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रांची : अनुसूचित जनजाति शब्द नहीं चाहते थे जयपाल सिंह मुंडा: ग्लैडसन
रांची : हॉफमैन लॉ ऑफिस द्वारा फादर कामिल बुल्के सभागार में ‘एक शाम मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के नाम’ कार्यक्रम का अायोजन किया गया़ इसमें सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा एक ऐसे राष्ट्रीय आदिवासी नेता थे, जिन्होंने सही जगह पर सही बात कही़ उनकी सोच राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में थी […]
रांची : हॉफमैन लॉ ऑफिस द्वारा फादर कामिल बुल्के सभागार में ‘एक शाम मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के नाम’ कार्यक्रम का अायोजन किया गया़ इसमें सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा एक ऐसे राष्ट्रीय आदिवासी नेता थे, जिन्होंने सही जगह पर सही बात कही़ उनकी सोच राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में थी इसलिए उन्होंने संविधान सभा में 19 दिसंबर 1946 को कहा कि मैं देश के तीन करोड़ आदिवासियों की बात रख रहा हू़ं यह भी कहा था कि इस सभा के ज्यादातर लोग बाहरी है़ं जयपाल सिंह मुंडा ने संविधान सभा में कहा कि आप आदिवासियों को लोकतंत्र नहीं सिखा सकते़ यह उनके खून में है़ं
आप को उनसे लोकतंत्र सीखना होगा़ जब डॉ अंबेडकर ने संविधान के अनुच्छेद 13, उप अनुच्छेद पांच से आदिवासी शब्द को जयपाल सिंह मुंडा की अनुपस्थिति में संशोधित कर अनुसूचित जनजाति कर दिया, तब दो दिसंबर 1948 को उन्हाेंने डाॅ अंबेडकर से इस पर सवाल किया था़ जयपाल सिंह मुंडा आदिवासी शब्द के लिए निंरंतर संघर्ष करते रहे़ यह कहते रहे कि हम आदिवासी हैं और हमें इसके अलावा कोई और शब्द मंजूर नही़ं वे आदिवासी स्वशासन के पक्षधर भी थे़ सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने आंदोलन के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डाला़ शुभाशीष सोरेन ने संविधान व कानून के विभिन्न बिंदुओं पर अपनी बात रखी़ कार्यक्रम को फैसल अनुराग,रतन तिर्की, नदीम खान, प्रेमचंद मुर्मू, शशि पन्न, योगेंद्र, उदय प्रकाश कुल्लू व अन्य ने भी संबोधित किया़ संचालन महेंद्र पीटर तिग्गा ने किया़
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