एम जेड खान की पुस्‍तक ”गर्द-ए-राह-ए-यार” का लोकार्पण

रांची : अंजुमन प्लाजा के मौलाना आजाद हॉल में एम जेड खान की पुस्तक ‘गर्द-ए-राह-ए-यार’ का लोकार्पण दूरदर्शन के पूर्व निदेशक शैलेश पंडित, डॉ मिथिलेश अकेला, गुफरान अशरफी, डॉ एहसान दानिश, अदीब (गया), डॉ जमशेद कमर, डॉ रिजवान, डॉ राजश्री जयंती, नजमा नाहिद आदि ने किया. मौके पर डॉ रिजवान अंसारी ने कहा कि ये […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 18, 2019 9:11 PM

रांची : अंजुमन प्लाजा के मौलाना आजाद हॉल में एम जेड खान की पुस्तक ‘गर्द-ए-राह-ए-यार’ का लोकार्पण दूरदर्शन के पूर्व निदेशक शैलेश पंडित, डॉ मिथिलेश अकेला, गुफरान अशरफी, डॉ एहसान दानिश, अदीब (गया), डॉ जमशेद कमर, डॉ रिजवान, डॉ राजश्री जयंती, नजमा नाहिद आदि ने किया. मौके पर डॉ रिजवान अंसारी ने कहा कि ये किताब अदब की कई विधाओं को अपने अंदर समेटे हुई है. इसमें 1975 की इमरजेंसी का भी जिक्र है, 1989 में शिलान्यास के बाद हुए दंगों की चर्चा है.

उन्‍होंने कहा कि इस पुस्‍तक में उर्दू अदब की नयी विधा गजलनुमा पर भी एक अध्याय मिलेगा. बिहार के सासाराम, जहां लेखक का बड़ा हिस्सा गुजरा, वहां की उस समय की सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक हालात से रू-ब-रू कराया गया. किताब बड़े रोचक और कहानी कहने के अंदाज में लिखी गयी है. एक बार हाथ लगाने के बाद छोड़ने का मन नहीं करेगा.

डॉ शैलेश पंडित ने किताब की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि खान साहब झारखंड के मजदूरों के लेखक हैं. बंसी दत्त शुक्ल की परंपरा का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि खान साहब रांची में उसी परंपरा को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. मिथिलेश अकेला ने कहा कि इस किताब का लिप्‍यांतर हिंदी में भी होना चाहिए.

डॉ जमशेद कमर ने सभा का संचालन करते हुए कहा कि झारखंड के उर्दू अदब के लिए ये किताब एक नगीने की हैसियत रखती है. वक्‍त इसे अदबी हैसियत देगा. गयासुद्दीन मुन्ना भाई ने किताब की रोचकता पर कहा कि मैं अदब पढ़ता नहीं हूं और न समझता हूं. लेकिन इस किताब ने मुझे बांधे रखा. इसमें ऐसे-ऐसे रोचक संस्मरण हैं जो गुदगुदाते भी हैं और उदास भी करते हैं.

डॉ एहसान ताबिश ने किताब की पठनीयता पर बोलते हुए कहा कि किताब पढ़ने के बाद उकताहट का एहसास नहीं होता. 40-50 साल की यादों को समेटना बड़ा मुश्किल है और ये काम खान साहब ने किया. इसे हर जबान में आना चाहिए. ये किताब लेखक को निश्चित रूप से उर्दू अदब में पहचान दिलायेगी.

किताब के लेखक एम जेड खान ने किताब पर अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इसे आप संस्मरण का भी नाम दे सकते हैं, या तजकिरा भी कह सकते हैं और कुछ लोग इसे ऑटोग्राफी का भी नाम दे रहे हैं. लेकिन ये किसी की ऑटोग्राफी भी नहीं है, बल्कि ये यादों का ऐसा कारवां है जो अपने 40-50 साल के सफर के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गर्दो गुब्बार को समेटे हुए है.

इनके अलावा डॉ राजश्री जयंती, डॉ महफूज आलम, उजैर अहमद, नजमा नाहिद अंसारी, आफरीन अख्तर, आदि ने भी पुस्तक पर अपने विचार रखे. दूसरे सत्र में मुशायरा/कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसकी अध्यक्षता उर्दू के उस्ताद शायर गुफरान अशरफी ने की. संचालन गया से आये खलिक परदेसी ने किया. व्यंग्य के शायर नटखट अजीमाबादी ने पकोड़े पर अपनी शायरी ‘मैं इतना तो मजबूर नहीं के पकौड़े बेचूं, खाने वाला मैं अंगूर पकौड़े बेचूं.’ सुनायी, जिसे काफी पसंद किया गया.

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