योजनाएं लटकती गयीं और यूं पिछड़ता गया झारखंड, ये हैं वो 19 परियोजनाएं जिनके कारण पीछे हुए हम
रांची : झारखंड में 89112 करोड़ रुपये की केंद्र सरकार की 19 परियोजनाएं चल रही या लंबित पड़ी हैं. इनमें डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर, रेल-सड़क, कोल ब्लॉक, गैस पाइपलाइन, पावर प्लांट, ट्रांसमिशन लाइन जैसी परियोजनाएं फॉरेस्ट क्लीयरेंस, भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण क्लीयरेंस के अभाव में अटकी हुई है. इन योजनाओं के समय पर पूरा नहीं होने […]
रांची : झारखंड में 89112 करोड़ रुपये की केंद्र सरकार की 19 परियोजनाएं चल रही या लंबित पड़ी हैं. इनमें डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर, रेल-सड़क, कोल ब्लॉक, गैस पाइपलाइन, पावर प्लांट, ट्रांसमिशन लाइन जैसी परियोजनाएं फॉरेस्ट क्लीयरेंस, भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण क्लीयरेंस के अभाव में अटकी हुई है. इन योजनाओं के समय पर पूरा नहीं होने से झारखंड विकास की दौड़ में पिछड़ सा गया है.
इन परियोजनाओं की समीक्षा करने के लिए 20 सितंबर को प्रोजेक्ट मॉनीटरिंग ग्रुप (पीएमजी) की टीम आयेगी. मुख्य सचिव डीके तिवारी की अध्यक्षता में पीएमजी की टीम के साथ बैठक होगी. मुख्य सचिव के साथ होने वाली बैठक में राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद होंगे.
हालांकि पीएमजी की समीक्षा को लेकर राज्य सरकार तेजी से काम कर रही है. कई परियोजनाओं की स्वीकृति अंतिम स्टेज पर है. कुछ की स्वीकृति मिल भी गयी है.
गौरतलब है कि भारत सरकार के डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन अॉफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआइआइ) द्वारा पीएमजी का गठन किया गया है. इसमें परियोजनाओं में आ रही बाधा दूर करने के लिए इ सुविधा पोर्टल बनाया गया है. 20 सितंबर को डीपीआइआइ के संयुक्त सचिव राजीव अग्रवाल टीम के साथ आयेंगे.
इन लंबित परियोजनाओं पर होगी बात
1.शिवपुर-कठोतिया न्यू बीजी रेल लाइन (2345 करोड़)ः अगस्त 2000 में 92.10 किमी रेल लाइन की स्वीकृति मिली थी. 29.6.2013 से भूमि अधिग्रहण का मामला लंबित है. चतरा में केवल 1.82 एकड़ जमीन अभी तक हैंडओवर नहीं किया जा सका है.
2.गेल परियोजना जगदीशपुर-हल्दिया पाइपलाइन (7596 करोड़)ः 22.7.2013 से झारखंड से गुजरनेवाली 116 किमी पाइपलाइन के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस का मामला लंबित था. हालांकि 29.7.2019 को फॉरेस्ट क्लीयरेंस दे दिया गया.
3.एनटीपीसी का केरेनडारी कोल ब्लॉक (1553 करोड़)ः फॉरेस्ट क्लीयरेंस का मामला 1.2.2012 से लंबित था. 28.8.2019 को स्टेज टू फॉरेस्ट क्लीयरेंस मिल गया.
4.गुवा में पैलेट प्लांट (3000 करोड़)ः 5.11.2013 को केंद्र सरकार से कहा गया कि माइनिंग लीज और फॉरेस्ट क्लीयरेंस का मामला लंबित है. गुवा आयरन ओर माइंस के झिलिंगाबुरू एक और दो तथा तोपालोर लीज के नवीकरण का मामला खान विभाग के पास लंबित है.
5.सीसीएल की कोल माइनिंग प्रोजेक्ट (4794.84 करोड़)ः 13.11.2014 से सीसीएल के विभिन्न कोल परियोजनाएं लंबित हैं. कारो ओसीपी के लिए 226.67 एकड़ फॉरेस्ट लैंड का मामला लंबित था. 31.8.2019 को डीएफओ बोकारो ने डिमांड नोट दिया है. रजरप्पा ओसीपी के सीसीएल ब्लॉक टू एरिया के गांव धवैया में माइनिंग अॉपरेशन के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस अब तक लंबित है.
6.इसीएल की तीन परियोजनाएं (1000 करोड़)ः 14.11.2016 से इसीएल की तीन कोल ब्लॉक की परियोजनाओं को भूमि व फॉरेस्ट क्लीयरेंस के मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है. 7.बरवाअड्डा-पानागढ़ बाइपास सड़क (1665 करोड़)ः झारखंड में 43 किमी की सड़क में चार किमी के लिए 31 गांवों में 273 प्राइवेट स्ट्रक्चर का मामला 18.3.2015 से लंबित है.
8. इस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर (35000 करोड़)ः 17.5.2016 से आरंभ हुआ. पंजाब के सहनेवाल से डानकुनी (पं. बंगाल) तक बनना है. झारखंड के कोडरमा, हजारीबाग, गिरिडीह और धनबाद से गुजरना है. जहां भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े हस्तांतरित करने का मामला लंबित है.
9.नोर्थ कर्णपुरा सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट (14366 करोड़)ः 1980 मेगावाट की इस परियोजना का शिलान्यास टंडवा में 1999 में हुआ था. 27.6.2017 से पकड़ी-बरवाडीह से चट्टी-बरियातू ट्रांसमिशन लाइन और पतरातू से पकड़ी बरवाडीह लाइन में फॉरेस्ट क्लीयरेंस का मामला लंबित है.
10.बोंडामुंडा-रांची लाइन की डबलिंग (1724 करोड़)ः 13.9.2018 से वन भूमि को लेकर मामला वन मंत्रालय के पास लंबित है.
11. झरिया मास्टर प्लान (7112.11 करोड़)ः झरिया कोलफील्ड्स में आग की समस्या है. झरिया को शिफ्ट किया जाना है. लोगों के पुनर्वास केलिए 1105 हेक्टेयर भूमि की जरूरत है. 114 हेक्टेयर पर पोजेशन मिल गया है. बाकी के लिए प्रक्रिया चल रही है.
12.गोविंदपुर-चास-प.बंगाल सीमा तक सड़क (486 करोड़)ः 1.11 हेक्टेयर भूमि हस्तांतरण का माला 4.10.2018 से लंबित है.
13.गोरहर से खैराटुंडा सड़क की सिक्स लेनिंग (917 करोड़)ः हजारीबाग में 1163 संरचना हटाने का मामला 4.10.2018 से लंबित है.
तो बदल जाती राजधानी की सूरत
रांची. राजधानी रांची के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनायी. इनमें से कई का डीपीआर बना और कई योजनाओं पर काम भी शुरू हुआ, लेकिन पूरा नहीं हो सका. नगर विकास से लेकर ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त करने व स्वास्थ्य सुविधाओं की इन योजनाओं को अगर अब तक धरातल पर उतारा जाता, तो रांची की सूरत कुछ और होती.
तो जाम मुक्त हो जाता रातू रोड
रातू रोड को जाम मुक्त करने की योजना पर पिछले 10 साल से चल रही है. पहले 34 करोड़ की लागत से फोर लेन सड़क की योजना बनी. पाइप लाइन व बिजली पोल शिफ्टिंग का काम हुआ, पर चौड़ीकरण का काम रद्द हो गया. अब 268 करोड़ से एलिवेडेट रोड बनाने की योजना है. टेंडर निकला. चार बार टेंडर की तिथि बढ़ायी. अब तकनीकी कारणों से इसे लटका दिया गया है. शहर की ट्रैफिक का बड़ा संकट दूर हो जाता.
हरमू फ्लाई ओवर का सपना अधूरा
15 साल पहले तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री सुदेश महतो ने हरमू रोड फ्लाई ओवर का डीपीआर बनवाया था, पर काम नहीं हुआ. नगर विकास विभाग ने 130 करोड़ का टेंडर निकाला, लेकिन उसे रद्द कर दिया गया. यह काम अब एनएचएआइ ने लिया है. नये सिरे से डीपीआर बनेगा, फिर योजना स्वीकृत होगी. इसके बनने से कांके रोड से हरमू रोड की ओर आने-जाने वालों को रातू रोड चौराहा से गुजरना नहीं पड़ेगा.
पूरे शहर की ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त हो जाती
रांची के शहरी इलाके में सात साल पहले एक साथ तीन फ्लाई ओवर निर्माण की योजना तैयार हुई थी. इसके लिए डीपीआर भी तैयार करा लिया गया था. योजना के तहत लालपुर फ्लाई ओवर, सुजाता फ्लाई ओवर व मेन रोड फ्लाई ओवर का निर्माण कराना था. इससे शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त करने की योजना थी.
जेपीएससी भवन से सरकुलर रोड होते हुए लालपुर चौक के आगे तक लालपुर फ्लाई ओवर, बिग बाजार के पास से सुजाता चौक होते हुए चर्च कांप्लेक्स तक सुजाता चौक फ्लाई ओवर व उर्दू लाइब्रेरी के पास से अल्बर्ट एक्का चौक होते हुए कचहरी रोड तक मेन रोड फ्लाई ओवर का निर्माण कराना था. जमीन नहीं मिलने से इस पर सरकार आगे नहीं बढ़ी.
शहर से दूर रहते ट्रांसपोर्ट नगर और बस टर्मिनल
2003 में सुकरहुटू में ही ट्रांसपोर्ट नगर ब नाने की घोषणा हुई थी. सरकार ने पूरा मन बना लिया था कि शहर से हटा कर किनारे में ट्रांसपोर्ट नगर बने. बाद में सरकार पीछे हट गयी. आज तक ट्रांसपोर्ट नगर नहीं बना. इसी तरह 2003 में सुकरहुटू में ही इंटर स्टेट बस टर्मिनल के निर्माण की योजना बनी. लेकिन दोनों परियोजना आगे नहीं बढ़ी.
धरा रह गया सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट व सिवरेज ड्रेनेज
2006 में रांची नगर निगम ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनाने का निर्णय लिया था. करीब 84 करोड़ की लागत से इसे बनाना था. लेकिन पूरी परियोजना लटक रह गयी. इसके नहीं बनने से वेस्ट मैनेजमेंट का काम लटका हुआ है. इसी तरह रांची में सीवरेज-ड्रेनेज सिस्टम की परिकल्पना लटक कर रह गयी है.
नहीं खुल सका आनंदलोक अस्पताल
पश्चिम बंगाल में सबसे कम दर पर इलाज के लिए प्रसिद्ध आनंद लोक अस्पताल को सरकार ने कांके में पांच एकड़ जमीन देने की बात कही थी. अस्पताल प्रबंधन करीब 100 करोड़ की लागत से यह सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल खोलने वाला था, पर तकनीकी पेंच की वजह से आनंदलोक अस्पताल को जमीन नहीं मिली और यह परियोजना पिछले तीन वर्षों से ठंडे बस्ते में है. अस्पताल खुल जाने से ओपेन हर्ट बाइपास सर्जरी 80 से 85 हजार रुपये में होती.
इटकी मेडिको सिटी नहीं बन पाया मेडिकल एजुकेशन हबः
इटकी मेडिको सिटी में पिछले चार वर्ष से सरकार मेडिकल एजुकेशन हब बनाना चाह रही है. यहां एक ही कैंपस में 500 बेड के एक मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज, सुपर स्पेशियालिटी सेंटर, आयुष मेडिकल कॉलेज एवं फार्मास्यूटिकल कॉलेज खुलना है. यहां 26.11 एकड़ में मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, 20 एकड़ में नर्सिंग, फार्मास्यूटिकल एवं पारा मेडिकल कॉलेज खुलना है.
15 एकड़ में सुपर स्पेशियालिटी सेंटर अॉफ एक्सीलेंस फॉर एनसीडी खुलना है, जिसमें कार्डियेक के लिए 100 बेड, डायबिटिक सेंटर के लिए 30 बेड, सेंटर फॉर क्रोनिक रेस्पिरेटरी डिजीज के लिए 50 बेड व ड्रग रिहैब के लिए 30 बेड होंगे. 6.4 एकड़ में आयुष मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल बनना है. अब तक चार बार टेंडर निकाला गया है, लेकिन तकनीकी वजहों से टेंडर रद्द हो जाता है.