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पूर्व सीएम और मंत्री रामेश्वर उरांव मांग रहे हैं एक ही आवास, आवंटन किया जायेगा या नहीं, पूरी तरह हेमंत सरकार की मर्जी पर
विवेक चंद्र रांची : रघुवर दास ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्हें सरकारी आवास आवंटित किया जाये. हालांकि, श्री दास को आवास का आवंटन किया जायेगा या नहीं, यह पूरी तरह हेमंत सोरेन सरकार की मर्जी पर निर्भर है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक […]
विवेक चंद्र
रांची : रघुवर दास ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्हें सरकारी आवास आवंटित किया जाये. हालांकि, श्री दास को आवास का आवंटन किया जायेगा या नहीं, यह पूरी तरह हेमंत सोरेन सरकार की मर्जी पर निर्भर है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में अब राज्य सरकार द्वारा केवल एग्जीक्यूटिव ऑर्डर (कार्यपालक आदेश) पर उनको सरकारी आवास का आवंटन नहीं किया जा सकता है.
श्री दास या झारखंड के किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री को आवास देने के लिए राज्य सरकार को स्टैचुटोरी प्रोविजन (संविधिक उपबंध) कर नियम बनाना होगा. भवन निर्माण विभाग ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये एक आदेश के आलोक में श्री दास को पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से आवास आवंटित करने पर सरकार से दिशानिर्देश मांगा है. फिलहाल, श्री दास के नाम से एचइसी में एक आवास आवंटित है. वह आवास उनको विधायक की हैसियत से आवंटित किया गया था.
पूर्व सीएम और मंत्री रामेश्वर उरांव मांग रहे हैं एक ही आवास
सूत्र बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने रांची के मोरहाबादी में सरकारी आवास आवंटित कराने की मांग की है. वह आवास गिरिडीह के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी को राज्य सरकार के मंत्री रहते हुए आवंटित किया गया था. श्री चौधरी के सांसद बनने के बाद भी वह आवास उनके नाम से ही आवंटित रहा. अब तक आवास पर उनका ही कब्जा है. इधर, हेमंत सरकार में कांग्रेस के कोटे से मंत्री बने रामेश्वर उरांव ने भी चंद्रप्रकाश चौधरी के नाम से मोरहाबादी में आवंटित आवास की ही मांग की है. हालांकि, संबंधित आवास श्री उरांव को भी आवंटित करने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अब फैसला नहीं लिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया था पूर्व सीएम को सरकारी आवास देने का नियम
सात मई 2018 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि संविधान के तहत कोई व्यक्ति सार्वजनिक पद छोड़ देता है, तो उसमें और आम नागरिक में कोई अंतर नहीं रह जाता है. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा केवल एग्जिक्यूटिव ऑर्डर पर पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास आवंटित करने या कार्यकाल की समाप्ति के बावजूद सरकारी आवास में बने रहने की अनुमति देनेवाले कानूनी संशोधन को रद्द कर दिया था.
वर्ष 1997 में लोकप्रहरी नाम के एनजीओ ने उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री को बंगला दिए जाने के नियम को चुनौती दी थी. इस मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह किसी एक राज्य का मामला नहीं, बल्कि पूरे देश का मामला है. कोर्ट ने इस मामले के लिए वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम को अमाइक्स क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया था. श्री सुब्रमण्यम ने पूर्व राष्ट्रपतियों और पूर्व प्रधानमंत्रियों को सरकारी बंगला देने को गलत बताया था.
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