रांची :आदिवासी संस्कृति बचाना जरूरी : राज्यपाल

डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान व साहित्य अकादमी का राष्ट्रीय जनजातीय अखरा शुरू रांची : राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि देश में 300 से अधिक जनजातियां हैं, जिनकी भाषा, वेशभूषा और संस्कृति अलग हैं. लेकिन उनमें एक बात समान है़ वे प्रकृति प्रेमी हैं, प्रकृति की पूजा करते हैं और प्रकृति […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 24, 2019 8:37 AM
डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान व साहित्य अकादमी का राष्ट्रीय जनजातीय अखरा शुरू
रांची : राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि देश में 300 से अधिक जनजातियां हैं, जिनकी भाषा, वेशभूषा और संस्कृति अलग हैं. लेकिन उनमें एक बात समान है़ वे प्रकृति प्रेमी हैं, प्रकृति की पूजा करते हैं और प्रकृति के साथ जीते हैं.
उनकी संस्कृति बहुत समृद्ध है और हमें इसे बचाना है़ लेकिन इतनी समृद्ध संस्कृति होने के बावजूद वे पिछड़े है़ं संविधान में उनके लिए कई प्रावधान है़ं यह देखना चाहिए कि इसका उन्हें कितना लाभ मिला है? डॉ रामदयाल मुंडा ने जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विकास में अहम भूमिका निभायी है़ उन्हें धन्यवाद़ कई जनजातियों ने अपनी लिपि विकसित की है़ बच्चे अपनी लिपि में पढ़ना चाहते है़ं
उन्हें अपनी परंपरा, संस्कृति व पहचान को बचाने के लिए सुविधा दी जा रही है़ वह डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान व साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय जनजातीय अखरा कार्यक्रम में बोल रही थीं.
रांची विवि के वीसी डॉ रमेश कुमार पांडेय ने कहा कि रांची विवि में सभी जनजातीय भाषाओं में एमए की पढ़ाई शुरू हो चुकी है़ जल्द ही इसके जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का दर्जा मिल जायेगा़ रांची विवि व इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स के सहयोग और यूजीसी के ओपेन सिस्टम से भी पाठ्यक्रम चलाये जा रहे है़ं
विश्वविद्यालय इस साल फिल्म प्रभाग भी शुरू कर रहा है, जिसमें जनजातीय फिल्मों को बढ़ावा दिया जायेगा़
वीबीयू में चल रहा है संताली भाषा का कोर्स : विनोबा भावे विवि के वीसी प्रो रमेश शरण ने कहा कि आदिवासी साहित्य धनी है, पर इसके बारे में लोगों का ज्ञान सीमित है़ विनोबा भावे विवि में संताली सीखने का एक महीने का पाठ्यक्रम शुरू किया गया है़ यदि इसे पसंद किया गया, तो अन्य जनजातीय भाषाओं के कोर्स भी शुरू किये जायेंगे़
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि के वीसी डॉ सत्यनारायण मुंडा ने कहा कि आदिवासियों की व्यवस्था और उनका दृष्टिकोण बहुत वैज्ञानिक है़ इससे पूर्व डीआरआइ के निदेशक रणेंद्र ने अतिथियों का स्वागत किया़ उन्होंने बताया कि जनवरी में आदिवासी दर्शन पर अंतराष्ट्रीय सेमिनार किया जायेगा़ मौके पर कल्याण विभाग के सचिव सुनील कुमार, डॉ अमिता मुंडा, गुंजल इकिर मुंडा और देश भर से आये आदिवासी साहित्यकार उपस्थित थे़
जनजाति की जगह आदिवासी शब्द का हो प्रयोग
रांची : राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य अखरा- 2019 में ‘आदिवासी साहित्य: विकास, परंपरा और वैशिष्ट्य’ विषय पर परिचर्चा हुई, जिसमें साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित अनुज लुगुन ने कहा कि जनजाति और आदिवासी शब्द में फर्क है़ इस मंच से आदिवासी शब्द को स्थापित करने की मांग होनी चाहिए़ प्रमोद मीणा ने कहा कि तमाम विश्वविद्यालयों में दलित, स्त्री, आदिवासी जैसे तमाम विमर्शों को पढ़ने- पढ़ाने से रोका जा रहा है़ यदि ये नहीं पढ़ाये जायेंंगे, तो समाज एकांगी बन कर रह जायेगा़ विनोद कुमरे ने कहा कि कभी हमें जनजाति, कभी ट्राइबल, कभी गिरिजन, कभी वनवासी, कभी राक्षस कहा जाता है़ यदि हम इंडिजिनस हैं, तो हमें हमारी जमीन से क्यों खदेड़ा जाता है़ आदिवासी जीवन के बारे में सिर्फ पांच प्रतिशत बातें ही सामने आयी है़ं
आदिवासी खुद को ‘होड़’ कहता है, जिसका अर्थ मनुष्य है
साहित्य अकादमी से सम्मानित भोगला सोरेन ने कहा कि आदिवासी खुद को होड़ कहते हैं जिसका अर्थ मनुष्य है़ हम कौन हैं, इसका जवाब हमारी लोककथाओं में है़ं इनमें धरती, मानव और सृष्टि की उत्पत्ति की कथा है़
85,000 साल पहले जब हमारे पूर्वजों ने अफ्रीका छोड़ा था, तब से हमारी यात्रा की जानकारी है़ हरेराम मीणा ने कहा कि विकास को सिर्फ आर्थिक नजरिये से देखा जाता है, जबकि आदिवासी समाज मूल मानवीय सरोकार और जीव जंतुओं के साथ सह अस्तित्व से जुड़ा रहा है़ प्रो एल ख्यांगते ने कहा कि मिजो भाषा में काफी लेखन व अनुवाद के कार्य हो रहे है़ं
जीतराय हंसदा ने कहा कि आदिवासी साहित्य की रचना करनेवालों में आदिवासियत होना जरूरी है़ मन में जो है, बेहिचक लिखे़ं मिथिलेश कुमार, मिथिलेश प्रियदर्शी और नितिशा खलखो ने भी विचार रखे़ इसके बाद के सत्र में आदिवासी मातृभाषाओं का साहित्य विषय पर चर्चा हुई़ तकनीकी सत्र में एसी खरिंगपम, श्याम सागर मेहर, सुबोध हंसदा व शंख चटर्जी सहित कई लोगों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये़
सीयूजे में रामदयाल मुंडा जयंती मनी
रांची : सीयूजे के ब्रांबे परिसर में शुक्रवार को पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा की 80वीं जयंती मनायी गयी. इस मौके पर डॉ मुंडा की तसवीर पर माल्यार्पण किया गया और पुष्प अर्पित किये गये.
वक्ताअों ने डॉ मुंडा द्वारा भाषा के क्षेत्र में किये गये कार्य व अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने के संबंध में चर्चा की गयी. इस अवसर पर जनजाति अध्ययन केंद्र के डॉ रवींद्र नाथ शर्मा, लुप्त प्राय भाषा केंद्र के सुधांशु शेखर, सहायक प्राध्यापक गुंजल इकिर मुंडा, अरुण पांडे, अभ्युदय अनुराग, जोया खालिद, शिल्पा, ऋषिका और डॉ विक्रम जोरा आदि मौजूद थे.
डीएसपीएमयू में श्रद्धांजलि दी गयी
रांची. डीएसपीएमयू में शुक्रवार को पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा की जयंती मनायी गयी. इस मौके पर विवि के कुलपति डॉ एसएन मुंडा ने कहा कि डॉ राम दयाल मुंडा असाधारण प्रतिभा के धनी थे. विश्व में झारखंड की संस्कृति को पहुंचानेवाले वह पहले व्यक्ति थे.
इनके द्वारा ही जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग का गठन हुआ. डॉ सुभाष मुंडा ने कहा कि डॉ मुंडा शिक्षाविद के साथ-साथ अच्छे बांसुरी वादक भी थे. रजिस्ट्रार डॉ एनडी गोस्वामी, डीएसडब्ल्यू डॉ नमिता सिंह, डॉ विनोद कुमार, प्रो शाहदेव, प्रो पीपी महतो, प्रो सोरेंग, प्रो रामदास उरांव ने भी अपने विचार रखे. इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया.
डॉ रामदयाल मुंडा को आजसू ने दी श्रद्धांजलि
रांची. शिक्षाविद व कला प्रेमी डॉ राम दयाल मुंडा की जयंती पर आजसू ने श्रद्धांजलि अर्पित की.मौके पर सदस्यों ने डॉ राम दयाल मुंडा पार्क में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया और उनके दिखाये मार्ग पर चलने का संकल्प दोहराया. मौके पर पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस के जनक पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा देश के एक प्रमुख बौद्धिक और सांस्कृतिक शख्सियत थे.
आदिवासी अधिकारों को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच तक उन्होंने आवाज उठायी अौर दुनिया के आदिवासी समुदाय को संगठित किया. कार्यक्रम में वरीय नेता संजय बसु मल्लिक, केंद्रीय प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत, वायलेट कच्छप, बनवाली मंडल, अभिषेक सहित कई लोग उपस्थित थे.
आदिवासी समाज के सच्चे हितैषी थे डॉ मुंडा
रांची : आदिवासी जन परिषद द्वारा केंद्रीय कार्यालय, करमटोली में डाॅ रामदयाल मुंडा की तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया़ इस अवसर पर अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि डाॅ मुंडा आदिवासी समाज के सच्चे हितैषी थे़
उनके प्रयास से वनाधिकार कानून 2006 बनाया गया, पर आज सरकार के द्वारा इसकी धज्जियां उड़ायी जा रही है़ं आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन की स्वायत्तता पर ग्रहण लग रहा है़ मौके पर अभय भुटकुंवर, क्रिस्टो कुजूर, भगीरथ सिंह मुंडा, उमेश लोहरा सहित अन्य थे.
सांस्कृतिक चेतना के अग्रदूत थे डॉ मुंडा
रांची : डॉ रामदयाल मुंडा की 80वीं जयंती शुक्रवार को कला भवन होटवार में मनायी गयी. इस दौरान आयोजित संगोष्ठी में रामदयाल मुंडा के योगदानों पर चर्चा की गयी. वक्ताओं ने उन्हें सांस्कृतिक चेतना का अग्रदूत बताया. मुख्य अतिथि विधायक जीतूचरण राम ने कहा कि रामदयाल मुंडा के महान व्यक्तित्व के जन्म दिवस के बहाने झारखंड का कला सांस्कृतिक विभाग यहां की कला संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन कर रहा है़
इस मौके पर विशिष्ट अतिथि खेल विभाग के निदेशक अनिल कुमार सिंह, 20 सूत्री कार्यक्रम कार्यव्यन समिति की सदस्य विमला साहू, संस्कृति विभाग के डायरेक्टर दीपक कुमार, सहायक निदेशक विजय पासवान, उपनिदेशक अमिताभ कुमार आदि मौजूद थे. रामदयाल मुंडा के गुरु बीएस शर्मा, गिरिधर राम गोंझू, गंदूरा मुंडा, पद्मश्री मुकुंद नायक, मधु मंसुरी, हरदेव नारायण सिंह, जिंदर सिंह मुंडा और ने अपनी बातें रखी़ं इस दौरान गुरु मुंडा, सुषमा नाग, सुबोध प्रमाणिक और सोमवारी देवी ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बेजोड़ प्रस्तुति दी. संचालन डॉ कमल बोस ने किया़
रांची : भाषा-साहित्य में रहा अमूल्य योगदान
रांची : जय आदिवासी केंद्रीय परिषद द्वारा नगड़ा टोली स्थित मुख्यालय में डॉ रामदयाल मुंडा की 80वीं जयंती मनायी गयी़ परिषद के पदाधिकारियों और लोगों ने उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया़
इस अवसर पर प्रदेश अध्यक्ष मोती कच्छप ने कहा कि भाषा व साहित्य के विद्वान डाॅ रामदयाल मुंडा का योगदान महत्वपूर्ण है़ प्रदेश महिला शाखा की अध्यक्ष निरंजना हेरेंज टोप्पो ने कहा कि हमें अपनी धर्म- संस्कृति की रक्षा के लिए सजग रहना होगा. इसके अतिरिक्त हलधर चंदन पाहन, पारस लकड़ा, गीता लकड़ा, मुन्ना टोप्पोे ने भी विचार व्यक्त किये.

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