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सुनिए झारखंड के नायकों को : झारखंड में साहित्य को नहीं मिला उचित सम्मान

डॉ ऋता शुक्ला हर राजनीतिज्ञ अपने को सफल बनाने के लिए साहित्य का सहारा लेता है, लेकिन आज साहित्य ही उपेक्षित है साहित्य का राजनीति से हमेशा से सरोकार रहा है. किसी भी समाज को साहित्य प्रभावित करती है. लेकिन झारखंड में साहित्य को उचित स्थान और सम्मान नहीं मिल पाया है. राज्य के साहित्यकारों […]

डॉ ऋता शुक्ला
हर राजनीतिज्ञ अपने को सफल बनाने के लिए साहित्य का सहारा लेता है, लेकिन आज साहित्य ही उपेक्षित है
साहित्य का राजनीति से हमेशा से सरोकार रहा है. किसी भी समाज को साहित्य प्रभावित करती है. लेकिन झारखंड में साहित्य को उचित स्थान और सम्मान नहीं मिल पाया है.
राज्य के साहित्यकारों के सम्मान की बात होनी चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. किसी भी सरकार की जिम्मेवारी होनी चाहिए कि वह साहित्य व साहित्यकार को उचित स्थान दिलायें. उनकी समस्याओं का समाधान हो सके. साहित्यकारों को अपना सम्मान से ज्यादा उनके साहित्य को सम्मान मिले. आज जिस तरह से हिंदी की उपेक्षा हो रही है, उस पर सरकार को कुछ करना चाहिए. साहित्यकारों के लिए राजनीति से दूर हट कर बात करना चाहिए. जीवन बड़ा शाश्वत होता है. साहित्यकार तुलसी अौर निराला की परंपरा को जीते है.
स्वाभिमानी होते है. आज साहित्यकारों की जो स्थिति है, सच्चा साहित्यकार उपेक्षित रहता है. अभी हाल में ही एक कलाकार की दवा के अभाव में मृत्यु हो गयी. ऐसी स्थिति नहीं होनी चाहिए. हर राजनीतिज्ञ अपने को सफल बनाने के लिए साहित्य का सहारा लेता है, लेकिन आज साहित्य ही उपेक्षित है.
झारखंड के साहित्य को भी यहां उतना सम्मान नहीं मिल पाया है, जितना मिलना चाहिए. सरकार को अकादमी का गठन करना चाहिए. साहित्यकारों को मंच दिलाने का काम होना चाहिए. राजनीति में जिस प्रकार वर्ग, जाति, धर्म के सहारे ऊपर उठने का प्रयास किया जा रहा है, जो समाज को व्यापक रूप से प्रभावित कर रहा है. लोग आपस में बंटे जा रहे हैं. राजनेता इसे समझें अौर एक अच्छे समाज व राज्य के विकास में दलगत भावना से ऊपर उठ कर काम करें.

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