रांची/पटना : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें आज उस समय और बढ़ गयीं जब चारा घोटाले के देवघर मामले में झारखंड उच्च न्यायालय ने उनकी सजा और बढ़ाने की केन्द्रीय जांच ब्यूरो की अपील सुनवाई के लिए मंजूर कर ली. झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एके गुप्ता व राजेश कुमार की खंड पीठ ने मंगलवार को सीबीआई की उस अपील याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकृत कर लिया जिसमें लालू प्रसाद सहित सात लोगों की सजा बढ़ाने की मांग की गयी है.
सुनवाई के दौरान लालू प्रसाद की ओर से सीबीआई की अपील का जोरदार विरोध किया गया. उनका कहना था कि सीबीआइ ने सजा बढ़ाने की याचिका दाखिल करने में 211 दिन की देरी की है इसलिए उनकी याचिका पर सुनवाई नहीं की जाये. उनकी ओर से लालू के ही एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया गया जिसमें कहा गया है कि इतने गंभीर व महत्वपूर्ण मामलों में सीबीआई को समय से याचिका दाखिल करनी चाहिए. इसके अलावा लालू के वकीलों ने तर्क दिया कि सीबीआइ द्वारा सजा बढ़ाने की मांग का आधार गलत है क्योंकि सीबीआई अदालत ने इस मामले में कई लोगों को अलग-अलग अवधि की सजा सुनाई है.
सीबीआई ने न्यायालय को बताया कि चारा घोटाले के इस मामले में सभी अभियुक्तों पर एक ही आरोप है इसलिए सजा भी एक होनी चाहिए. दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने याचिका दाखिल करने में हुई देरी को शिथिल कर दिया और सीबीआई की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकृत कर लिया. सीबीआई की विशेष अदालत से इस मामले में आदेश आने के तीन माह के भीतर ही याचिका दाखिल करने का प्रावधान है, लेकिन इस मामले में सीबीआई ने समय अवधि के 211 दिन बाद उच्च न्यायालय में सजा बढ़ाने के लिए अपील दाखिल की है.
सीबीआई की ओर से लालू प्रसाद व अन्य की सजा को बढ़ाने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गयी है. याचिका में कहा गया है कि देवघर कोषागार से अवैध निकासी मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू प्रसाद, डॉ. आरके राणा, बेक जूलियस, अधीप चंद्र चौधरी, महेश प्रसाद, फूलचंद्र सिंह और सुबीर भट्टाचार्य को साढ़े तीन-तीन साल की सजा सुनाई है, जबकि इसी मामले में जगदीश शर्मा को सात साल की कैद की सजा सुनाई है.
सीबीआई ने कहा है कि सजा पाने वाले सभी लोग उच्च पदों पर पदस्थापित थे और इन पर उच्चस्तरीय षड्यंत्र रचने का आरोप है. ऐसे में जब मामला साबित हो गया है तो सभी को एक ही तरह की सजा मिलनी चाहिए. सीबीआई ने न्यायालय से अनुरोध किया कि इन बातों को ध्यान में रखते हुए सभी अभियुक्तों की सजा बढ़ाकर सात वर्ष कर दी जानी चाहिए.