रांची: झारखंड राज्य वित्तरहित शिक्षा संयुक्त संघर्ष मोर्चा के बैनर तले राज्यभर के वित्तरहित कॉलेजों के प्राध्यापक पिछले पांच सितंबर से अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. आज आंदोलन का सातवां दिन है. मोर्चा तले कई प्राध्यापक पिछले सात दिन से आमरण अनशन कर रहे हैं. इनका आरोप है कि कई दिनों से आंदोलनरत होने के बावजूद हमारी सुध लेने सरकार या प्रशासनिक स्तर का कोई प्रतिनिधि अभी तक नहीं आया. यहां उपस्थित शिक्षकोंं ने बताया कि उन्होंने बीते 9 अगस्त को विधानसभा भवन के बाहर भी धरना दिया था.
शिक्षकों की सरकार से है ये पांच मुख्य मांग
बातचीत में आंंदोलनरत प्राध्यापकों ने बताया कि सरकार से हमारी पांच मुख्य मांगे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार शिक्षा में सुधार की बात करती है लेकिन हम भूखमरी की हालत में हैं. सरकार हमारी कोई बात नहीं सुनती. उन्होंने बताया, हमारी मांग है कि सालों से चली आ रही वित्तरहित शिक्षा नीति को समाप्त करने के लिए उच्चस्तरीय कमिटि बनाई जाए, इंटरमीडिएट शिक्षक-कर्मचारी सेवाशर्त नियमावली पर मंत्रीपरिषद् की सहमति ली जाए, मान्यता प्राप्त स्कूल-कॉलेजों को घाटानुदान दिया जाए, विभिन्न स्तरीय जांच के नाम पर कॉलेजों को बार-बार परेशान ना किया जाए, अनुदान की राशि अधिनियम एवं नियमावली के अनुसार दी जाए और अनुदान के लिए एक तय स्लैब बनाया जाए.
सरकार पर अनदेखी करने का लगाया आरोप
उनका ये आंदोलन कितने समय तक चलेगा ये पूछने पर मोर्चा के अध्यक्ष मंडल के सदस्य सुरेंद्र कुमार झा ने कहा कि, हम कई सालों से सरकार से अपने अधिकारों की मांग करते आए हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. हम सड़क पर हैं लेकिन शिक्षा के प्रति खुद को प्रतिबद्ध बताने वाली सरकार ने अब तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की है. उन्होंने कहा कि हमने सरकार से कई बार इस मसले पर वार्ता की कोशिश की लेकिन जब हमारी बात नहीं सुनी गई तो आमरण अनशन को मजबूर हुए.
आंदोलन में आगे की रणनीति के बाबत पूछे जाने पर सुरेंद्र झा ने कहा कि 12 सितंबर को रांची में प्रधानमंत्री का दौरा है. इस दौरान हम सभी शिक्षक अपने परिवार सहित भूख हड़ताल करके संदेश देंगे कि वास्तव में हमारी हालत क्या है.
जांच के नाम पर परेशान किये जाने का आरोप
झारखंड राज्य वित्तरहित शिक्षा संयुक्त संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष मंडल के एक अन्य सदस्य चंद्रेश्वर पाठक ने कहा कि एकीकृत बिहार के समय से ही वित्तरहित शिक्षा नीति चली आ रही है. जब झारखंड बना तो साल 2007 से सरकार ने अनुदान देना आरंभ किया. अनुदान तय नियम के तहत ही दिया जाता था. लेकिन पिछले साल से स्कूली साक्षरता विभाग के प्रधान सचिव ने कहा कि अधिनियम के तहत नहीं बल्कि अब तर्कों के आधार पर अनुदान दिया जाएगा. इनकी शिकायत है कि जब पहले कॉलजों को सीधा अनुदान दे दिया जाता था लेकिन अब ये जिला शिक्षा पदाधिकारी के मार्फत दिया जा रहा है. इससे काफी दिक्कतें हैं.
मांगे माने जाने तक जारी रहेगा आमरण अनशन
उन्होंने जांच के नाम पर परेशान किए जाने का भी आरोप लगाया. अध्यक्ष मंडल के सदस्य सुरेंद्र कुमार झा ने बताया कि पहले जिला शिक्षा पदाधिकारी जांच करते हैं. इसके बाद जिलाधिकारी, निदेशालय और झारखंड एकेडमिक काउंसिल के स्तर पर जांच की जाती है. इसके बाद दोबारा डीईओ के मार्फत जांच किया जाता है. सुरेंद्र झा का कहना है कि जब जिलाधिकारी के स्तर पर जांच की ही जाती है तो फिर इसे जिला शिक्षा पदाधिकारी के स्तर तक ले जाने की क्या आवश्यक्ता है.
उन्होंने कहा कि जब तक सरकार हमारी समस्याओं और मांगो पर ध्यान नहीं देती, आमरण अनशन जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि हमारा आंदोलन चलता रहेगा जब तक सरकार कोई सकारात्मक पहल नहीं करती.