रांची : पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के सम्मान के लिए है नागरिकता कानून : चक्रधर

रांची : नागरिकता कानून को लेकर वन भवन के पलाश सभागार में राष्ट्र संवर्धन समिति के तत्वावधान में विचार गोष्ठी हुई. मुख्य वक्ता आरएसएस के क्षेत्र प्रचारक रामदत्त चक्रधर व ब्रिगेडियर बीजी पाठक थे. श्री चक्रधर ने कहा कि भारत-पाकिस्तान विभाजन में ढाई करोड़ लोगों का विस्थापन हुआ. 10 लाख से अधिक हिंदुओं की हत्या […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 22, 2019 9:48 AM
रांची : नागरिकता कानून को लेकर वन भवन के पलाश सभागार में राष्ट्र संवर्धन समिति के तत्वावधान में विचार गोष्ठी हुई. मुख्य वक्ता आरएसएस के क्षेत्र प्रचारक रामदत्त चक्रधर व ब्रिगेडियर बीजी पाठक थे. श्री चक्रधर ने कहा कि भारत-पाकिस्तान विभाजन में ढाई करोड़ लोगों का विस्थापन हुआ. 10 लाख से अधिक हिंदुओं की हत्या हुई.
तब नेहरू-लियाकत समझौते में दोनों देशों ने अपने-अपने अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने की बात कही थी. भारत ने तो इसका पालन भी किया, परन्तु पाकिस्तान ने इस समझौते की धज्जियां उड़ा दी. सरकार ने इस अधिनियम में यह कहा है कि 31 दिसंबर 2014 तक पांच साल तक रहने का प्रमाण देकर कोई भी यहां की नागरिकता ले सकता है. सरकार ने सीएए सिर्फ धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यक के लिए बनाया है. ब्रिगेडियर बीजी पाठक ने कहा कि 2003-2005 में नाॅर्थ-इस्ट में सेना में सेवा देने के दौरान मुझे भी कई अनुभव रहे हैं.
वहां के कई हिस्सों में स्थानीय निवासी ही अल्पसंख्यक बन गये हैं. अब उनके सामने संकट है कि यदि बाहरी लोगों को नागरिकता मिलती है, तो स्थानीय लोगों के समक्ष संकट है. वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र कृष्ण ने कहा कि संविधान के आर्टिकल-15 का हवाला देकर जो लोग इस अधिनियम का विरोध कर रहे हैं, वो गलत है. कार्यक्रम का संचालन शालिनी सचदेव ने किया़ धन्यवाद ज्ञापन विवेक भसीन ने किया. अध्यक्षता राष्ट्र संवर्धन समिति के अध्यक्ष ज्ञान प्रकाश जालान ने की.
दुनिया की सबसे बड़ी मानव त्रासदी है सीएए
रांची़ माकपा ने सीएए और एनआरसी पर बयान जारी कर इसके औचित्य पर सवाल उठाते हुए दुनिया की सबसे बड़ी मानव त्रासदी बताया. राज्य सचिव मंडल सदस्य संजय पासवान ने कहा कि नागरिकता कानून नागरिकता देने के लिए है, न कि किसी की छीनने के लिए. माकपा ने कहा कि असम के अनुभवों को देखें, तो वहां करीब सवा तीन करोड़ लोगों ने आवेदन किया था.
इसमें पहले 40 लाख, बाद में एनआरसी की आखिरी सूची में 19,06,657 लोग बाहर हो गये. इनमें से 12 से 14 लाख हिंदू थे. खुद को देश का नागरिक साबित करने के लिए आम लोगों को रोजगार छोड़ कर अपने गांव-घर आना पड़ा.

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