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नगर निगम के 40 साल : जब आबादी थी 2.5 लाख, तब कर्मचारी थे 1300, अब आबादी 15 लाख, कर्मचारी 400

रांची : स्थापना के समय नगर निगम शहरवासियों से टैक्स के रूप में सालाना केवल 25 लाख रुपये वसूलता था. इसी पैसे से निगम कर्मचारियों को वेतन देने के अलावा अन्य विकास कार्य करता था. आज 40 वर्षों में होल्डिंग टैक्स से वसूली जाने वाली राशि 50 करोड़ से अधिक हो गयी है. लेकिन, उस […]

रांची : स्थापना के समय नगर निगम शहरवासियों से टैक्स के रूप में सालाना केवल 25 लाख रुपये वसूलता था. इसी पैसे से निगम कर्मचारियों को वेतन देने के अलावा अन्य विकास कार्य करता था. आज 40 वर्षों में होल्डिंग टैक्स से वसूली जाने वाली राशि 50 करोड़ से अधिक हो गयी है. लेकिन, उस हिसाब से लोगों को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. स्थापना के समय निगम के पास केेवल चार वाहन थे.
एक-एक एंबेसडर कार निगम के प्रशासक व उप प्रशासक को सरकार से मिली थी. वहीं अन्य अधिकारियों के फील्ड भ्रमण के लिए केवल एक वाहन (जीप) था. इसके अलावा निगम के पास सफाई करने के लिए सिर्फ एक ट्रैक्टर था. इसी ट्रैक्टर से पूरे शहर से कूड़े का उठाव होता था. आज निगम के पास वाहनों का काफिला है. अधिकारी, कर्मचारी व सफाई वाहनों की संख्या को अगर जोड़ दिया जाये, तो वाहनों की यह संख्या 500 को पार कर जाती है.
मॉडल सफाई व्यवस्था अब भी सपना
नगर निगम शहरवासियों से प्रतिवर्ष 50 करोड़ रुपये टैक्स के रूप में वसूल तो रहा है, लेकिन शहर की सफाई व्यवस्था को अब तक नगर निगम मॉडल नहीं बना पाया है. शहर की सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए निगम ने जहां वर्ष 2000 में एनजीओ को काम सौंपा, वहीं वर्ष 2010-11 में निगम ने इसकेे लिए गुड़गांव की कंपनी एटूजेड का चयन किया. चार साल बाद कंपनी के काम से नाराज हाेकर इसे टर्मिनेट किया गया. इसके बाद वर्ष 2018 में एसेल इंफ्रा को काम सौंपा गया, लेकिन सफाई व्यवस्था दुरुस्त नहीं होने के कारण इस वर्ष एसेल इंफ्रा को भी टर्मिनेट कर दिया गया.
1979 में हुइ थी रांची नगर निगम की स्थापना
रांची नगर निगम के 40 सालों का सफर आंकड़ों में
वर्ष आबादी नाली की होल्डिंग कर्मचारी वाहन वाटरवार्ड संख्या लंबाई की संख्या कनेक्शन
1979 2.5 लाख 7500 मीटर 36 हजार 1300 04 08 हजार 07
2019 15 लाख 14 लाख मीटर 1.80 लाख 400 540 42 हजार 53से अधिक
ओपेन स्पेस व हरियाली गायब
निगम के स्थापना काल के समय शहर में हर ओर खेलने-कूदने के लिए खुला मैदान (ओपेन स्पेस) था. धीरे-धीरे यह सिकुड़ता चला गया. आज शहर में ओपेन स्पेस नहीं के बराबर है. हरियाली भी खत्म हो गयी है. अोपेन स्पेस की जगह कंक्रीट के महल खड़े हो गये हैं.
वहीं आम लोगों की सुविधा के लिए पूर्व में निगम द्वारा शहर की चार जगहों पर डिस्पेंसरी का संचालन किया जाता था. धीरे-धीरे यह भी बंद हो गया. हालत यह हो गयी कि रातू रोड चौक में निगम का जो अस्पताल था, उसे भी निजी हाथों में सौंप दिया गया.
तब खुद ही सड़कों की सफाई करते थे लोग
वर्ष 1979 में जब नगर निगम के पास एक ट्रैक्टर था, तब शहर की सफाई व्यवस्था आज से ज्यादा अच्छी थी. सड़कें ज्यादा साफ रहती थीं़ इसका कारण था कि तब लोग अपने-अपने घर के सामने की सड़क की सफाई खुद ही करते थे़ सिर्फ नगर निगम पर आश्रित नहीं थे, लेकिन आज लोग भी शहर को गंदा करने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं.
खादगढ़ा व मधुकम में डंप होता था कूड़ा
उस समय शहर की आबादी काफी कम होने व चारों ओर खुला मैदान होने के कारण नगर निगम शहर से निकलने वाले कूड़े को खादगढ़ा बस स्टैंड व मधुकम में सुखदेव नगर थाना के समीप डंप करता था. हालांकि झारखंड गठन के बाद जब शहर की आबादी बढ़ी, तो इन जगहों पर कूड़ा डंप करना बंद कर दिया गया. झिरी में कूड़ा को डंप किया जाने लगा.
2004 में पहली बार कंप्यूटर लगा
स्थापना काल के दौरान निगम में हर काम टाइपराइटर से होता था. वर्ष 2004 में पहली बार निगम में कंप्यूटर लगा. कंप्यूटर लगने के बाद दो कर्मचारियों को सरकार ने निगम में भेजा. इन दोनों के जाने के बाद राजेश कुमार आइटी सेक्शन के हेड बने.
इसके बाद धीरे-धीरे निगम के सारे कार्यों को ऑनलाइन किया गया. निगम में स्थापना के समय से कार्य करने वाले केवल पांच कर्मचारी नागेंद्र दुबे, नेयाज अहमद, संदीपक करण, अजय वर्मा व देवव्रत गुप्ता ही बचे हैं.
नगर निगम का पिछले 40 सालों का सफर विकास का रहा है. काफी मुश्किलों को झेलते हुए नगर निगम ने अपनी पहचान बनायी है. हाल के दिनों में जिस तरह का सहयोग राज्य सरकार व केंद्र सरकार से नगर निगम को मिल रहा है, उससे आमलोगों के बीच निगम की एक अलग पहचान बनी है. आनेवाले दिनों में नगर निगम में जनहित को लेकर कई कदम उठाये जायेंगे. इसका फायदा शहरवासियों को मिलेगा.
संजीव विजयवर्गीय, उप महापौर

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