ेसंत तुलसीदास की जयंती आज
रविवार को ही हुआ था जन्म व मृत्यु वरीय संवाददाता रांची : संत तुलसीदास की जयंती रविवार को है. श्रावण माह के शुक्लपक्ष की सातवीं तिथि (सन 1497 ) को इनका जन्म हुआ था. रामचरितमानस सहित अन्य धार्मिक ग्रंथ लिखनेवाले तुलसीदास जी की इस अवसर पर विभिन्न राम मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है और […]
रविवार को ही हुआ था जन्म व मृत्यु वरीय संवाददाता रांची : संत तुलसीदास की जयंती रविवार को है. श्रावण माह के शुक्लपक्ष की सातवीं तिथि (सन 1497 ) को इनका जन्म हुआ था. रामचरितमानस सहित अन्य धार्मिक ग्रंथ लिखनेवाले तुलसीदास जी की इस अवसर पर विभिन्न राम मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है और रामचरितमानस की भी पूजा होती है. यह ग्रंथ आज भी हिंदू धर्म में सबसे अधिक प्रचलित व प्रतिष्ठित ग्रंथ में से एक है. जन्म लेने के बाद उन्होंने पहला शब्द राम बोला था. इसलिए उनका नाम रामबोला रख दिया गया था. बचपन में उन्होंने ेकाफी कष्ट सहा था. जन्म के तुरंत बाद मां का देहांत हो गया था और पिता इन्हें चुनियां नामक दासी को देकर विरक्त हो गये थे. उनका लालन-पालन चुनियां के यहां हो रहा था. एक दिन वह भी चल बसी. फिर भी संत रामबोला ने हिम्मत नहीं हारी. इसके बाद नरहरि बाबा ने उन्हें अपने संरक्षण में रखा और उनका नाम तुलसीराम रख दिया. बाद में बाबा उन्हें अयोध्या ले गये और वहीं उनका यज्ञोपवीत सहित अन्य संस्कार कराया. इसके बाद वहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई. 29 वर्ष में रत्नावली के साथ तुलसीराम का विवाह हुआ. इसके बाद वह काशी चले गये और कुछ दिनों तक वहां रहने के बाद एक बार आधी रात को पत्नी से मिलने के लिए उनके गांव चले गये थे. गौना नहीं होने के कारण पत्नी उनके साथ नहीं गयी और उन्हें एक दोहे के माध्यम से शिक्षा दी. इसके बाद वह तुलसीराम से तुलसीदास हो गये. वह अपनी पत्नी को मायके में ही छोड़ कर अपने गांव राजापुर लौट गये, जहां उन्हें पता चला कि उनके पिता का देहांत हो गया है. उन्होंने उनका क्रियाकर्म किया और इसके बाद वे अपने गांव में लोगों को रामकथा सुनाने लगे. कुछ दिनों के बाद वहां से काशी आ गये और वहां के लोगों को भी रामकथा सुनाने लगे. इसके बाद से ही उनके जीवन में कई परिवर्तन आये. उनकी जिंदगी से आज भी कई लोग प्रेरणा लेते हैं और उनके बताये मार्ग पर चलते हैं. वर्षों बाद रविवार को ऐसा संयोग आया है कि उनका जन्म दिन रविवार को पड़ रहा है. रविवार को ही 126 साल की उम्र में उनका निधन भी हुआ था. इस कारण इस तिथि का विशेष महत्व है.