बदलते मौसम का उत्सव: लोकजीवन का पर्व लोहड़ी आज, भांगड़ा पर थिरकेंगे सब, 15 को मनायी जायेगी मकर संक्रांति

रांची : मकर संक्रांति (खिचड़ी), पोंगल, लोहड़ी, बिहू या टुसू. ये सभी भारतीय लोक जीवन के पर्व हैं. यह बदलते मौसम का उत्सव है. संक्रांति का अर्थ होता है गमन. धनु राशि से मकर राशि में सूर्य का जाना ही संक्रांति है. मान्यता है कि जब सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, तब शुभ फल देते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 13, 2020 8:00 AM

रांची : मकर संक्रांति (खिचड़ी), पोंगल, लोहड़ी, बिहू या टुसू. ये सभी भारतीय लोक जीवन के पर्व हैं. यह बदलते मौसम का उत्सव है. संक्रांति का अर्थ होता है गमन. धनु राशि से मकर राशि में सूर्य का जाना ही संक्रांति है. मान्यता है कि जब सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, तब शुभ फल देते हैं. शुभ कार्यों की शुरुआत होती है. महाभारत में भीष्म ने शरीर त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी. ग्रामीण इलाकों में आज भी बुजुर्गों की मृत्यु उत्तरायण में होने की कामना की जाती है.

यह समय नये अनाजों का भोग, पशुओं के प्रति कृतज्ञता और सूर्योपासना का है. पंजाबी समुदाय एक दिन पहले इसे लोहड़ी के रूप में सेलिब्रेट करता है. असम में इसे माघ-बिहू के नाम से मनाया जाता है. इसे फसल कटाई का उत्सव माना गया है. तमिलनाडु में यह पोंगल के रूप में प्रसिद्ध है. दरवाजे पर तोरण और आंगन में रंगोली बनाने की परंपरा है. बैलों की लड़ाई भी काफी प्रसिद्ध है. दिल्ली राजस्थान, गुजरात में जमकर पतंगबाजी होती है. इस अवसर पर गंगासागर (बंगाल) में लाखों श्रद्धालु स्नान करते हैं. सभी जगह इस दिन नदी-स्नान और दान की परंपरा निभायी जाती है.

सांझी लोहड़ी आज, भांगड़ा पर थिरकेंगे सब

नयी फसल आने की खुशी में मनाया जानेवाला त्योहार सांझी लोहड़ी आज है़ मान्यता है कि इस दिन की रात सबसे लंबी और दिन छोटा होता है़ अगले दिन से रात छोटी और दिन बड़ा होने लगता है़ इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगते हैं. लोहड़ी के दिन घरों के सामने खुली जगहों की साफ-सफाई होती है़ इसके बाद लकड़ी, उपले आदि को इकट्ठा किया जाता है़

सूर्यास्त के बाद इसकी पूजा-अर्चना कर इसे प्रज्जवलित की जाती है़ रेवड़ी, मूंगफली, मकई का लावा, गजक आदि अग्नि देव को समर्पित किया जाता है़ ठंड की विदाई और खुशहाली की कामना की जाती है़ गिद्दा व भांगड़ा गाकर खुशी का इजहार करते हैं. इस दिन नया सामान खरीदने की भी परंपरा है़ लोहड़ी से पूर्व विवाहित बेटियों को घर आने का निमंत्रण दिया जाता है.

रांची नागरिक समिति

रांची नागरिक समिति शाम 6:30 बजे सांझी लोहड़ी का त्योहार सेलिब्रेट करेगी़ टेलीफोन एक्सचेंज रोड बड़ालाल स्ट्रीट अपर बाजार के चौराहे पर लोहड़ी प्रज्जवलित की जायेगी. यह जानकारी समिति के सचिव संदीप नागपाल ने दी है़

बहावलपुरी पंजाबी समाज आज मनायेगा लोहड़ी

बहावलपुरी पंजाबी समाज आज रात आठ बजे गुरुद्वारा मंदिर चौक पर लोहड़ी प्रज्जवलित करेगा़ महिला समिति की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किये जायेंगे़ फैंसी ड्रेस और सामूहिक नृत्य की प्रस्तुति होगी़ साथ ही 10वीं और 12वीं में सफलता प्राप्त करनेवाले मेधावी बच्चों को सम्मानित किया जायेगा. राहुल निखिल एकेडमी अवार्ड दिया जायेगा़ आयोजन में कमलेश मिड्ढा, रवि सोनी, मनीषा मिड्ढा, कंचन सुखीजा आदि योगदान दे रही हैं.

पंजाबी हिंदू बिरादरी

पंजाबी हिंदू बिरादरी की ओर से शाम सात बजे लाला लाजपत राय स्कूल के सामने लोहड़ी प्रज्जवलित की जायेगी. मुख्य अतिथि सांसद संजय सेठ और विशिष्ट अतिथि गुलशन लाल आजमानी होंगे़ बिरादरी के लोग भांगड़ा पेश कर खुशी का इजहार करेंगे. यह जानकारी प्रवक्ता अरुण चावला ने दी है.

टुसू पर्व में बाउंडी ( पूर्व संध्या) को बनता है गुड़पीठा

टुसू पर्व झारखंड के कुड़मी और आदिवासियों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है़ यह जाड़ों में फसल कटने के बाद पौष के महीने में मनाया जाता है़ इस त्योहार को मकर संक्रांति के दिन सेलिब्रेट किया जाता है. टुसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी है. टुसू पर्व की पूर्व संध्या यानी बाउंडी के दिन गुड़ पीठा व छांका पीठा बनाने की परंपरा है.

शाम में अरवा चावल से बने आटे व गुड़ के मिश्रण से टुसू पर्व का पारंपरिक व्यंजन गुड़पीठा तैयार किया जायेगा. सबसे पहले पूर्वजों व इष्ट देवी-देवताओं के लिए पीठा तैयार किया जायेगा. इसे टुसू पर्व के दिन घर का मुखिया उन्हें तांग हांडी के साथ चढ़ावे में देंगे. गुड़ पीठा में फ्लेवर लाने के लिए गुड़, किसमिस, इलाइची, नारियल आदि भी डाला जाता है. ढेंकी का कूटा चावल के आटे से पीठा तैयार किया जाता है.

मछली का होता है सेवन

बाउंडी के दिन मछली खाने का चलन है. इस दिन सुदूर-गांव के देहात के लोग तालाब या अन्य जलाशय में एकजुट हो मछली पकड़ते हैं. वहीं कुछ लोग मछली खरीदकर खाते हैं, लेकिन घर में मछली के साथ शाम का भोजन करना अनिवार्य माना जाता है. इस दिन शाम में परिवार का हर सदस्य पत्तल में ही भोजन ग्रहण करता है. मान्यता है कि रात में ईश्वर घर-घर जाते हैं व लोगों की संख्या को गिनते हैं.

सियार के रोने की आवाज से लगाते हैं बारिश का अनुमान

टुसू पर्व के ठीक एक दिन पहले यानी बाउंडी के दिन किसान परिवार के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है. सुदूर गांव देहात में आज भी बाउंडी के सुबह-शाम सियार के रोने की दिशा से बारिश का अनुमान लगाते हैं. मान्यता है कि जिस दिशा से सियार के रोने की आवाज आयेगी, उस दिशा से उस वर्ष बारिश होगी. अमूमन किसानों को यह पहले से ही पता रहता है कि किस दिशा से बारिश आने से उसके लिए वरदान साबित होगा. आदिवासी-मूलवासियों को बारिश को लेकर अनुमान लगाने की यह अनोखी तरकीब है.

टुसू के दूसरे दिन मनेगा अखान जतरा

आदिवासी-मूलवासी समुदाय टुसू पर्व के दूसरे दिन को अखान जतरा अर्थात शुभ दिन के रूप में मनाते हैं. इस दिन नये कार्य का शुभारंभ होता है. विवाह योग्य युवक-युवतियों के लिए वर-वधू को देखने जाना बहुत शुभ माना जाता है. नये घर का निर्माण कार्य आदि भी शुरू किया जाता है. इतना ही नहीं मान्यता है कि जिस पेड़ में फल नहीं लगते हों तो उसे अखान जतरा के दिन प्रात: सुबह कुल्हाड़ी या किसी धारदार लोहे की वस्तु से चोट मारने से उसमें फल आने लगते हैं. वहीं इस दिन अपना जतरा देखने के लिए कुछ लोग मुर्गा को लड़ाते हैं.

ढेंकी से कूटते हैं चावल

पारंपरिक व्यंजन गुड़ पीठा व छांका पीठा बेजोड़ स्वादिष्ट होता है. इसे ढेंकी से कूटा चावल के आटे से ही तैयार किया जाता है. आम आटे की तरह पीस कर नहीं रखा जाता है. अक्सर बाउंडी के दिन ही अरवा चावल को ढेंकी में कूटकर आटा तैयार किया जाता है. इस तरह चावल से तैयार ताजे आटे से जब पीठा बनता है, तो उसका स्वाद बढ़ जाता है. इस दिन ढेंकी में चावल से आटे तैयार करने के लिए लंबी लाइन लगी होती है.

मकर संक्रांति पर लगायेंगे श्रद्धा की डुबकी

मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनायी जायेगी़ श्रद्धालु नदियों और तालाबों में डुबकी लगायेंगे. यह पर्व भगवान सूर्य से जुड़ा है़ इस दिन तिल के लड्डू, सुपारी, अनाज, खिचड़ी और दक्षिणा रख कर महिलाएं दान का संकल्प लेती है़ं विशेष पूजा-अर्चना होती है़ दान-पुण्य की परंपरा है़ इस दिन माताएं संतान को तिल और चावल आदि भी देती है़ं अंग्रेजी नववर्ष का पहला पर्व होने के कारण मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है़ मकर संक्रांति पर चूड़ा, गुड़, तिलकुट आदि की खरीद होती है़ तिल और चूड़ा दान किया जाता है़ इस दिन से सभी शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं.

दक्षिण भारतीयों का पोंगल 15 से 17 तक मनेगा

पोंगल की तैयारी कर ली गयी है़ घरों में विशेष अल्पना बनाये जा रहे हैं. पोंगल के दिन प्रात:स्नान ध्यान कर भगवान सूर्य सहित अन्य देवी देवताओं की आराधना की जायेगी़ विशेष व्यंजन और पोंगल अर्पित किये जायेंगे़ यह त्योहार 15 से 17 जनवरी तक सेलिब्रेट होगा़ तमिल समाज के लोग एक-दूसरे को पोंगल की बधाई देंगे़ केरल में इस दिन सबरी मल्लाई में ज्योति प्रज्वलित होती है़ आंध्रप्रदेश व कर्नाटक में भी विशेष पूजा होती है़ यह पर्व छठ पूजा की तरह ही विधि-विधान के साथ मनाया जाता है़ पायसम वाड़ा जैसे स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किये जाते हैं. नया चावल और नया गुड़ से पोंगल बनाया जाता है़ सूर्य देव को ईख, पीला केला, हल्दी, अदरक आदि अर्पित किये जाते हैं.

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