एजेंसियां, मुंबईबैंकों में जमा धन का एक बडा हिस्सा अनिवार्य रूप से सरकारी प्रतिभूतियों में लगाने की शर्त में हल्की ढील देने के एक दिन बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम गोविंद राजन ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय बैंक आगे चल कर वित्तीय संसाधनों पर इस प्रकार के ‘प्रथम अधिकारों’ में कमी किये जाने के पक्ष में है, ताकि वित्तीय प्रणाली और अच्छे ढंग से काम कर सके. राजन ने मंगलवार को मौद्रिक नीति की द्वैमासिक समीक्षा में सांविधिक नकदी अनुपात (एसएलआर) में 0.50 प्रतिशत की कमी करके इस 22 प्रतिशत पर सीमित कर दिया. इस व्यवस्था में बैंकों को अपनी मांंग और सांविधिक जमा राशि का तय न्यूनतम हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों में लगाना अनिवार्य होता है. यद्यपि इस निवेश पर बैंकों को ब्याज मिलता है, पर अन्य क्षेत्रों के लिए ऋण देने योग्य धन में कमी आ जाती है.गौरतलब है कि वित्तीय बाजार में बैंको सहित कई पक्ष भी एसएलआर और नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) जैसी अनिवार्यताओं पर अपनी आपत्तियां खड़ी करते रहे हैं. सीआरआर के तहत बैंको को एक निश्चित अनुपात में नकदी रिजर्व बैंक के नियंत्रण में रखनी पडता है, जो इस समय 4 प्रतिशत है. बैंकों की एक प्रतिशत राशि पर नियंत्रण का अर्थ है कि उनका करीब 80,000 करोड़ रुपये बाजार से बाहर हो जाता है.राजन ने नीतिगत घोषणा के बाद विश्लेषकों के साथ पारंपरिक चर्चा में कहा कि हमें पांच साल में एसएलआर समेत संसाधनों पर इस तरह के प्रथमाधिकारों में कमी लानी चाहिए और प्राथमिक क्षेत्र को ऋण देने की प्रक्रिया को भी अधिक प्रभावी बनाना चाहिए. राजन ने नचिकेत मोर समिति की रपट में प्राथमिक क्षेत्र के लिए ऋण (पीएसएल) के बारे में की गयी सिफारिशों का उल्लेख करते हुए कहा कि रिजर्व बैंक पूरी प्रक्रिया को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के प्रयास में है.राजन ने कहा कि इस तरह के बदलाव जरूरी हैं. इसे मौद्रिक चक्र से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए. उन्होंने माना कि एसएलआर में 0.50 प्रतिशत की कमी से निकट भविष्य में कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ने जा रहा और बैंक आगे भी सरकारी प्रतिभूतियों में एसएलआर की सीमा से ज्यादा धन लगाते रहेंगे. आगे चल कर हम ऋण और बांड बाजार में स्थिति की जांच करेंंगे और इस संबंध में उचित फैसले करेंगे. साथ ही कहा कि बैंक सरकारी प्रतिभूतियों के बाजार में अपनी उपस्थिति निश्चित रूप से बनाये रखेंगे.सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी संस्थागत निवेशकों के संबंध में राजन ने कहा कि सरकार इनमें उनकी नयी रुचि को लेकर खुश है. उन्होंने माना कि विदेशी संस्थागत निवेशक तीन साल से अधिक की परिपक्वता वाली सरकारी प्रतिभूतियों में अपेक्षाकृत अधिक तरजीह दे रहे हैं. अभी सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी निवेश सीमा टूटने की स्थिति नहीं आयी है, लेकिन केंद्रीय बैंक इस सीमा को बढ़ाने के खिलाफ नहीं है. उन्होंने कहा कि भारतीय बाजार मजबूत और परिपक्व होने पर बैंकों के अलावा पेंशन फंड और बीमा कंपनियांे जैसी बहुत-सी और घरेलू निवेशक संस्थाएं इसमें निवेश के लिए आगे आयेंगी.उन्होंने सरकारी प्रतिभूतियों में खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता पर भी बल दिया. आनेवाले समय में मौद्रिक नीति के रुख पर रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि केंद्रीय बैंक का प्राथमिक उद्देश्य यह देखना है कि अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का दबाव कम हो. रिजर्व बैंक ने खुदरा मुद्रास्फीति को जनवरी 2015 तक 8 प्रतिशत और जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत पर सीमित रखने का लक्ष्य रखा है. खुदरा मुद्रास्फीति जून में 7.31 प्रतिशत थी.
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बैंको के धन पर सरकार का कब्जा कम करने के पक्ष में हैं राजन
एजेंसियां, मुंबईबैंकों में जमा धन का एक बडा हिस्सा अनिवार्य रूप से सरकारी प्रतिभूतियों में लगाने की शर्त में हल्की ढील देने के एक दिन बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम गोविंद राजन ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय बैंक आगे चल कर वित्तीय संसाधनों पर इस प्रकार के ‘प्रथम अधिकारों’ में कमी किये जाने […]
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