रांची : रिम्स में सिर्फ नाम का चल रहा है सुपर स्पेशियालिटी क्लिनिक, बिना विशेषज्ञता के मरीजों को परामर्श दे रहे डॉक्टर
राजीव पांडेय रांची : रिम्स में सुपर स्पेशियालिटी क्लिनिक सिर्फ नाम का रह गया है. स्पेशल क्लिनिक में डॉक्टर बिना विशेषज्ञता के मरीजों को परामर्श दे रहे हैं. एक डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि आजकल हर बीमारी की विशेषज्ञता के लिए डीएम (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) की पढ़ाई होती है. हम […]
राजीव पांडेय
रांची : रिम्स में सुपर स्पेशियालिटी क्लिनिक सिर्फ नाम का रह गया है. स्पेशल क्लिनिक में डॉक्टर बिना विशेषज्ञता के मरीजों को परामर्श दे रहे हैं. एक डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि आजकल हर बीमारी की विशेषज्ञता के लिए डीएम (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) की पढ़ाई होती है.
हम तो रिम्स में नौकरी करते हैं. प्रबंधन हमसे जो काम कराना चाहे, हमें करना ही पड़ेगा. सुपर स्पेशियालिटी क्लिनिक के संचालन के लिए विभागाध्यक्षों को अचानक से शेड्यूल बनाने को कह दिया गया. विभागाध्यक्ष व फैक्लटी के साथ स्पेशल ओपीडी के संचालन व उसकी चुनौती पर मंतव्य नहीं मांगा गया.
मरीजों को नहीं मिल पा रहा उचित परामर्श : रिम्स के सुपर स्पेशियालिटी क्लिनिक में अगर मेडिसिन विभाग की बात की जाये, तो जिन डॉक्टरों को बीमारी देखने की जिम्मेदारी दी गयी है, उनके पास उस बीमारी की विशेषज्ञता ही नहीं है.
ऐसे में मरीजों को उचित परमर्श नहीं मिल पाता है़ मेटाबोलिक क्लिनिक की जिम्मेदारी डॉ आरएस साहू को दी गयी है, लेकिन उनके पास इंडोक्राइम की विशेषज्ञता नहीं है. वहीं डॉ अजीत डुंगडुंग को हेपेटाइटिस की जिम्मेदारी दी गयी है, लेकिन उनके पास हेपोटोलॉजी की विशेषज्ञता नहीं है. डॉ मनोहर लाल को गैस्ट्रोलाॅजी ओपीडी का जिम्मा दिया गया है, लेकिन उनके पास गैस्ट्रोलॉजी की विशेषज्ञता नहीं है. इस कारण मरीजों को उचित परामर्श नहीं मिल पा रहा है.
अधिकतर डॉक्टर नहीं बैठते हैं क्लिनिक में
सुपर स्पेशियालिटी क्लिनिक में जिन डॉक्टरों को जिम्मेदारी दी गयी है, उसमें से अधिकतर डॉक्टर परामर्श के लिए उपलब्ध भी नहीं रहते हैं.
यानी यह क्लिनिक सिर्फ नाम के लिए संचालित हो रहा है. रिम्स प्रबंधन द्वारा तैयार स्पेशल ओपीडी क्लिनिक की सूचना रिम्स की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है. इसमें बीमारी के हिसाब से डॉक्टरों की ड्यूटी का शेड्यूल जारी किया गया है. सूत्रों की मानें तो वेबसाइट में कई ऐसे डॉक्टरों के नाम भी हैं, जो काफी दिन पहले ही ओपीडी से अपना नाम हटवा लिये हैं.
डीएम की डिग्री के पहले तो फिजिसियन या सर्जन ही स्पेशल बीमारी का इलाज करते थे. यह तो रुचि की बात है. स्पेशल ओपीडी शुरू करने की सूची विभागाध्यक्षों से ही मांगी गयी थी. इसके बाद ही शेड्यूल तैयार किया गया था. स्पेशल क्लिनिक में सामान्य व विशेष बीमारी को मिला कर देखा जा रहा है, इसकी जानकारी है. शीघ्र ही बदलाव दिखाई देगा.
डाॅ दिनेश कुमार सिंह, निदेशक, रिम्स
लाइब्रेरी में कम हैं पुस्तकें, विद्यार्थी कैसे करते होंगे पढ़ाई
रांची : डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (डीसीआइ) की टीम ने मंगलवार को डेंटल कॉलेज की लाइब्रेरी व क्लास रूम का निरीक्षण किया. निरीक्षण करने आयी टीम में शामिल बीएचयू डेंटल कॉलेज में डॉ अतुल भटनागर व बेंगलुरु के मेडिकल एजुकेशन के डिप्टी डायरेक्टर डॉ कुमार स्वामी ने लाइब्रेरी में कम पुस्तक व स्मार्ट क्लास में स्पेस की कमी पर आपत्ति जतायी.
टीम ने कहा कि जब लाइब्रेरी में पुस्तकों की कमी है, तो विद्यार्थी कैसे पढ़ाई करते होंगे. एक सदस्य ने कहा कि आजकल स्मार्ट क्लास का जमाना है, लेकिन यहां स्मार्ट क्लास के लिए व्यवस्था ही नहीं है. इस दौरान डेंटल कॉलेज के सभी विभागों के अलावा डेंटल हॉस्टल व रिम्स के विभिन्न वार्ड व ऑडिटोरियम का निरीक्षण किया. वहीं कॉलेज में फर्नीचर व प्रशासनिक विभाग में मैन पावर की कमी पर भी सवाल उठाया.
टीम ने कहा कि कॉलेज में डॉक्टर व टेक्नीशियन की नियुक्ति तो की गयी है, लेकिन कार्यालय नहीं बनाया गया है. ऐसे में डेंटल कॉलेज का काम कैसे होता है, यह सबसे बड़ा सवाल है. गौरतलब है कि टीम रिम्स डेंटल कॉलेज में बीडीएस अंतिम वर्ष की मान्यता के लिए निरीक्षण करने पहुंची थी.