रांची : प्रेम जैसे विषयों से ज्यादा जरूरी मुद्दों पर लिखना

रांची : डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान और साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय जनजातीय अखड़ा 2019 में विभिन्न राज्यों से शामिल हुए आदिवासी रचनाकारों ने अपनी बातें साझा की. साथ ही विभिन्न मुद्दों पर अपनी बेबाक राय भी रखी. लोगों के मुद्दों पर लिखना ज्यादा जरूरी है मिजोरम की हन्ना ललहनपुई हैदराबाद विवि में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 26, 2019 9:42 AM
रांची : डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान और साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय जनजातीय अखड़ा 2019 में विभिन्न राज्यों से शामिल हुए आदिवासी रचनाकारों ने अपनी बातें साझा की. साथ ही विभिन्न मुद्दों पर अपनी बेबाक राय भी रखी.
लोगों के मुद्दों पर लिखना ज्यादा जरूरी है
मिजोरम की हन्ना ललहनपुई हैदराबाद विवि में अंगरेजी में पीएचडी कर रही हैं. कविता की एक पुस्तक ‘वेन ब्लैकबर्ड्स फ्लाई’ लिखी है़ उनकी कविताओं में मिजो विद्रोह और इतिहास की बातें होती है़ं उन्हें शिकायत है कि नॉर्थ ईस्ट के लेखकों को स्टीरियोटाइप कहा जाता है़ जबकि वह भी हर तरह का लेखन करते है़ं व्यक्तिगत रूप से वह प्रेम जैसी संवेदनाओं से ज्यादा अपने लोगों के मुद्दे पर लिखना ज्यादा जरूरी समझती है़ं
पहचान और लैंगिक हिंसा है पसंदीदा विषय
अरुणाचल प्रदेश की नुरांग रीना जेएनयू में इंटरनेशनल रिलेशंस पर पीएचडी कर रही हैं. किशोरावस्था में लिखना शुरू किया़ कविताएं और कहानियां लिखती है़ं कई जगहों पर कविता पाठ किया है़ पहचान, लैंगिक हिंसा और पितृ सत्तात्मक व्यवस्था उनके पसंदीदा विषय है़ं वह कहती हैं कि आम समझ के विपरीत वहां की जनजातियों में पितृ सत्तात्मक व्यवस्था काफी सशक्त है़ वे भविष्य में उपन्यास और नॉन फिक्शन भी लिखना चाहती है़ं
दिनोंदिन समृद्ध हो रहा है पूर्वोत्तर का जनजातीय साहित्य
गुवाहटी, असम से आये दिनकर कुमार ने लंबे समय तक सेंटीनल अखबार का संपादन किया है़ असमिया की 60 किताबों का हिंदी में अनुवाद किया है और कविता की नौ किताब व दो उपन्यास भी लिखे हैं. वह कहते हैं कि पूर्वोत्तर का जनजातीय साहित्य काफी समृद्ध है, लेकिन मुख्यधारा की भाषाओं में अनुवाद नहीं होने के कारण ज्यादा चर्चा में नहीं है़ बोड़ो, मणिपुरी के साथ साथ परवल, चकमा, कारबी, खासी, गारो में भी काफी कुछ लिखा जा रहा है़
साहित्यकार प्रकृति के अनुरूप विचारधारा रखें
महाराष्ट्र के गौतम कुंवर ने नंदूरबार जिला के भील व पावर लोक साहित्य पर पीएचडी की है़ वे कहते हैं कि आदिवासी साहित्यकारों को प्रकृति के अनुरूप विचारधारा रखनी चाहिए और लिखना चाहिए़ तभी आदिवासियों की अस्मिता और उनका अस्तित्व सुरक्षित रहेगा़ भीली जैसी कई भाषाएं हैं, जिन्हें बोलने वाली बड़ी आबादी है़ उन्हें संवैधानिक दर्जा मिलना चाहिए़ वह मानते हैं कि आदिवासी साहित्य तभी स्थापित होगा, जब आभिजात्य साहित्यकारों की मानसिकता बदलेगी़
मध्य प्रदेश से आयीं चर्चित आदिवासी लेखिका सुशीला धुर्वे ने हिंदी कहानी संग्रह ‘बैन गंगा’, ‘मेरा गोंडवाना महान’, ‘जय गोंडवाना’ और ‘मोद वेड़ची’ किताबें लिखी है़ं वे कहती हैं कि मूल भाषाएं विलुप्त हो रही है़ं आदिवासी समाज को उन्हें बचाने के लिए अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए़़ वह बताती हैं कि मध्य प्रदेश में रविवार को लोग जुटते हैं और गोंडी भाषा की पढ़ाई करायी जाती है़ ओड़िशा में 300 शिक्षक गोंडी भाषा का प्रचार- प्रसार कर रहे हैं.

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