रांची : विधानसभा के दो अफसरों को सीआरएस

रांची : आठ साल बाद विधानसभा नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले में बड़ी कार्रवाई हुई है. विधानसभा सचिवालय ने सोमवार को दो अधिकारियों रवींद्र कुमार सिंह और राम सागर राम को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया है. संयुक्त सचिव स्तर के दोनों अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गयी है. विधानसभा में कार्यरत रवींद्र कुमार सिंह नवंबर, 2019 में सेवानिवृत्त […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 27, 2019 7:22 AM
रांची : आठ साल बाद विधानसभा नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले में बड़ी कार्रवाई हुई है. विधानसभा सचिवालय ने सोमवार को दो अधिकारियों रवींद्र कुमार सिंह और राम सागर राम को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया है.
संयुक्त सचिव स्तर के दोनों अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गयी है. विधानसभा में कार्यरत रवींद्र कुमार सिंह नवंबर, 2019 में सेवानिवृत्त होने वाले थे, जबकि राम सागर राम 2023 में रिटायर होते. दोनों अफसर बिहार विधानसभा से कैडर बंटवारे के बाद यहां आये थे. दोनों अधिकारियों पर विधानसभा की नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा था.
तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी और आलमगारी आलम के समय में हुई नियुक्तियों के दौरान दोनों स्थापना शाखा में पदस्थापित थे. नियुक्ति के दौरान बने कोषांग में भी इनकी भूमिका थी. विधानसभा में गलत तरीक से सृजित किये गये पद, नियुक्तियों के लिए स्क्रूटनी और नियुक्ति प्रक्रिया में इनकी संलिप्तता पायी गयी थी. स्पीकर दिनेश उरांव के अादेश के बाद इनको हटाया गया है.
500 के करीब हुई थीं अवैध नियुक्तियां : तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रहे इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के कार्यकाल में 500 से अधिक अवैध नियुक्तियां हुई थीं. वहीं शशांक शेखर भोक्ता के कार्यकाल में 150 सहायकों को गलत तरीके से प्रोन्नत किया गया था.
इस घोटाले की लंबी जांच चली. तत्कालीन राज्यपाल के आदेश के बाद जांच के लिए अायोग का गठन हुआ था. जांच का जिम्मा जस्टिस लोकनाथ प्रसाद को दिया गया था. दो साल में जांच पूरी नहीं होने पर जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद को आयोग की जिम्मेदारी दी गयी.
इसी अायोग ने जांच पूरी कर रिपोर्ट गवर्नर द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी. जांच में जस्टिस प्रसाद ने भारी गड़बड़ी पायी थी. राज्यपाल ने इस रिपोर्ट के विधानसभा को भेज दिया था. जस्टिस प्रसाद की अनुसंशा पर विधानसभा सचिवालय कार्रवाई कर रहा है. आयोग गठन के लगभग आठ साल के बाद विधानसभा ने पहली कार्रवाई की है.

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