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झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 : सबको ठौर दिया, अपनाते रहे और धोखा खाते रहे हैं बाबूलाल मरांडी

संजय 2009 में झाविमो के 11 विधायकों में 2014 के चुनाव से पहले सात दूसरे दलों में चले गये 2014 में आठ प्रत्याशी जीते, जिनमें से छह जीत के बाद भाजपा के साथ हो लिये पहली बार खड़ा होने या जीतनेवालों ने भी तोड़ा भरोसा रांची : पूर्व मुख्यमंत्री तथा झारखंड विकास मोरचा (झाविमो) के […]

संजय
2009 में झाविमो के 11 विधायकों में 2014 के चुनाव से पहले सात दूसरे दलों में चले गये
2014 में आठ प्रत्याशी जीते, जिनमें से छह जीत के बाद भाजपा के साथ हो लिये
पहली बार खड़ा होने या जीतनेवालों ने भी तोड़ा भरोसा
रांची : पूर्व मुख्यमंत्री तथा झारखंड विकास मोरचा (झाविमो) के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की पार्टी का दरवाजा कभी बंद नहीं होता. इस दरवाजे में ताला (बंदिश) तो दूर छिंटकनी (मान-मनौव्वल) भी नहीं है.
शायद यह भी एक वजह है कि इस अकेले आदमी का साथ छोड़नेवाले भी कई हैं. ऐसा बार-बार व हर बार होता रहा है. पर बाबूलाल हैं कि उन्हें इसका कोई मलाल नहीं रहता. चुनावी राजनीति में किसी दल में आना व जाना तो लगा रहता है. पर इस मायने में बदकिस्मती किसी के साथ रही है, तो वह बाबूलाल ही हैं. राज्य का पहला मुख्यमंत्री रहते उन्होंने खुद की सरकार के खिलाफ सबसे बड़ी बगावत झेली. एेसी कि मुख्यमंत्री का पद ही छोड़ना पड़ा.
भाजपा से अलग हो कर खुद की पार्टी (झाविमो) बनानेवाले बाबूलाल ने अपनी पार्टी के साथ पहला चुनाव 2009 में लड़ा. इसमें झाविमो के 11 प्रत्याशियों की जीत हुई. यानी पहली ही बार पार्टी के 11 विधायक हो गये. पर इसके बाद 2014 के चुनाव से ठीक पहले झाविमो के सात विधायक दूसरी पाटिर्यों में निकल लिये. यही नहीं इस चुनाव में पहली बार खड़े होने या जीत हासिल करनेवाले कई प्रत्याशियों ने भी बाबूलाल को बाय-बाय बोल दिया था.
इनमें अमित महतो व कुणाल षाड़ंगी शामिल हैं, जिन्हें झामुमो ने लपक लिया था. इन हालात में बाबूलाल 2009 के 11 से घट कर 2014 में आठ रह गये. बाबूलाल जी को धोखा न सिर्फ चुनाव से पहले, बल्कि चुनाव के बाद भी मिला. झाविमो के टिकट पर चुनाव जीतनेवाले छह विधायकों ने तुरंत पाला बदल लिया. विधानसभा अध्यक्ष की अदालत में यह मामला लंबा चला. अंत में निर्णय जल बदलने वालों के पक्ष में आया.
बाबूलाल मरांडी का हाथ पकड़ने और छोड़नेवाले जेवीएम विधायक
चुनाव (2014) से पहले छोड़ने वाले
जय प्रकाश भोक्ता (चतरा), डॉ अनिल मुर्मू (लिट्टीपाड़ा), सत्येंद्र नाथ तिवारी (गढ़वा), ढुलु महतो (बाघमारा), निर्भय शाहाबादी (गिरिडीह), फूलचंद मंडल (सिंदरी) तथा प्रो स्टीफन मरांडी (महेशपुर).
चुनाव (2014) से पहले छोड़ने वाले
नवीन जायसवाल (हटिया), अमर बाउरी (चंदनकियारी), जानकी यादव (बरकट्ठा), रणधीर सिंह (सारठ), अालोक कुमार चौरसिया (डाल्टनगंज) तथा गणेश गंझू (सिमरिया).
चुनाव (2019) से पहले छोड़ने वाले
प्रकाश राम (लातेहार) तथा सत्यानंद भोक्ता (चतरा).

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