मिथिलेश झा
रांची : झारखंड राज्य के धनबाद जिला के बाघमारा विधानसभा से निर्वाचित विधायक ढुल्लू महतो का निर्वाचन रद्द करने की मांग विधानसभा अध्यक्ष से की गयी है. बियाडा के पूर्व चेयरमैन और सामाजिक कार्यकर्ता बिजय कुमार झा ने झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो को एक आवेदन देकर यह मांग की है. उन्होंने केरल के एक विधायक के निर्वाचन को रद्द करने वाले सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए बाघमारा के विधायक की सदस्यता रद्द करने का आग्रह किया है.
श्री झा ने अपने आवेदन में कहा है कि ढुल्लू महतो को अलग-अलग मामलों में कुल 72 महीने की सजा हो चुकी है. चूंकि केरल के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट विधायक के निर्वाचन को रद्द कर चुका है, उसी आधार पर ढुल्लू महतो की भी विधायिकी खत्म हो जानी चाहिए. उन्होंने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी मामले में दो साल से अधिक की सजा हो जाती है, तो वह चुनाव लड़ने के योग्य नहीं रह जाता. श्री झा ने वर्ष 2005 में केरल के विधायक पी जयराजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति भी संलग्न की है.
उन्होंने रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट, 1951 के सेक्शन 8(3) के उस प्रावधान की ओर भी स्पीकर का ध्यान आकृष्ट कराया है, जिसमें कहा गया है कि ‘न्यूनतम दो साल की सजा’ तय करते समय व्यक्ति को मिली पूरी सजा को जोड़कर देखा जायेगा. इस तरह ढुल्लू महतो को भले एक मामले में दो साल से अधिक की सजा नहीं हुई हो, लेकिन उन्हें अलग-अलग मामलों में जो सजा हुई है, वह 72 महीने यानी 6 साल हो जाती है और इस लिहाज से वह चुनाव लड़ने के योग्य नहीं रह जाते. इसलिए उनकी सदस्यता रद्द कर दी जानी चाहिए.
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उल्लेखनीय है कि ढुल्लू महतो को आइपीसी की धाराओं 147, 149, 353 और 225 के तहत कुल 72 महीने की सजा हुई है. एक मामले में धनबाद के ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट मोहम्मद उमर उन्हें दोषी करार दे चुके हैं. बाघमारा (बरोरा) थाना में दर्ज केस संख्या 307/2006 में ढुल्लू महतो को एक साल की सजा हो चुकी है. ढुल्लू महतो ने इस फैसले के खिलाफ अपील की. उन्हें जमानत तो मिल गयी, लेकिन वह अब तक इस केस से बरी नहीं हुए हैं. इसलिए वह बाघमारा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के योग्य नहीं रह गये हैं.
श्री झा ने कहा कि तत्कालीन चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस शिवराज वी पाटील, जस्टिस केजी बालाकृष्णन, जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण और जस्टिस जीपी माथुर शामिल थे, ने के प्रधान बनाम पी जयराजन केस में 11 जनवरी, 2005 को अपना फैसला सुनाया था. इसमें (C.A. No. 8213/2001) कोर्ट ने केरल के कुथुपराम्बा विधानसभा क्षेत्र से चुने गये विधायक पी जयराजन के निर्वाचन को वैध करार देने वाले केरल हाइकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया था.
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ज्ञात हो कि अप्रैल-मई 2001 में हुए केरल के चुनावों में के प्रभाकरण और पी जयराजन समेत तीन उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे. 24 अप्रैल, 2001 को नामांकन दाखिल हुआ और 10 मई, 2001 को मतदान. 13 मई, 2001 को चुनाव परिणाम आये और पी जयराजन विजयी घोषित किये गये. के प्रभाकरण ने रिटर्निंग ऑफिसर से लेकर हाइकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में पी जयराजन के खिलाफ याचिका दाखिल की. उन्होंने कहा कि 9 दिसंबर, 1991 के एक मामले में जयराजन के खिलाफ मुकदमा चल रहा है.
प्रभाकरण ने कोर्ट को बताया कि 9 अप्रैल, 1997 को इस मामले में कुथुपरम्बा स्थित फर्स्ट क्लास न्यायिक मजिस्ट्रेट ने जयराजन को दोषी पाया और उन्हें कई धाराओं (143, 149, 447, 427 और 353) में कुल ढाई साल की सजा सुनायी. 24 अप्रैल, 1997 को जयराजन ने थालासेरी के सेशन कोर्ट में अपील दाखिल की. सेशन कोर्ट ने जयराजन की सजा पर रोक लगा दी और उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश जारी कर दिया था.
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जयराजन को मिली सजा की वजह से ही प्रभाकरण ने अपने प्रतिद्वंद्वी के नामांकन को चुनौती दी, लेकिन रिटर्निंग ऑफिसर ने उनकी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए जयराजन के नामांकन को स्वीकार कर लिया. रिटर्निंग ऑफिसर ने कहा कि आरोपी को किसी एक मामले में दो साल या उससे ज्यादा की सजा नहीं हुई है. इसलिए रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट, 1951 की धारा 8(3) के तहत उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता.
प्रभाकरण अपना केस लेकर केरल हाइकोर्ट पहुंचे. हाइकोर्ट ने 5 अक्टूबर, 2001 को पी जयराजन के निर्वाचन को वैध ठहराया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और देश की सर्वोच्च अदालत ने केरल हाइकोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए के प्रभाकरण की याचिका पर अंतिम सुनवाई के बाद 11 जनवरी, 2005 को अपना फैसला सुना दिया. इसमें पी जयराजन के निर्वाचन को रद्द कर दिया. और इसी फैसले को आधार बनाकर बियाडा के पूर्व चेयरमैन बिजय कुमार झा ने ढुल्लू महतो के निर्वाचन को रद्द करने की मांग की है.