मजबूरी में चलाना पड़ रहा है रिक्शा

।। राजेश तिवारी ।। राज्य पथ परिवहन निगम के कर्मचारी बदहाल रांची डिपो में कार्यरत 35 कर्मचारियों को पांच माह से वेतन नहीं पीड़ा सुनाते-सुनाते डबडबा जाती हैं इनकी आंखें कहा, हमारी सुननेवाला कोई नहीं, दुकानदारों ने उधार देना भी किया बंद रांची : पांच माह से वेतन नहीं मिला है, हालत काफी खराब है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 26, 2014 6:07 AM

।। राजेश तिवारी ।।

राज्य पथ परिवहन निगम के कर्मचारी बदहाल

रांची डिपो में कार्यरत 35 कर्मचारियों को पांच माह से वेतन नहीं

पीड़ा सुनाते-सुनाते डबडबा जाती हैं इनकी आंखें

कहा, हमारी सुननेवाला कोई नहीं, दुकानदारों ने उधार देना भी किया बंद

रांची : पांच माह से वेतन नहीं मिला है, हालत काफी खराब है. दिन के दस बजे से दो बजे तक सरकार की सेवा करते हैं. इसके बाद रिक्शा चलाते हैं.

कभी-कभी होटल में भी काम करना पड़ता है. मजबूर हैं, क्या करें? परिवार का पेट भी पालना है.

राज्य पथ परिवहन निगम के रांची डिपो में हेल्पर के तौर पर कार्यरत मनु प्रसाद अपनी पीड़ा कुछ इस तरह बयां करते हैं. अपनी पीड़ा कहते-कहते उनकी आंखें डबडबा जाती हैं. वह कहते हैं हमारी कोई सुननेवाला नहीं है. हम कैसे रह रहे हैं, गुजारा किस तरह से कर रहे हैं, कोई इसकी सुध भी नहीं लेता.

यह स्थिति केवल मनु की ही नहीं, बल्कि डिपो में कार्यरत हर कर्मचारी की है. वेतन नहीं मिलने से दुकानदारों ने उधार में सामान देना बंद कर दिया है. महीनों से किराया बकाया है, जिस वजह से रमेश चंद्र को घर छोड़ना पड़ा. अब वे डिपो में एक छोटे से मकान में रह रहे हैं, जो पूरी तरह से जजर्र हो चुका है. इन कर्मचारियों को मार्च से ही वेतन नहीं मिला है.

पहले चलती थीं 36 बसें, आज एक भी नहीं

एक जुलाई 2004 को झारखंड सरकार ने सरकारी बस डिपो का अधिग्रहण किया. वर्ष 2009 में इसका विभाजन हुआ. विभाजन के दौरान बिहार से 202 कर्मचारी यहां आये. उस वक्त 36 बसें इस डिपो से खुलती थीं. लेकिन धीरे-धीरे बसें खराब होती चली गयीं, जिन्हें सरकार ने सरेंडर भी कर दिया है.

वर्ष 2009 तक 15 बसें ही बच गयीं, जो टाटा, पटना, गया, पूर्णिया व औरंगाबाद के लिए चलती थीं. वर्तमान में इस डिपो से राज्य पथ परिवहन निगम की एक भी बस नहीं खुलती. अब यहां इक्का-दुक्का निजी बसें ही लगती हैं.

नीलामी के लिए खड़ी हैं 44 बसें

कर्मचारियों ने बताया कि यहां राज्य पथ परिवहन की 44 बसें नीलामी के लिए पड़ी हुई हैं. वर्ष 2012 में नीलामी के सारे कागजात भी तैयार कर लिये गये थे, लेकिन आज तक इन बसों की नीलामी नहीं हो पायी है. वहीं, धुर्वा में 100 बसों की नीलामी हो चुकी है.

अब तक पांच की हो चुकी मौत

सरकारी बस डिपो में कार्यरत कई कर्मचारियों की मौत या तो इलाज के अभाव में हो गयी है या पारिवारिक स्थिति को सहन न कर पाने की स्थिति में हुई है. अब तक पांच कर्मचारियों की मौत हो चुकी है.

44 हजार रुपये बकाया: डिपो का बकाया बिजली बिल 5.10 लाख रुपये है. पानी का भी 44 हजार रुपये बकाया हो गया है.

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