आचरण और कार्य लोगों को बताना चाहिए. भ्रष्टाचार और अापराधिक गतिविधियों की जानकारी देनी चाहिए.
लोग सबसे पहले अपनी मातृभाषा सीखें
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मैंने बचपन में हिंदी भाषा के विरोध में उपजे आंदोलन में भी हिस्सा लिया है. एक बार मैंने हिंदी के विरोध में आंदोलन किया था. हमने हिंदी भाषा का विरोध किया था. हमसे पूछा गया कि हमारे आसपास में हिंदी कहां है. काफी खोजने के बाद हमने पाया कि हमारे राज्य में दो जगह हिंदी है.
रेलवे स्टेशन और पोस्ट ऑफिस में. हम सब रेलवे स्टेशन पहुंचे और वहां हिंदी में लिखे शब्दों पर काली स्याही पोत दी. चुनाव जीत कर जब मैं पहली बार संसद पहुंचा, तो मुझे एहसास हुआ कि मैंने तब हिंदी पर कालिख नहीं पोती थी, मैंने अपने चेहरे पर कालिख पोत ली थी.
जब मैं दिल्ली आया, तो समझा कि हिंदी के बगैर देश का विकास नहीं हो सकता. लोग सबसे पहले अपनी मातृभाषा सीखें. आज के मां-बाप बच्चों को अंग्रेजी सिखाने में आगे होते हैं. उनको पता चलना चाहिए कि मां बोलने में जो आनंद है, वह मम्मी बोलने में नहीं. मां का उच्चारण दिल से होता है, जबकि मम्मी जुबान से बोली जाती है.
उन्होंने कहा कि देश के राष्ट्रपति कान्वेंट नहीं गये. चाय बनाने वाले परिवार से आने वाले प्रधानमंत्री कान्वेंट नहीं गये. आपके राज्य के मुख्यमंत्री भी कान्वेंट नहीं गये. मैं खुद बिना कॉन्वेंट गये देश का उप राष्ट्रपति बना. राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनना बिल्कुल आसान नहीं है. ऐसे में अंग्रेजी नहीं आयेगी, तो आगे नहीं बढ़ सकने की बात हरगिज सही नहीं हो सकती है.
उन्होंने बताया कि अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के लिए हुई बहस और मतदान के बाद उनकी पोती ने व्हाट्सएप के जरिये उन्हें यह कहानी याद दिलायी. श्री नायडु ने कहा कि दिल्ली में उन्हें एहसास हुआ कि हिंदी कितनी जरूरी है और उन्होंने कितनी बड़ी गलती की थी. हिंदी के बिना हिंदुस्तान का आगे बढ़ना संभव नहीं है. सभी भारतीय भाषाओं का आगे बढ़ना जरूरी है.
स्थानीय लोगों पर क्षेत्रीय भाषाओं का होता है प्रभाव
उपराष्ट्रपति ने क्षेत्रीय पत्रकारिता के महत्व पर बातें करते हुए कहा कि स्थानीय लोगों पर क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव होता है. आपकी अपनी मातृभाषा आपकी आंखें हैं, जबकि अन्य भाषाएं चश्मा. यदि आपकी आंखें ठीक हैं, तो सब कुछ दिखता है. यदि आंखें ही नहीं होंगी, तो चश्मा आपकी कोई मदद नहीं कर सकता. अपने बच्चों को अपनी भाषा जरूर सिखाएं. उन्होंने शुरुआती शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में दिये जाने की सलाह दी.
श्री नायडु ने कहा कि क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं का दायरा बहुत बड़ा है. उनकी भूमिकाएं भी बड़ी हैं. संसद और विधानसभा की बहस बेमानी है, यदि समाचार पत्रों में उसका प्रकाशन न हो. इलेक्ट्राॅनिक और डिजिटल मीडिया के दौर में भी समाचार पत्रों का अस्तित्व बरकरार है.
प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता थी, है और रहेगी. अखबार में छपा दिमाग में रहता है. तकनीक ने अखबारों की लोकप्रियता बढ़ायी है. अखबारों के ऑनलाइन संस्करण ने उनकी लोकप्रियता में वृद्धि की है. अब कोई भी अपने मोबाइल में कभी और कहीं अखबार देख सकता है.
अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला बहुमत से
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने की वजह से मीडिया की जिम्मेवारी बढ़ जाती है. मीडिया जन सरोकार के प्रति गंभीर रहे. पत्रकार सनसनी से बचे. आज के पत्रकार सेंसेशन के पीछे भागते हैं. जिसमें सेंस नहीं होता, उसे ही सेंसेशन कहते हैं. पत्रकारिता की जिम्मेवारी बड़ी है. खबर छापने से पहले उसकी पुष्टि जरूर कर लेनी चाहिए. न्यूज और व्यूज को कभी मिक्स न करें.
उपराष्ट्रपति ने अंग्रेजी में कहा
इन्फॉर्मेशन पब्लिश्ड आफ्टर कन्फर्मेशन इज लाइक एम्युनिशन यानी पुष्टि के बाद प्रकाशित सूचना किसी विस्फोटक से कम नहीं होता. इसलिए पत्रकारों को तथ्यहीन खबरों से, फेक न्यूज से परहेज करना चाहिए. पेड न्यूज पत्रकारिता के लिए घातक है. महात्मा गांधी ने कहा था कि पत्रकारिता का उद्देश्य जनसेवा ही होना चाहिए. पत्रकारिता मिशन है.
श्री नायडु ने कहा
कश्मीर और अनुच्छेद 370 राजनीतिक मुद्दा नहीं है. यह विशुद्ध रूप से राष्ट्रीय मुद्दा है. लोगों को अनुच्छेद 370 और 35 ए समझना चाहिए. मीडिया की जिम्मेवारी लोगों को अनुच्छेद 370 के बारे में बताने की होनी चाहिए.
जनता को पता चलना चाहिए कि सदन में इस पर क्या चर्चा हो रही है. इस बार पूरा देश टीवी से लग कर बैठा था. संसद में अनुच्छेद 370 पर चल रहे बहस को सभी देख रहे थे. सदन में पूरी चर्चा के बाद ही उसे हटाने की फैसला लिया गया. राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद दो तिहाई मतों से कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला लिया गया.
उप राष्ट्रपति ने 11 सितंबर 1964 में हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट पढ़ कर सुनायी. बताया कि संसद में उस समय कश्मीर मुद्दे और अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर चर्चा हुई. चर्चा में राममनोहर लोहिया, एचबी कामत, के हनुमंतैया, भगवत झा आजाद, डॉक्टर काशीराम गुप्ता, सरयू पांडेय जैसे लोग शामिल थे. कश्मीर से आये सांसद श्यामलाल सर्राफ और इंद्रजीत मलहोत्रा ने भी इसमें हिस्सा लिया था.
संसद में उस समय अनुच्छेद 370 को हटाने की बात पर चर्चा हुई. सांसदों ने इसे हटाने की मांग की थी. श्री नायडु ने कहा : कश्मीर भारत की आंतरिक समस्या है. इस पर अंतरराष्ट्रीय चर्चा की कोई जरूरत नहीं है.
दूसरे देश चाहते हैं तो हमसे अन्य मुद्दे पर बात करें. कश्मीर पर नहीं. कश्मीर भारत का है. अब भी लोग कहते हैं कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने की क्या इमरजेंसी थी. मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं कि यह कोई इमरजेंसी नहीं, बल्कि अर्जेंसी थी. जम्मू-कश्मीर पर लोकसभा, राज्यसभा में सार्थक चर्चा हुई. चर्चा और बेहतर हो सकती थी, लेकिन व्यवधान भी आया.
मुझे कुछ एक्शन भी लेना पड़ा. जरूरत थी. चर्चा होनी चाहिए, उसी से बिंदुओं का पता चलता है. चर्चा बहुत महत्वपूर्ण हो. राज्यसभा हो, लोकसभा हो, विधानसभा हो या फिर नगर निगम या फिर जहां भी सदन में चर्चा हो, उसका बॉयकाॅट नहीं होना चाहिए. किसी को एक्सपेल्ड भी नहीं होना चाहिए. संसदीय व्यवस्था में कोई भी निर्णय सांसदों-विधायकों के बीच चर्चा और वाद-विवाद के बाद लिया जाता है. जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करने में भी इसी व्यवस्था का पूरी तरह पालन किया गया है.
बचपन की घटना का किया जिक्र
श्री नायडु ने अपने बचपन की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि मैंने स्कूल में कश्मीर से धारा 370 हटाने के लिए आंदोलन किया था. कश्मीर में बम धमाके के विरोध में मैंने अपना स्कूल बंद कराया था. मास्टर ने मुझसे पूछा कि तुम्हारा गांव कौन सा है. मैंने अपने गांव का नाम बताया काशमूर. उन्होंने कहा कि कश्मीर और काशमूर में कोई कनेक्शन है क्या. कश्मीर में धमाका हुआ, तो यहां क्यों बंद. मैंने उनसे कहा था कि अगर आपके पैर में चोट आयी, तो आप उसे केवल देखेंगे. हाथ से सहलायेंगे नहीं. बिना सहलाये चोट दूर कैसे होगी. आपके शरीर के किसी हिस्से में चोट आने पर पूरे शरीर को दर्द होता है और उसे बचाने के लिए शरीर का दूसरा हिस्सा सामने आता है. कश्मीर भी मेरे देश का हिस्सा है. कश्मीर हमारा था, है और रहेगा.
प्रभात खबर से मेरा पुराना रिश्ता
उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रभात खबर से मेरा पुराना रिश्ता है. मैं यहां काफी पहले से आता रहा हूं. होटल में सुबह-सुबह सबसे पहले यहां प्रभात खबर ही मिलता था. दूसरे अखबार बाहर से आते थे, इसलिए देरी से मिलते थे. मेरे आंध्र प्रदेश में लोग सुबह चार बजे ही जग जाते हैं. हम लोगों को सुबह पेड़ के नीचे चाय के साथ अखबार पढ़ने की आदत होती है. फर्स्ट न्यूज इज द बेस्ट न्यूज.

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