देवघर में इंडोर फिशरीज के प्रोजेक्ट का निर्माण पूरा, कम जमीन व कम पानी में इंडोर फिशरीज शुरू

राणा प्रताप रांची : पहले कम जमीन व कम पानी में बड़े पैमाने पर फिशरीज की कल्पना नहीं की जा सकती थी, लेकिन अब वह साकार होने लगा है. नयी तकनीक का उपयोग कर झारखंड में रिसर्क्यूलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम (आरएएस) के तहत फिड बेस्ड इंडोर फिशरीज की शुरुआत की गयी है. यह बिना तालाब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 12, 2019 5:12 AM
राणा प्रताप
रांची : पहले कम जमीन व कम पानी में बड़े पैमाने पर फिशरीज की कल्पना नहीं की जा सकती थी, लेकिन अब वह साकार होने लगा है.
नयी तकनीक का उपयोग कर झारखंड में रिसर्क्यूलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम (आरएएस) के तहत फिड बेस्ड इंडोर फिशरीज की शुरुआत की गयी है.
यह बिना तालाब के सीमेंटेड टैंक में शेड के अंदर इंडोर फिशरीज की नयी तकनीक है. इस योजना के एक प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य देवघर जिला में पूरा हो गया है. इस बात की जानकारी देवघर के जिला मत्स्य पदाधिकारी प्रशांत कुमार ने दी. रांची, चाईबासा व कोडरमा में भी आरएएस प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया है. चालू वित्तीय वर्ष के तहत दो प्रोजेक्ट सरकारी क्षेत्र व चार निजी क्षेत्र में लगाये जायेंगे. एक प्रोजेक्ट पर 50 लाख रुपये की लागत आती है. इसमें 20 लाख रुपये लाभुक को अनुदान मिलेगा, जबकि 30 लाख रुपये अपना लगाना पड़ेगा.
राज्य के मत्स्य निदेशक एचएन द्विवेदी ने बताया कि इंडोर फिशरीज की तकनीक का उपयोग इस्राइल, नार्वे, थाइलैंड, इंडोनेशिया, अमेरिका के अलावा भारत के केरल, हरियाणा, रायपुर, उत्तर प्रदेश में भी किया जा रहा है. इसे देखते हुए राज्य सरकार ने झारखंड में भी योजना शुरू की है.
तालाब की जरूरत नहीं : इस तकनीक से मछली उत्पादन के लिए अधिक जगह अथवा तालाब की जरूरत नहीं होती है. जमीन के ऊपर शेड बनाया जाता है. शेड के अंदर सीमेंट के कई टैंक बनाये जाते हैं. टैंक में मछली पालन किया जाता है. टैंक से निकले वेस्ट वाटर को फिल्टर कर पुन: उपयोग किया जाता है. यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है. मछली के मल-मूत्र में अमोनिया की मात्रा अधिक होती है.
इसलिए इसे सामान्य बनाने के लिए बायो फिल्टर यूनिट से गुजरना पड़ता है. इस यूनिट में प्रो बायोटिक बैक्ट्रिया रहता है, जो अमोनिया को नाइट्रेट में बदल कर उसकी विषाक्तता समाप्त करता है. बायो फिल्टर से बेकार पानी साफ होकर अॉक्सीजन चेंबर में चला जाता है. यहां से पानी वाटर टैंक में भेजा जाता है, जहां से वह पुन: मछली टैंक में जाता है. यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है.
मछली का अधिक उत्पादन है लक्ष्य
फिड बेस्ड इंडोर फिशरीज में मछली का अधिक उत्पादन का लक्ष्य रहता है. इसमें सबसे अधिक मत्स्य जीरा डाला जाता है. नियमत: तालाब में प्रति क्यूबिक मीटर एक-दो मत्स्य जीरा, केज सिस्टम में 40-50 मत्स्य जीरा, जबकि इंडोर फिशरीज के टैंक में प्रति क्यूबिक मीटर 80-100 मत्स्य जीरा डाला जाता है.
इन प्रजातियों का होता है पालन
इंडोर फिशरीज में सामान्यत: पंगेसियस, तेलपिया, देसी मांगुर, बेटकी, कवई के अलावा रोहू, कतला मछली का भी उत्पादन होता है.

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