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झारखंड की राजनीति का फ्लैशबैक : ….जब विधायक का चुनाव हार कर सांसद बने थे शिबू सोरेन

नारायण चंद्र मंडल धनबाद : 70 के दशक में शिबू सोरेन की आंदोलन के कारण हजारीबाग के साथ कोयलांचल में भी पहचान बन चुकी थी. बिनोद बिहारी महतो ने सिंदरी के तत्कालीन विधायक प्रखर मार्क्सवादी चिंतक एके राय के साथ मिल कर झामुमो का गठन 1973 में कर लिया था. कोयलांचल में दो धाराओं की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 7, 2019 6:03 AM
नारायण चंद्र मंडल
धनबाद : 70 के दशक में शिबू सोरेन की आंदोलन के कारण हजारीबाग के साथ कोयलांचल में भी पहचान बन चुकी थी. बिनोद बिहारी महतो ने सिंदरी के तत्कालीन विधायक प्रखर मार्क्सवादी चिंतक एके राय के साथ मिल कर झामुमो का गठन 1973 में कर लिया था. कोयलांचल में दो धाराओं की राजनीति हावी थी. एक धारा थी अलग झारखंड राज्य का समर्थक व दूसरी धारा अलग राज्य का विरोध करनेवालों की थी.
टुंडी के मनियाडीह में शिबू सोरेन गुरुजी बन चुके थे. उन्होंने आदिवासियों में चमत्कारी पुरुष का दर्जा पा लिया था. वह रात्रि पाठशाला, सामूहिक कृषि योजना आदि चला कर लोगों को जागरूक कर रहे थे. महाजनी प्रथा के खिलाफ आदिवासियों को गोलबंद किया जा रहा था. धनकटनी आंदोलन काफी चर्चित हो चुका था.
इस आंदोलन से एक वर्ग को आर्थिक क्षति हो रही थी. इसके कारण गांवों में एक वर्ग गुरुजी का दुश्मन बन चुका था. वह किसी भी हालत में नहीं चाहते थे कि शिबू सोरेन राजनीति में सफल हों. इसी बीच 1977 का बिहार विधानसभा का चुनाव आया. गुरुजी ने आदिवासी बहुल इलाका टुंडी विधानसभा क्षेत्र से पहला चुनाव लड़ा. काफी रोमांच था उस चुनाव में. लोगों को लग रहा था कि गुरुजी अपनी ख्याति के अनुरूप जरूर चुनाव जीतेंगे. लेकिन परिणाम इसके उलट हुआ.
गुरुजी चुनाव हार गये. जनता पार्टी के प्रत्याशी सत्यनारायण दुदानी के हाथों उन्हें पराजित होना पड़ा. सत्यनारायण दुदानी जनसंघ के दिग्गज नेता थे. दुदानी ने 8432 मतों से गुरुजी को पराजित किया. शिबू सोरेन को 7523 और सत्यनारायण दुदानी को 16055 मत मिले थे. हालांकि, उस समय झामुमो को तीर-धनुष चुनाव चिह्न मिला नहीं था.
उसके बाद गुरुजी ने टुंडी से कभी चुनाव नहीं लड़ा. वह संताल चले गये और 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में दुमका से सांसद बने. इधर, झामुमो के बिनोद बिहारी महतो ने 1977 में गुरुजी की हार का बदला 1980 में ले लिया. वह टुंडी से झामुमो के पहले विधायक बने. इसके बाद से ही टुंडी में जनसंघ से बनी भाजपा कभी जीत दर्ज नहीं कर पायी.

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