भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि झारखंड विधानसभा का चुनाव आम जनता के लिए एक मौका लेकर आया है. पिछले पांच साल में राज्य के लोगों ने सरकार की नीतियों के कारण काफी परेशानियों का सामना किया है. राज्य को बने 19 साल हो गये, लेकिन जिस मकसद को लेकर अलग राज्य का गठन किया गया वह पूरा नहीं हो पाया. हमारा बुनियादी एजेंडा जल, जंगल, जमीन है. इस देश में जो लोकधर्म है, उसमें आम लोगों के बीच नफरत नहीं है
Q राज्य के चुनावी परिदृश्य को आप किस रूप में देखते हैं?
19 साल में भाजपा का ही अधिकांश शासन रहा है. पिछले पांच साल में रघुवर सरकार के दौरान भाजपा ने जो भय, भूख और भ्रष्टाचार मिटाने का नारा दिया था, आज राज्य में इसी का राज है. झारखंड के लोगों के पास इसे मिटाने का अच्छा मौका है. पहले लोग कहते थे कि विपक्ष का कोई गठबंधन नहीं है, लेकिन इस बार विपक्षी दलों ने गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जबकि सत्ता पक्ष का गठबंधन टूट गया है. न सिर्फ गठबंधन टूटा, बल्कि मुख्यमंत्री के खिलाफ सरयू राय चुनाव लड़ रहे हैं, इससे भाजपा के अंदर भी भय, भूख और भ्रष्टाचार को हटाने की लड़ाई चल रही है. सरकार के अंदर भी सरकार के कामकाज को लेकर नाराजगी है. राय ने सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं.
Q इस चुनाव में आपकी पार्टी का एजेंडा क्या है?
हमारा बुनियादी एजेंडा जल, जंगल, जमीन है. झारखंड की जनता पलायन, विस्थापन और बेरोजगारी की मार झेल रही है. स्थानीयता नीति के कारण पढ़े-लिखे स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है. पार्टी के ये बुनियादी मुद्दे हैं. हमारे लोग विधानसभा के अंदर और बाहर लड़ते रहे हैं. दूसरा मुद्दा जो भाजपा ने थोपा है वह भय, भूख और भ्रष्टाचार का है. यह रघुवर सरकार की उपलब्धि है. पिछले पांच साल में मॉब लिंचिंग की 30 घटनाएं हुईं.
Q भाजपा का दावा है कि जो काम 70 साल में नहीं हुआ, वह पिछले पांच साल में हुआ है?
यह बात सरकार सरयू राय को समझा दे. यही बात झारखंड की जनता को समझाना चाहते हैं तो पहले अपने नेता को समझायें. सरयू राय कह रहे हैं कि वे दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को जेल भेजवा चुके हैं और अब रघुवर दास की बारी है. हम चाहेंगे कि रघुवर दास के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों का सरयू राय खुलासा करें. भ्रष्टाचार सत्ता के अंदर की बात है और अंदर की बात जनता को इतना मालूम नहीं है. वो भी बात खुलकर सामने आ जायेगी. अगर 70 साल की बात करेंगे तो झारखंड के 19 साल के इतिहास में करीब 15 साल भाजपा का ही शासन रहा है. इस बात से झारखंड की जनता को गुमराह नहीं किया जा सकता है.
Q पूर्व में भी झारखंड में गैर भाजपा सरकार रही है. इन पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. ऐसे में लोगों को यह कैसे यकीन दिलायेंगे कि गैर भाजपा सरकार भ्रष्टाचार से मुक्त होगी?
बिल्कुल पहले ऐसा हुआ है. लेकिन अभी लोगों का भरोसा विपक्ष पर है. इस माहौल में वामपंथियों की सबसे बड़ी प्रासंगिकता है. महेंद्र सिंह के जमाने से माले का भ्रष्टाचार के खिलाफ विधानसभा में जो रिकॉर्ड रहा है, वह सभी जानते हैं. सरकार के अंदर, बाहर और माफिया के खिलाफ बिना भय के माले की लड़ने की ताकत रही है. अगर यह ताकत बढ़ती है तो आने वाले समय में सरकार गलत रास्ते पर चलती है तो अंकुश लगाने का काम किया जा सकता है. भ्रष्टाचार से निजात पाने के लिए जागरुकता, संगठन और आंदोलन जरूरी है.
Q विपक्षी दलों के गठबंधन में आपको जगह नहीं मिल पायी. आपका उद्देश्य भाजपा को सत्ता में आने से रोकना है, तो आप सिर्फ भाजपा को रोकने लिए संघर्षरत हैं या जनता की भलाई के लिए?
हमारा संघर्ष किसी दल के खिलाफ नहीं है. झारखंड की मौजूदा सरकार पूरी तरह से तबाही मचाने वाली है और इससे लोगों को छुटकारा दिलाना हमारा कर्तव्य है. समस्या भय, भूख और भ्रष्टाचार है. हमारा मानना है कि अगर यह सरकार लौटती है तो झारखंड में कुछ नहीं बचेगा. इसलिए हमें लगता है कि झारखंड को बचाने के लिए सरकार को हटाना जरूरी है. झारखंड को बचाने के लिए व्यापक गठबंधन जरूरत थी. लोकसभा चुनाव को देखें तो गठबंधन से वामपंथियों को बाहर रखकर बनाया गठबंधन कामयाब नहीं हुआ.
Qसरकार का दावा है उसने सभी वर्गों के लिए काम किया है, खासकर आदिवासी समाज के लिए?
इस सरकार ने आदिवासियों को ही ठगने और दबाने का काम किया है. सरकार सीएनटी और एसपीटी एक्ट को कमजोर करना चाहती थी. लेकिन विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पाया. अंग्रेजों के जमाने में भी ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि दसियों हजार लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा ठोक दिया जाये. आदिवासियों के खिलाफ सरकार ने जंग छेड़ दी. भूख से मौतों में भी अधिकतर आदिवासी हैं. उन्हें राशन, पेंशन तक नहीं मिल रहा है. जमीन, पहचान सबकुछ छीनने के बाद अगर सरकार ऐसा दावा कर रही है तो भगवान बिरसा के वंशज सरकार के छलावे में नहीं आने वाले हैं.
Q झारखंड में पत्थलगड़ी को लेकर विवाद रहा है, क्या यह सही है कि विपक्ष ने इसे भुनाने की कोशिश की?
झारखंड में संविधान की पांचवी अनुसूची लागू है. सरकार ने इसे ही खत्म करने का प्रयास किया. आदिवासियों के लिए पत्थलगड़ी परंपरागत पहचान का हिस्सा रही है. इसे लेकर एक तरह से भ्रम फैलाने का काम किया गया कि आदिवासी संविधान के खिलाफ हैं. जिस राज्य में आदिवासियों को सबसे अधिक सुरक्षा और पहचान की जरूरत है, आज वही सबसे ज्यादा असुरक्षित व अपमानित महसूस कर रहे हैं. यह भाजपा का आदिवासी विरोधी रवैया है. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के समय यह रवैया छुपा रहता था, लेकिन रघुवर दास के समय खुलकर सामने आ गया है.
Q सरकार का दावा है कि झारखंड में नक्सली समस्या कम हुई है, लेकिन विपक्ष नक्सली से मिलकर भाजपा को हराने की कोशिश में लगे हैं. इसमें कितनी सच्चाई है?
आजकल भाजपा की नजर में मानवाधिकार की बात करने वाले, रोजगार, किसान और आदिवासी की बात करने वाला अर्बन नक्सल हैं. सरकार लोकतंत्र के लिए लड़ने वालों को नक्सली मानती है. अगर नक्सली का मतलब माओवाद से है तो सरकार का खुद का दावा है कि यह राज्य में कमजोर हुआ है. सरकार ने नक्सलियों से मुकाबले के लिए कुछ संगठनों को प्रोत्साहित और संगठित किया. आजकल होने वाली घटनाओं में इन्हीं संगठनों की भूमिका है. एक ओर सरकार दावा करती है कि माओवाद पर काबू पाया गया. लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र में एक चरण में चुनाव हुए, जबकि झारखंड में पांच चरणों में हो रहा है. इसका क्या मतलब है? माओवाद का हौवा खड़ा किया जा रहा है.
Q कभी देश में वामपंथ की जमीन मजबूत होती थी, लेकिन आज यह सिमट चुकी है. क्या वामपंथ की विचारधारा कमजोर हो रही है या जमीनी स्तर पर संघर्ष करने की ताकत अब बची नहीं ?
इसके अलग-अलग कारण हैं. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की बात करें, तो बंगाल में लबे समय तक वामपंथी शासन रहा. एक दौर के बाद सरकार बदलती है. वहां बदले राजनीतिक माहौल में वामपंथी ताकत कमजोर हुई. झारखंड और बिहार में कभी वामपंथी शासन नहीं रहा है और हमेशा हम विपक्ष की भूमिका में रहे हैं. इसमें भी पुराने वामपंथी दल कमजोर हुए हैं तो माले ने उसे भरने की कोशिश की है.
Q आप लोग सरकार पर पूंजीपतियों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हैं, लेकिन जब तक पूंजी नहीं आयेगी तब तक विकास कैसे होगा?
तो क्या विकास का मतलब भूख से मौत होना रह गया है? विकास के नाम पर इतने एमओयू हुए, उसका क्या परिणाम निकला है? कितनी पूंजी आयी? कितने लोगों को रोजगार मिला? जनता के विरोध के बावजूद जिस तरह से गोड्डा में एक बड़ी कंपनी को जमीन दी गयी क्या उसे विकास कहेंगे? सवाल यह है कि आप पूंजीनिवेश किस कॉस्ट पर कर रहे हैं? राज्य में सार्वजनिक उपक्रम बर्बाद हो गये हैं. सिंदरी, बोकारो में कारखाने बेचे जा रहे हैं. स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है, लोग पलायन को मजबूर हैं. पलायन झारखंड के लिए सबसे बड़ी पीड़ादायक बात है, लेकिन मुख्यमंत्री पलायन करने वाले को प्रमाण पत्र दे रहे हैं. वह चाहते हैं कि लोग पलायन करें. वह पलायन के सबसे बड़े पैरोकार और प्रबंधक हैं.
Q सरकार का कहना है कि झारखंड में धर्मपरिवर्तन से सामाजिक संतुलन बिगड़ रहा है. सरकार इसके लिए कानून लाने की बात कह रही है. अवैध धुसपैठियों के लिए एनआरसी लागू करने की मांग की जा रही है. इस बारे में आपका क्या कहना है?
ये देश के लिए कोई मुद्दा नहीं है. यह भाजपा की साजिश है. धर्मपरिवर्तन करने की छूट संविधान के तहत लोगों को मिली हुई है. कोई अपनी मर्जी से ऐसा कर सकता है. इसे लेकर जबरदस्ती करना, कानून बनाने की बात करना अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करना निंदनीय है.
धर्म परिवर्तन करने वाले दलितों और आदिवासियों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए. जहां तक एनआरसी की बात है तो हमें असम से सीख लेनी चाहिए. लोग सोचते थे कि कोई हल निकलेगा. आज भाजपा खुद कहती है कि असम का एनआरसी गलत है. 19 लाख लोग एनआरसी के कारण बाहर हो गये. अगर पूरे देश में थोपा जायेगा तो करोड़ों लोग भारतीय नागरिक नहीं रहेंगे. सोचने वाली बात है कि कौन लोग बाहर होंगे. एनआरसी के तहत लोगों से पुराने दस्तावेज मांगे जायेंगे. कई लोगों के पास ऐसा नहीं है. पलयान करने वाले, महिलाएं बाहर होंगे. इसे धार्मिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. नागरिकता संशोधन कानून के जरिये मुसलमानों को डराने की कोशिश की जा रही है. एनआरसी राष्ट्रीय एकता का नहीं राष्ट्रीय विभाजन का एजेंडा है.
Q आप कैसा झारखंड बनाना चाहते हैं?
झारखंड में जिस तरह की प्राकृतिक संपदा है, उसका लाभ लोगों के जीवन में दिखना चाहिए. झारखंड में विविधता है. सामाजिक और भौगोलिक विविधता है. समृद्ध इतिहास है. यह खतरे में है. विविधता और बहुलता के बगैर झारखंड आगे नहीं बढ़ सकता है. भाजपा इसे खत्म करने की कोशिश कर रही है. लेकिन दुख कि बात है कि राज्य में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन का भरपूर दोहन हुआ, लेकिन इससे मूल निवासियों का जीवन बेहतर होने की बजाय बदतर होता गया.
Q वामपंथ के प्रति लोगों में रुझान बढ़े, इसके लिए आपकी क्या रणनीति है?
आज सोशल मीडिया और मीडिया में वामपंथियों की पहुंच कमजोर है. मीडिया पर हमारा नियंत्रण नहीं है, लेकिन सोशल मीडिया के जरिये हम जनता तक अपनी नीतियों को पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. भाजपा फेक न्यूज के जरिये नफरत फैला रही और हमें इसका वैचारिक स्तर पर मुकाबला करना है. भगवान बिरसा और आंबेडकर के विचारों को जनता तक पहुंचाना है. हम जनता से सिर्फ आर्थिक मुद्दे पर नहीं बल्कि विचारों के मुद्दे पर भी जुड़ने का काम करेंगे.
Q आज समाजिक प्रतिबद्धता में कमी आयी है. खासकर वाम दल अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते रहे हैं, लेकिन आज इसमें भी कमी दिखायी दे रही है, इसे आप किस रूप में देखते हैं?
झारखंड में वामपंथी पार्टी को छोड़कर सभी बिकाऊ साबित हुए हैं. भाजपा को अपनी क्रय शक्ति पर भरोसा है. लोगों के पास जमीन नहीं है, लेकिन भाजपा के पास कार्यालय खोलने के लिए इसकी कमी नहीं है.
इसी के बदौलत बाबूलाल मरांडी की पार्टी के सात-आठ विधायक जीतते हैं और बाद में वे दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं. अभी कई विधायक दूसरे दलों में गये. आपको पता है कि सिर्फ माले और मासस के विधायक वैचारिक धरातल पर कायम रहे. वामपंथी विधायक राजकुमार यादव और मासस के अरुप चटर्जी वैचारिक प्रतिबद्धता के प्रति कायम रहे. समाज के नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है तो यह हमारे लिए भी बड़ी चुनौती है और वैचारिक स्तर पर इसका मुकाबला करने का प्रयास किया जायेगा.
Q क्या धार्मिक और जातीय राजनीति के बढ़ते प्रभाव के कारण विचारधार की राजनीति कमजोर हुई है?
यह समय की बात है. धर्म की राजनीति नहीं हो रही है. नफरत और संकीर्णता की राजनीति हो रही है. इस देश में जो लोकधर्म है, उसमें आम लोगों के बीच धर्म को लेकर नफरत नहीं है. इसलिए नफरत और संकीर्णता की राजनीति बेहद खतरनाक है.
जेएनयू में फीस वृद्धि के विरोध को पूरे देश का समर्थन मिला, इसे जाति और धर्म के तौर पर नहीं देखा गया. वामपंथी दलों ने सामाजिक न्याय के लिए ऐसी पार्टियों का समर्थन किया है. किसान और नौजवान के लिए अपना हक महत्वपूर्ण है ना कि जाति. उच्च शिक्षा के बिना समाज में बदलाव नहीं आ सकता है. डेवलपमेंट का मतलब कुछ लोगों के हाथ में संसाधनों का सीमित होना नहीं है.