Jharkhand Election 2019 : क्या है तमाड़ का समीकरण? क्या हैं पार्टियों के दावे और क्या कहते हैं लोग
मिथिलेश झा/अमलेश नंदन सिन्हा रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव का शोर अब अपने चरम पर है. पहले चरण का मतदान संपन्न होने के बाद दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें चरण के लिए चुनाव प्रचार परवान चढ़ने लगा है. 7 दिसंबर को दूसरे चरण में 7 जिलों की 20 सीटों पर 48 लाख से ज्यादा वोटर […]
मिथिलेश झा/अमलेश नंदन सिन्हा
रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव का शोर अब अपने चरम पर है. पहले चरण का मतदान संपन्न होने के बाद दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें चरण के लिए चुनाव प्रचार परवान चढ़ने लगा है. 7 दिसंबर को दूसरे चरण में 7 जिलों की 20 सीटों पर 48 लाख से ज्यादा वोटर अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. सभी पार्टियां वोटरों को लुभाने में जुटी हैं. 5 साल विधायक रहे विकास सिंह मुंडा अपनी उपलब्धियां बता रहे हैं, तो उनके विरोधी विधायक की नाकामियां और क्षेत्र की समस्याएं गिना रहे हैं.
दूसरे चरण की 20 में 17 सीटें आरक्षित हैं. 16 सीटें अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. ऐसी ही एक आरक्षित सीट है तमाड़. झारखंड की राजधानी रांची से टाटा की ओर करीब 40 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद आप बुंडू पहुंच जाते हैं, जहां से तमाड़ विधानसभा शुरू हो जाता है. इस विधानसभा में तीन प्रखंड आते हैं : बुंडू, तमाड़ और अड़की. इन तीनों प्रखंडों में 50 पंचायतें हैं. तमाड़ में लोग जाति या पार्टी को देखकर वोट नहीं करते. वे प्रत्याशी को वोट देते हैं. हां, महतो वोटर दो फाड़ हैं. लोगों की मानें, तो महतो समाज में जो धनी वर्ग है, वह सुदेश महतो के साथ और जो गरीब तबके के लोग हैं, वे अन्य पार्टियों को अपना समर्थन देते हैं.
बुंडू, अड़की और तमाड़ की 50 पंचायतों में 2.04 लाख वोटर हैं. इनमें 1,02,885 पुरुष और 1,00,844 महिलाएं हैं. बुंडू में करीब 55 हजार, तमाड़ में 88 हजार और अड़की में करीब 51 हजार वोटर हैं. ये लोग 303 मतदान केंद्रों पर वोट डालेंगे. विकास सिंह मुंडा यहां के विधायक हैं, जो 2014 में आजसू के टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे. इस बार वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
क्षेत्र के लोगों के अपने मुद्दे हैं, तो राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के अपने-अपने मुद्दे और दावे. अपराध की दुनिया से राजनीति में आये और प्रदेश में मंत्री रहे राजा पीटर की पत्नी आरती कुमारी का दावा है कि उनके पति को राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया गया है. वहीं, प्रदेश के कुख्यात नक्सली कमांडर रहे कुंदन पाहन के समर्थक मानते हैं कि वह क्षेत्र का मसीहा है. जब उसे कहीं से न्याय नहीं मिला, तो उसने अत्याचार के खिलाफ बंदूक उठा ली. उसके पास कोई रास्ता भी नहीं था. मजबूरी में उसे हिंसा के रास्ते पर जाना पड़ा. इसमें गलत क्या है?
दूसरी तरफ लोकतंत्र के राजा यानी जनता की राय कुछ और है. राजा पीटर और कुंदन पाहन को वोट देने के बारे में पूछे जाने पर वे सीधा कोई जवाब नहीं देते. लेकिन उनका कहना है कि नेता और विधायक की छवि अच्छी होनी चाहिए. तमाड़ के एक होटल मालिक और अन्य लोगों से हमने बात की, तो उन्होंने कहा कि हमारा इलाका इन दिनों काफी शांति है. पहले ऐसा माहौल नहीं था. अब सुकून से अपना कारोबार करते हैं. रात में कहीं भी आना-जाना करते हैं. यह माहौल कायम रहना चाहिए. विधायक कोई भी बने, क्षेत्र में शांति रहनी चाहिए. हमारी सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए.
एक गांव में हमें कुछ युवा मिले. ये लोग राजनीतिक मुद्दे पर कैमरे के सामने बात करने के लिए तैयार ही नहीं थे. हमने जब उन्हें बताया कि हम मीडिया से हैं और रांची से उनकी समस्याएं जानने आये हैं, उनके मुद्दे जानना चाहते हैं, तो उन्होंने आपस में बात करनी शुरू कर दी. एक लड़के ने जो बातें कहीं, उसको सुनकर आप खुद अंदाजा लगाइये कि उनके मन में क्या चल रहा है.
उसने अपने साथी से कहा, ‘रांची से मीडिया वाले आये हैं. हमलोगों से बात करेंगे. तुम सब कुछ बता दो. साफ-साफ बताना. (हमारी ओर मुखातिब होकर) हां, देखिये. यही हमारा लीडर है. आप जो भी पूछेंगे, उसका जवाब ये देगा. इसको सब कुछ पता है. मीडिया से यही बात करता है.’ मजाक में ये बातें कह जाने वाला युवक बिना रुके बोलता गया, ‘बता दो, बता दो. सब कुछ बता दो. कुंदन पाहन जीतेगा. कुंदन पाहन जीतेगा, तो हर घर में बंदूक देगा. फिर कोई डर-भय नहीं रहेगा.’
इसके अगले ही क्षण वह कहता है, ‘माफ करो भैया. हमें आपसे कोई बात नहीं करनी.’ हमने कैमरा खोला, तो वह और उसके साथी हमसे दूर हो गये. बोले, ‘ना बाबा ना. अब तो हम कुछ नहीं बोलेंगे. यही तो आपलोगों की खराबी है. सीधे कैमरा निकाल लेते हो.’ अब हमें आपसे बात नहीं करनी.हमने उन्हें आश्वस्त किया कि हम आपसे यह कतई नहीं पूछेंगे कि कौन जीतेगा या कौन हारेगा. आपकी पसंद कौन है और आप किसे नापसंद करते हैं. हम तो यह जानना चाहते हैं कि आपकी सरकार से क्या उम्मीदें हैं और आप कैसा विधायक चुनना पसंद करेंगे. इस पर उसी युवक ने तंज कसते हुए कहा, ‘सरकार से क्या उम्मीदें हैं. जो सरकार से उम्मीदें होती हैं, वही उम्मीदें हैं. विधायक जैसा है, वैसा ही है. विधायक को जो काम करना चाहिए, वही काम करना चाहिए. उसे अपनी जिम्मेवारी निभानी चाहिए. और क्या.’
यह स्पष्ट संकेत था कि राजनीतिक दलों और नेताओं के बारे में युवाओं के विचार क्या हैं. हमने लोगों से बात करने के साथ-साथ नेताओं और उनके समर्थकों से भी बात की. पार्टियों का दावा है कि उनके नेता के प्रति लोग दीवाने हैं. अपने समर्थकों की टोलियों की तस्वीरें और वीडियो वो हमें दिखाते हैं. कहते हैं कि देखिये, किस कदर हमारे नेता क्षेत्र के लोगों में लोकप्रिय हैं. ये हमारी ताकत है. हमारे नेता जरूर जीतेंगे और विधानसभा पहुंच कर क्षेत्र के विकास में अपना योगदान देंगे. झारखंड को ऐसे ही नेता की जरूरत है.
हम आगे बढ़े और पहुंच गये तमाड़ के डोड़ेया मोड़. यहां एक स्कूल के मैदान में हमने कुछ लोगों से बातचीत की. ये सभी किसान परिवार के लोग थे. उन्होंने हमें बताया कि सरकार योजनाएं बनाती हैं, पर उसे ईमानदारी से लागू नहीं किया जाता. सरकार किसानों को पैसे दे रही है. केंद्र सरकार भी और राज्य सरकार भी. कितने लोगों को पैसे मिल रहे हैं, यह अलग मुद्दा है. मुद्दा यह है कि पैसे देने से किसानों का भला नहीं होगा. जितने पैसे सरकार किसानों को दे रही है, उन पैसों से यदि खेतों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था कर दी जाये, तो किसान खुशहाल हो जायेगा.
यहां मौजूद लोगों ने बेहतर सड़क, शिक्षा के स्कूल, कॉलेज आदि और चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने की जरूरत पर बल दिया. लोगों ने कहा कि तमाड़ में ऐसे-ऐसे गांव हैं, जहां लोग बीमार पड़ जायें, तो गांव से तमाड़ लाते-लाते उनकी मृत्यु हो जाती है. तमाड़ में एकमात्र अनुमंडलीय अस्पताल है, लेकिन वहां न तो डॉक्टर मिलते हैं, न नर्स है. दवा की तो बात ही दूर. ऐसे में बीमार लोगों को लेकर रांची जाना पड़ता है. बहुत कम किस्मत वाले मरीज होते हैं, जो रांची पहुंचते हैं और ठीक होकर लौटते हैं. वरना, उनका भगवान ही मालिक है.
उल्लेखनीय है कि तमाड़ विधानसभा क्षेत्र में 90 के दशक में जमशेदपुर से जिलाबदर किये गये हिस्ट्रीशीटर से राजनीतिज्ञ बने गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर, बुंडू-तमाड़ में आतंक का पर्याय और नक्सली कमांडर रहे कुंदन पाहन, आजसू छोड़कर झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हुए वर्तमान विधायक विकास सिंह मुंडा, आजसू के राम दुर्लभ सिंह मुंडा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की रीता देवी मुंडा समेत 16 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं. झारखंड में 30 नवंबर से 20 दिसंबर तक 5 चरणों में चुनाव होने हैं, जिसमें पहले चरण का मतदान 30 नवंबर को संपन्न हो गया. इसमें करीब 65 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.