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स्तनपान के प्रति जागरूकता फैला रहे हैं आंगनबाड़ी केंद्र

सोमवार के लिए सेविका व सहायिकाओं की भूमिका महत्वपूर्णफोटो लता में स्तनपान के नाम से ..लता रानी : रांची स्तनपान के प्रति माताओं में जागरूकता फैलाने में आंगनबाड़ी सेविकाएं व सहायिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है. आंगनबाड़ी सेविकाएं बखूबी अपनी भूमिका निभा भी रही है. आंगनबाड़ी सेविकाओं के सार्थक प्रयास व सहयोग के बगैर शिशु मृत्यु […]

सोमवार के लिए सेविका व सहायिकाओं की भूमिका महत्वपूर्णफोटो लता में स्तनपान के नाम से ..लता रानी : रांची स्तनपान के प्रति माताओं में जागरूकता फैलाने में आंगनबाड़ी सेविकाएं व सहायिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है. आंगनबाड़ी सेविकाएं बखूबी अपनी भूमिका निभा भी रही है. आंगनबाड़ी सेविकाओं के सार्थक प्रयास व सहयोग के बगैर शिशु मृत्यु दर व कुपोषण को बचाना संभव नहीं है. यूं तो पूरे वर्ष भर सेविकाएं गर्भवती मां एवं धातृ मां को उनके स्वास्थ्य व बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर जागरूक करती हैं. स्तनपान सप्ताह (एक अगस्त से आठ अगस्त) में इनकी भागीदारी और बढ़ जाती है. गांव-गांव धूम कर राज्य स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम को बढ़ावा दे रही हैं. समाज कल्याण विभाग द्वारा स्तनपान जागरूकता रथ के जरिये भी प्रचार प्रसार किया जा रहा है. राज्य में 38400 आंगन बाड़ी सेविकाएं है, 20 से 22 हजार जल सहिया है और 10 हजार एएनएम है. लगभग एक लाख की संख्या में ये अपनी सेवाएं दे रही हैं. इन कार्यकर्ताओं पर स्तनपान जागरूकता अभियान को सार्थक करने की जिम्मेवारी है. इन सेविकाओं की सबसे बड़ी चुनौती है, रुढि़वादी परंपराओं को तोड़कर सही और स्वस्थ्य तरीके से स्तनपान के प्रति माताओं को जागरूक करना. सहियाओं की समस्याएं आज भी गांवों में नानी-दादियों के कहने के मुताबिक मां का महत्वपूर्ण खिरसा दूध व्यर्थ हो जता है . मां का खिरसा दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम दूध माना जाता है. इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है, जो बच्चों को कई बीमारियों से बचाता है. वहीं गांवों में नवजात को जन्म के तुरंत बाद मधु चटाने की परंपरा भी है. मां के दूध के बदले बकरी व गाय का दूध भी दिया जाता है. यह गलत भ्रांतियां हैं, जो बच्चे के लिए हानिकारक है. जन्मकाल से ही स्तनपान बहुत जरूरी है. आंगनबाड़ी सेविकाओं, सहियाओं एव एएनएम के जरिये यह भ्रांति दूर हो सकती है.शांति देवी : नवजात की मां प्रसव के बाद मेरा बच्चा मात्र एक किलो का था. जानकारी के अभाव में मैं अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करा रही थी. जब आंगनबाड़ी सेविका शांति ने मुझे स्तनपान के सही तौर तरीकों के बारे में बताया. तब जाकर मेरा बच्चा स्वस्थ्य हो गया. आज मेरा बच्चा स्वस्थ है. क्या कहती हैं आगनबाड़ी सेविकाएं सुजाता कच्छप: जगन्नाथपुर महिलाओं को जागरूक करने पर अधिकांश महिलाएं स्तनपान को लेकर जागरूक हुई है. गर्भवती मां शांति देवी को प्रसव के बाद एक किलो वजन का बच्चा हुआ. जानकारी देने व स्तनपान का सही तरीका बताने के बाद अब उसके बच्चे का वजन बिल्कुल सही है. एक समय वह कुपोषित कहा जा रहा था, अब वह स्वस्थ है. संध्या रानी :लालपुरगांवों में आज भी रुढि़वादी परंपरा व्याप्त है. नानी-दादी व अन्य महिलाएं जन्म देने वाली मां के पीले गाढ़े खिरसा दूध को गंदा दूध कह बेकार कर देती हैं. उन्हें समझाना हमारे लिए बहुत मुश्किल होता है. बहुत प्रयास के बाद अब महिलाएं धीरे धीरे इस बात को समझने लगी हैं. अनुपम कुमारी स्तनपान को लकर अब महिलाएं जागरूक हो रही हैं. अब लगता है आने वाले वर्षों में हम झारखंड से कुपोषण को पूरी तरह से दूर कर पायेंगे. कौशल्या देवी कभी कभी मां बनने वाली नयी लड़कियां भी बच्चे को अपना दूध पिलाने से कतराती है. उनका मानना है कि दूध पिलाने से उनका फिगर खराब हो जायेगा. ऐसे में हम वैसी माताओं को स्तनपान के फायदे बताते है. इसका लाभ दिखने लगा है. सुनिता लकड़ा बहुत हद तक अब महिलाएं स्तनपान के बारे में जागरूक हो गयी हैं. हम सब आंगनबाड़ी सेविकाएं व सहियाएं इस जागरूकता अभियान को पूरा करने में अपनी भूमिका निभा रही हैं.

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