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मोदी ने की पशुपतिनाथ की विशेष पूजा

45 मिनट तक मंदिर में रहे प्रधानमंत्री2500 किलो चंदन मंदिर को दान दियाएजेंसियां, काठमांडूप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल की पहली यात्रा के दूसरे और आखिरी दिन सोमवार को सदियों पुराने पशुपतिनाथ मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की. श्रावण अष्टमी के पावन अवसर पर मंदिर में दर्शन के लिए पहंुचे मोदी वहां करीब 45 मिनट रहे. पांचवीं […]

45 मिनट तक मंदिर में रहे प्रधानमंत्री2500 किलो चंदन मंदिर को दान दियाएजेंसियां, काठमांडूप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल की पहली यात्रा के दूसरे और आखिरी दिन सोमवार को सदियों पुराने पशुपतिनाथ मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की. श्रावण अष्टमी के पावन अवसर पर मंदिर में दर्शन के लिए पहंुचे मोदी वहां करीब 45 मिनट रहे. पांचवीं सदी के इस मंदिर में दर्शन-पूजन के बाद मोदी (63) ने ट्वीट किया, ‘पशुपतिनाथ मंदिर में आज सुबह पूजा करके अत्यंत धन्य महसूस कर रहा हूं.’ उन्होंने पशुपतिनाथ मंदिर ट्रस्ट को 2,500 किलोग्राम चंदन दान किया. यह हिंदू मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर स्थित है. मंदिर भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित है. सदियों से परंपरा है कि इस मंदिर में चार पुजारी और एक मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के ब्राह्मण होते हैं.विशेष पूजा में शामिल हुए 150 पुजारीमोदी द्वारा भगवान शिव के रुद्राभिषेक और पंच अमृत स्नान कराने के दौरान 150 पुजारियों ने मंत्रोच्चार किये. भगवा वस्त्र पहने मोदी मंदिर से रुद्राक्ष की माला पहने हुए निकले. प्रधानमंत्री ने आगंतुक पुस्तिका में लिखा मंदिर ‘अद्वितीय’ है.पशुपतिनाथ और काशी विश्वनाथ एक ही हैं : मोदीभगवान शिव की नगरी काशी से लोकसभा के लिए पहली बार निर्वाचित हुए मोदी ने लिखा, ‘पशुपतिनाथ और काशी विश्वनाथ (वाराणसी) एक ही हैं. मैं अत्यंत भावुक हूं और प्रार्थना करता हूं कि पशुपतिनाथ का आशीर्वाद दोनों देशों को प्राप्त होता रहे, जो नेपाल और भारत को एक साथ जोड़ता है.’108 ब्राह्मणों ने वैदिक मंत्रोच्चार से किया स्वागतमोदी के मंदिर पहुंचते ही 108 ब्राह्मणों के समूह ने वैदिक मंत्रोच्चार से उनका स्वागत किया. मुख्य पुजारी जिस समय पूजा करा रहे थे, 21 ब्राह्मणों ने रुद्री का उच्चारण किया. पशुपति क्षेत्र विकास न्यास के प्रमुख गोविंद टंडन ने बताया कि पूजा के समय मोदी अत्यंत शांत भाव से बैठे थे. उन्होंने मुख्य पुजारी के निर्देश के अनुसार पूजा संपन्न की. मोदी ने पशुपतिनाथ मंदिर परिसर स्थित बासुकी मंदिर में अलग से पूजा की. उन्होंने मंदिर में फल और चंदन की लकड़ी का एक टुकड़ा चढ़ाया. मंदिर परिसर में स्थित दो दर्जन से अधिक मंदिरों में भी उन्होंने पूजा-अर्चना की.माओवादी नेता प्रचंड से मिले मोदीसीपीएन-माओवादी नेता पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. उन्होंने विश्वास जताया कि भारत-नेपाल संबंधों का एक ‘नया अध्याय’ शुरू हो गया है. करीब एक दशक तक सशस्त्र विद्रोह की अगुवाई करने के बाद सात वर्ष पहले सक्रिय राजनीति में उतरे प्रचंड के अनुसार, उन्होंने मोदी को नेपाल में आर्थिक प्रगति और शांति प्रक्रिया का समर्थन करने के बारे में ‘बहुत स्पष्ट’ पाया. भारत के आलोचक रहे नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड ने मोदी के साथ मुलाकात के बाद कहा, ‘हमारी बैठक बहुत सार्थक रही. भारत और नेपाल के रिश्तों में एक नयी पहल शुरू हुई है. यह सचमुच ऐतिहासिक है.’ दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों की मौजूदा स्थिति और भविष्य के बारे में विचार-विमर्श किया. संविधान सभा में मोदी के रविवार के संबोधन को प्रचंड ने ‘भावपूर्ण’ बता कर उसकी सराहना की. कहा, ‘उनका भाषण बहुत भावुक और उत्प्रेरक था.’ वाराणसी मंे 20 को मोदी का जनसंपर्क कार्यालय शुरू करेंगेलखनऊ. भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उत्तर प्रदेश के अपने पहले दौरे पर अमित शाह 19 अगस्त को यहां पहुंच रहे हैं. अगले ही दिन वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी जाकर उनके जनसंपर्क कार्यालय की शुरुआत करेंगे. शाह 23-24 अगस्त को वृंदावन (मथुरा) में पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी को संबोधित करेंगे. इससे पहले 22 अगस्त को प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक वृंदावन में ही प्रस्तावित है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने बताया कि कार्यकारिणी के बाद 24-25 अगस्त को प्रदेश स्तरीय प्रशिक्षण शिविर में प्रदेश पदाधिकारी, मोरचे के अध्यक्ष, क्षेत्रीय अध्यक्ष, महामंत्री, संगठन मंत्री और जिलाध्यक्ष शिरकत करेंगे.पशुपतिनाथ मंदिर से जुड़ी किंवदंतियांत्रमंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया. लेकिन, पहले ऐतिहासिक रिकॉर्ड 13वीं शताब्दी के हैं. पाशुपत संप्रदाय संभवत: इसकी स्थापना से जुड़ा है. पशुपति काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के अधिष्ठाता देवता रहे हैं. 605 ईसवी में अमशुवर्मन भगवान के चरण छूकर अपने को अनुग्रहीत मानते थे. बाद में मध्य युग तक मंदिर के कई नकल भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) बन गये. मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ. नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में इसे वर्तमान स्वरूप प्रदान किया.त्रनेपालमहात्म्य और हिमवतखंड के अनुसार, भगवान शिव एक बार वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़ कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गये. यहां चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले गये. देवों ने उन्हें खोजा और वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया, तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी. इस दौरान उनके सिंग के चार टुकड़े हो गये. इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए.

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