राजा पीटर के बाद सरयू राय झारखंड में मुख्यमंत्री को हराने वाले दूसरे उम्मीदवार बने
रांची : हाल में झारखंड में संपन्न विधानसभा चुनावों में राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को हराने वाले उन्हीं के मंत्रिमंडल सहयोगी सरयू राय ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाले राज्य के दूसरे नेता बन गये हैं. 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी दुमका सीटसे हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन वह बरहेट […]
रांची : हाल में झारखंड में संपन्न विधानसभा चुनावों में राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को हराने वाले उन्हीं के मंत्रिमंडल सहयोगी सरयू राय ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाले राज्य के दूसरे नेता बन गये हैं.
2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी दुमका सीटसे हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन वह बरहेट सीट से चुनाव जीत गए थे. इससे पहले वर्तमान में जेल में बंद गोपालकृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर ने ठीक दस साल पहले 2009 में झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में पराजित किया था.
इस कारण सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. चतुर्थ विधानसभा के लिए 2014 में हुए विधानसभा चुनावों में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी दुमका से चुनाव हार गये थे, लेकिन दूसरी सीट बरहेट से चुनाव जीतकर उन्होंने अपनी इज्जत बचा ली थी. इसके बाद वह पांच वर्ष तक झामुमो विधायक दल का नेता बन कर वह विपक्ष का नेता बने रहे.
झारखंड के खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री सरयू राय ने 73,945 मत हासिल कर राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को उनके ही गढ़ जमशेदपुर पूर्वी से इस बार 15,833 मतों से पराजित कर इतिहास रच दिया. मुख्यमंत्री दास को अपनी परंपरागत सीट पर सिर्फ 58,112 मत मिले. इस सीट से तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार गौरव वल्लभ की ना सिर्फ बुरी हार हुई, बल्कि उनकी जमानत भी जब्त हो गयी.
उन्हें सिर्फ 18,976 वोट मिले, जबकि जमानत बचाने के लिए उन्हें कम से कम 28,937 मतों की आवश्यकता थी. इस सीट से कुल 20 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. कहा जा रहा है कि स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास के कहने पर ही भाजपा ने जमशेदपुर पश्चिमी से सरयू राय को टिकट नहीं दिया.
इससे नाराज और अपमानित राय अपनी सीट छोड़ सीधे मुख्यमंत्री से भिड़ गए और उन्हें बुरी तरह हराया. दास की हार से सिर्फ उनकी नहीं बल्कि पार्टी की भी भारी फजीहत हुई है.
जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव जीतने के बाद सरयू राय ने इस बात की तस्दीक करते हुए स्वयं कहा था, अब राज्य में रघुवर दास मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. यहां झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन की सरकार बनेगी. अगर सरकार की स्थिरता के लिए आवश्यक हुआ तो वह गठबंधन का समर्थन भी कर सकते हैं.
अपमान का घूंट पीकर मुख्यमंत्री के खिलाफ तल्ख हुए राय ने कहा था, अब रघुवर दास किसी भी हाल में राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. पार्टी की ओर से टिकट नहीं मिलने से नाराज राय ने स्पष्ट कहा था, भाजपा नेतृत्व ने मेरे स्वाभिमान को चोट पहुंचाया और उसी से प्रेरित होकर मैंने मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन बनाया.
एक अन्य सवाल के जवाब में सरयू राय ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी मुहिम जारी रहेगी और उन्होंने मंत्री रहते हुए भी मुख्यमंत्री रघुवर दास को इसकी चेतावनी दी थी. राय से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री को 2009 में तमाड़ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में झारखंड पार्टी के गोपालकृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर ने हराया था.
हेमंत सोरेन के पिता झामुमो के मुखिया शिबू सोरेन ने 2008 में मधु कोड़ा की सरकार सरकार गिरने के बाद 27 अगस्त 2008 को सत्ता संभाली थी, लेकिन उस समय वह विधानसभा सदस्य नहीं थे और संविधान के अनुसार उन्हें छह माह के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना था.
उन्होंने अपने पार्टी के कुछ विधायकों से चुनाव लड़ने के लिए सीट खाली करने का अनुरोध किया, लेकिन किसी ने भी उनके लिए अपनी विधानसभा सीट नहीं खाली की। इस बीच नौ जुलाई, 2008 को नक्सली हमले में तमाड़ के तत्कालीन जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की मौत हो गयी और यह सीट खाली हो गयी.
इस सीट पर उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने अपना राजनीतिक भाग्य आजमाया, लेकिन उन्हें एनोस एक्का की पार्टी के राजा पीटर ने चुनौती दी और 9,062 मतों से पराजित कर दिया. जिसके चलते मजबूरी में उन्हें 12 जनवरी को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
2014 में भी तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दो सीट पर चुनाव लड़े थे और वह जहां दुमका से चुनाव हार गये थे वहीं बरहेट से जीत गये थे. दुमका में उन्हें भाजपा की लुईस मरांडी ने चुनाव में हरा दिया था और पुरस्कार स्वरूप पार्टी ने उन्हें राज्य का कल्याण मंत्री बनाया था, लेकिन हेमंत बरहेट सीट से चुनाव जीत गये थे लिहाजा वह राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता बने थे.
हालांकि हाल के विधानसभा चुनावों में हेमंत ने बरहेट के साथ दुमका की सीट भी जीत ली और उन्होंने लुईस मरांडी को पराजित कर उनसे पिछले चुनावों का हिसाब किताब भी कर लिया.