22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

90 हजार से अधिक कोयलाकर्मी हैं झारखंड में, दो दर्जन सीटों पर कोयलाकर्मी असरदार

मनोज सिंह, रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव में कोयलाकर्मियों की हिस्सेदारी भी महत्वपूर्ण होगी. कई सीटों पर यह निर्णायक भूमिका में होंगे. झारखंड की कई विधानसभा सीट तो कोयला क्षेत्र में ही पड़ता है. झारखंड में बीसीसीएल, सीसीएल और सीएमपीडीआइ की पूरी यूनिट है. इसके अतिरिक्त इसीएल का कुछ हिस्सा भी संताल परगना के कुछ […]

मनोज सिंह, रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव में कोयलाकर्मियों की हिस्सेदारी भी महत्वपूर्ण होगी. कई सीटों पर यह निर्णायक भूमिका में होंगे. झारखंड की कई विधानसभा सीट तो कोयला क्षेत्र में ही पड़ता है. झारखंड में बीसीसीएल, सीसीएल और सीएमपीडीआइ की पूरी यूनिट है. इसके अतिरिक्त इसीएल का कुछ हिस्सा भी संताल परगना के कुछ इलाकं में काम कर रहा है.

इसीएल की चित्रा कोलियरी झारखंड में ही संचालित है. राजधानी से सटे कांके विधानसभा क्षेत्र के नेताओं की नजर कोयलाकर्मियों पर होती है. धनबाद जिले के सभी सीटों पर कोयलाकर्मी ही विधायक तय करेंगे. यही कारण है कि झारखंड में होनेवाले विधानसभा चुनाव में कोयला उद्योग के कई दिग्गज भी किस्मत आजमाते रहे हैं. कोयला कर्मियों के लिए संघर्ष करनेवाले मुख्यमंत्री तक बने हैं. कई राज्य में मंत्री रहे हैं.
झारखंड में कई जिलों और विधानसभा क्षेत्रों की राजनीति भी कोयलाकर्मियों के समस्या और निदान से जुड़ी रहती है. यही कारण है कि झारखंड में शिबू सोरेन, एके राय, बाबूलाल मरांडी, चंद्रप्रकाश चौधरी, रमेंद्र कुमार लोकसभा में राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
कहां, िकतनी है कोयलाकर्मियों की संख्या
48513
बीसीसीएल
40681
सीसीएल
3384 : सीएमपीडीअाइ
1200 (करीब): इसीएल
जिन सीटों पर होगा कर्मियों का असर
लातेहार जिला : लातेहार
रांची जिला : कांके
रामगढ़ : बड़कागांव, रामगढ़, मांडू
बोकारो : गोमिया, बेरमो, मांडू (कुछ हिस्सा).
चतरा : सिमरिया
पलामू : छत्तरपुर
हजारीबाग : बरही, हजारीबाग, बड़कागांंव, मांडू (कुछ हिस्सा).
गिरिडीह : गिरिडीह, जमुआ, गांडेय, डुमरी
देवघर : सारठ
धनबाद : सिंदरी, निरसा, धनबाद, झरिया, टुंडी, बाघमारा
इनके मुद्दे भी हैं अलग
कोयला कर्मियों के लिए हर बार विधानसभा चुनाव के दौरान मुद्दे भी अलग होते हैं. असल में कोयलाकर्मी अपनी कंपनीवाले इलाके में रहते हैं. उनके आवासीय परिसर में काम करने लिए राज्य सरकार से अनुमति की जरूरत होती है. इस कारण राज्य सरकार से पैसे से विकास की बड़ी योजनाएं नहीं चल पाती है. यही कारण होता है कि कोयला क्षेत्रों का विकास अन्य क्षेत्रों के विकास से अलग होता है.
क्या कहते हैं कोयला उद्योग से जुड़े मजदूर नेता
आनेवाले विधानसभा चुनाव के दौरान भी राष्ट्रीय मुद्दा ही कोयला इलाके में हावी है. जो मुद्दा लोकसभा चुनाव के दौरान था, वही चलेगा. कोयला क्षेत्र में विनिवेश, विधानसभा चुनाव में भी बड़ा मुद्दा है. हाल के दिनों में हड़ताल कर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश हुई. कंपनी स्तर पर योजनाओं में गड़बड़ी को भी मुद्दा बनाया जायेगा.
– लखनलाल महतो, एटक.
कोयला अधिग्रहण के लिए कंपनियां जमीन अधिग्रहण कर लेती हैं. इस कारण उन इलाकों के विकास की जिम्मेदारी कंपनी को होती है. इस कारण राज्य सरकार के विकास के मुद्दे पर चर्चा नहीं होती है.
-आरपी सिंह, सीटू.
केंद्र सरकार द्वारा मजदूरों के हित में किये जा रहे कार्यों को ही मुद्दा बनाया जाता है. केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से कोयला उद्योग में हो रहे परिवर्तन पर बात होती है. स्थानीय जन प्रतिनिधि क्षेत्र में किये गये सामाजिक कार्यों को लेकर चुनावी मैदान में जाते हैं.
राजीव रंजन सिंह, भामस.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें